भगवान बुद्ध के अनुयायी सामूहिक चेतना के जागरण व जीवन के नियमों के अनुपालन के लिए त्रिशरण मंत्र, ‘बुद्धं शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि। संघं शरणं गच्छामि।’ का उच्चारण करते हैं। सामान्य रूप से इसका अर्थ है कि मैं बुद्ध की शरण लेता हूं, मैं धर्म की शरण लेता हूं, मैं संघ की शरण लेता हूं। बौद्ध मतावलंबी यहां बुद्ध को एक जागृत स्वरूप में स्वीकार करने के साथ धर्म को जीवन का महानियम मानते हुए संघ को सत्यान्वेषियों के समूह के रूप में ग्रहण करते हैं। हाल ही के वर्षों में भारतीय राजनीति ने इस स्वरूप को बदल ही दिया है। बौद्ध मतावलंबियों को महज दलित चिंतन तक समेट दिया गया है, वहीं धर्म व संघ को तो अलग तरीके से परिभाषित किया जा रहा है। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर मचे घमासान के बीच धर्म व संघ को लेकर अलग ही चर्चाएं चल रही हैं और यहां भाव ‘धर्मम शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि’ का ही नजर आ रहा है।
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर देश में घमासान मचना स्वाभाविक ही था। यह मसला भी भारतीय जनता पार्टी के मूल वैचारिक अधिष्ठान से जुड़ा हुआ है। जिस तरह भाजपा कश्मीर धारा 370 हटाने को लेकर अपने स्थापना काल से ही स्पष्ट थी, किन्तु गठबंधन की जटिलताओं सहित उपयुक्त राजनीतिक वातावरण के अभाव में इस वादे से दूरी बनाए हुए थी, उसी तरह नागरिकता संशोधन व समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे भी भाजपा के मूल स्वभाव में स्पष्ट ही थे। भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक अधिष्ठान के प्रणेता संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दुओं की चिंता करने की बातें बार-बार कही हैं। संघ आज दुनिया भर में अलग-अलग नामों से सक्रिय है और सभी जगह हिन्दू ही संघ के मूल कॉडर का हिस्सा हैं। ऐसे में पड़ोसी देशों के हिन्दुओं की चिंता संघ की प्राथमिकताओं में शामिल है। अब जब संघ का स्वयंसेवक देश का प्रधानमंत्री है, देश में संघ की विचारधारा राजनीतिक रूप से सरकार के रूप में स्वीकार की जा चुकी है, हिन्दुओं की चिंता करते कानून बनना भी स्वाभाविक है। ऐसे में भाजपा सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक के द्वारा पाकिस्तान सहित पड़ोसी देशों में सताए गए हिन्दुओं की चिंता जताने का विरोध निश्चित रूप से देश में हिन्दुओं के बीच भाजपा की विचारधारा का पोषक ही साबित होगा। यही कारण है कि भाजपा खुलकर इस मसले पर सामने आ रही है और भाजपा की पूरी कोशिश इस कानून के साथ स्वयं को हिन्दू हितैषी व इसका विरोध करने वालों को हिन्दू विरोधी साबित करने की है।
इस विधेयक में भले ही हिन्दुओं के साथ जैन, सिख, पारसी, ईसाई व बौद्धों को शरण देने की बात कही जा रही हो, किन्तु इस विधेयक के विरोधियों का पूरा जोर धार्मिक आधार पर है। वे लोग भाजपा पर देश को बांटने के लिए धर्म की शरण में जाने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि भाजपा इसे वैश्विक रूप से उन लोगों के लिए जरूरी मान रही है, जिन्हें धार्मिक आधार पर सताया गया है। इस विधेयक के विरोधियों की नीयत पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए जो विरोधी रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने के पक्षधर हैं, वही इस विधेयक में हिन्दुओं व अन्य मतावलंबियों को विशेष रूप से परिभाषित कर शरण देने का विरोध कर रहे हैं। इसके लिए उनके पास मजबूत तर्क भी है। जिस तरह देश की आजादी के समय भारत ने धर्म के आधार पर नागरिकता को स्वीकार नहीं किया, वहीं पाकिस्तान की स्थापना ही मुसलमानों के लिए अलग देश के रूप में हुई थी। ऐसे में भारतीय नागरिकता के लिए धर्म को आधार बनाया जाना संविधान सम्मत नहीं माना जा रहा। ऐसे लोग ही भाजपा पर धर्म व संघ की शरण में जाने का आरोप लगा रहा है।
नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोधियों की चिंता महज यह विधेयक नहीं है। इसे वे भविष्य में समान नागरिक संहिता की तैयारियों से भी जोड़कर देख रहे हैं। जिस तरह भाजपा पहले तीन तलाक, फिर धारा 370 के खिलाफ फैसले सहेजे कानून बना चुकी है, उसके बाद भाजपा विरोधियों को ऐसे ही उन सभी मसलों पर फैसलों का डर सता रहा है, जो संघ व भाजपा के एजेंडे में रहे हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक को तो भाजपा पहले ही पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से जोड़ने का एक कदम करार दे चुकी है। ऐसे में इस विधेयक के बाद पूरे देश में बसे अवैध घुसपैठियों की चिंता बढ़ेगी। तमाम जगह ये घुसपैठिये वोटर भी बन चुके हैं। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से पूरे देश के जुड़ने के बाद इनका मताधिकार छिनेगा। इन स्थितियों में इनके वोट पाने वाले राजनीतिक दलों की चिंता स्वाभाविक है। यह शोर-शराबा भी इसीलिए है। इस शोर-शराबे की चिंता किये बिना भाजपा अपने एजेंडे पर बढ़ रही है। इसमें कितनी और किस दिशा में सफलता मिलेगी, यह बात अभी काल के गर्भ में ही है।
डॉ. संजीव मिश्र
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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