- एक तरफ प्रदेश सरकार मनाने में खुश तो दूसरी ओर टांड़ा मैडिकल हस्पताल के रोगियों के दुःख-दर्द की शर्मनाक कहानियों से भरा हुआ-शांता कुमार
(Palampur News) आज समाज-पालमपुर। आज की सभी अखबारें एक तरफ हिमाचल सरकार के दो वर्ष के शानदार कार्यकाल के जश्न की खबरों से भरी हुई है और दूसरी तरफ एक हिन्दी समाचार पत्र का पूरा आधा पृष्ठ टाण्डा हस्पताल के रोगियों के दुःख-दर्द की शर्मनाक कहानियों से भरा हुआ है। ये शब्द पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री शान्ता कुमार ने जारी प्रैस विज्ञप्ति में कहे।
टांडा अस्पताल में एमआरआई के टैस्ट व रिपोर्ट के लिए करना पडता है 3 से 4 महिनों का इंतजार
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश का टाण्डा अस्पताल इस दृष्टि से सबसे अधिक बदनाम है। उसकी अव्यवस्था और रोगियों के परेशानी के समाचार लगभग आते रहते है। आज के समाचारों के अनुसार सिटी स्कैन और एम.आर.आई. करवाने के लिए लोगों को लगभग तीन माह का इन्तजार करना पड़ रहा है। तीन माह के बाद टेस्ट होता है तो उसकी रिपोर्ट के लिए लगभग 20 से 25 दिन का इन्तजार करना पड़ता है। एक मरीज ने कहा कि रिपोर्ट के लिए दो बार आया लेकिन 25 दिन बीत जाने के बाद भी रिपोर्ट नहीं मिली। एक और रोगी ने कहा तीन माह के बाद एम.आर.आई टेस्ट हुआ परन्तु रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली। इस प्रकार के बहुत से उदाहरणों से आधा पृष्ट भरा हुआ है।
दो करोड़ 50 लाख रूपये टाण्डा हस्पताल में सराये बनाने के लिए दिलवाये लेकिन अभी तक भी सराये का पूरा उपयोग शुरू नहीं हुआ
उन्होने कहा कि आज से लगभग 8 साल पहले सांसद के रूप में मैंने अपनी सांसद निधि से और एक निगम से सी.एस.आर. से दो करोड़ 50 लाख रूपये टाण्डा हस्पताल में सराये बनाने के लिए दिलवाये थे। इस में 25 लाख रूपये मेरे आग्रह पर पूर्व राज्यसभा सांसद विप्लव ठाकुर ने भी दिये थे। इसका शिलान्यास उस समय के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने और मैंने किया था। मेरे आग्रह पर मुख्यमंत्री महोदय ने घोषणा की थी कि एक साल में सराये का काम पूरा हो जाएगा। आठ साल बीत गये लेकिन अभी तक भी सराये का पूरा उपयोग शुरू नहीं हुआ है।
इसी अवधि में मैंने विवेकानन्द ट्रस्ट संस्थाओं के लिये कुछ निगमां से सी.एस.आर. का लगभग 22 करोड़ लिया है सारे काम पूरे हो गये। मेरे पास कोई अलग निर्माण विभाग नहीं है। कब दूर होगी यह सरकारों की यह नालायकी।
उन्होंने कहा आज से चार साल पहले कोविड में हमारा पूरा परिवार सक्रंमित हुआ। मैं अपनी धर्मपत्नी को लेकर पांच दिन टाण्डा अस्पताल में रहा। वहीं उसका निधन हुआ। उन पांच दिनों में हस्पताल की व्यवस्था आंखों देखी – आज भी याद करता हूं तो आंखों में आंसु आ जाते है। आज भी बच्चे मुझे पूछते है कि धर्मपत्नी को लेकर चण्डीगढ़ के किसी अच्छे हस्पताल में क्यों नहीं गये थे – इस प्रश्न का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है। मेरे लिए इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह था कि तब मेरी अपनी पार्टी की सरकार थी
उन्होने कहा कि यह कितना दुर्भाग्य है कि एक दानी सज्जन ने टाण्डा हस्पताल के लिए भूमि दी और सरकार के करोड़ों रूपये वहां खर्च हुए है परन्तु लगभग हर 15 दिन के बाद टाण्डा हस्पताल की दुर्दशा की खबरें पढ़ने को मिलती रहती है।