व्रत का शुभ मुहूर्त
जुलाई 19, 2021 को 22:00 बजे
देवशयनी एकादशी समाप्त – जुलाई 20, 2021 को 19:17 बजे
देवशयनी एकादशी व्रत पारण- जुलाई 21, 05:36 से 08:21 बजे
देवशयनी एकादशी के चार माह के बाद भगवान विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागतें हैं।
पूजा का मुहूर्त- साल 2021 में देव उठानी एकादशी 15 नवंबर की है, इसका शुभ मुहूर्त और समय कुछ इस प्रकार है-
पारण मुहूर्त – 15 नवंबर को, 13:09:56 से 15:18:49 तक
समाप्त होने का समय – 15 नवंबर को 13:02:41 पर देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह – इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है, तुलसी के पौधे व शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पुरे धूमधाम से की जाती है। एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
पूजा विधि: वे श्रद्धालु जो देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए।पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की
स्तुति करें
मंत्र: ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम।।’
अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं। इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।चातुर्मास में आध्यात्मिक कार्यों के साथ -साथ पूजा पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। चातुर्मास में सावन त्रश्रावण मासत्न के महीने को सर्वोत्तम मास माना गया है। श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित होता है। इसमें भगवान शिव और माता पार्वती धरती पर भ्रमण करने निकलते हैं और इस दौरान पृथ्वी लोक के कार्यों की देखभाल भगवान शिव ही करते हैं। माना जाता है कि चातुर्मास में जरूरतमंद व्यक्तियों को दान देने से भगवान प्रसन्न होते हैं।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी बेहद खास है। दरअसल, इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ हो रहा है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु समेत सभी देवतागण निद्रा में चले जायेंगे। आइये जानते हैं देवशयनी एकादशी की शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री से पूजा विधि तक की विधि।
एकादशी तिथि आरम्भ: 19 जुलाई 2021, सोमवार को रात्रि 09 बजकर 59 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 20 जुलाई 2021, मंगलवार को रात्रि 07 बजकर 17 मिनट तक
पारण (व्रत तोड़ने का) समय: 21 जुलाई 2021, बुधवार की सुबह 05 बजकर 36 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट तक
एकादशी पूजा सामग्री
सबसे पहले श्री विष्णु जी का एक चित्र अथवा मूर्ति ले लें, फिर पुष्प, नारियल, सुपारी, लौंग, घी, दीपक, धूप, फल, मिष्ठान, तुलसी दल, पंचामृत, चंदन, अक्षत समेत अन्य पूजन सामग्री इकट्ठा कर लें।
एकादशी व्रत विधि
एकादशी के दिन सुबह उठें, गंगाजल से स्नान करें, व्रत का संकल्प लें, विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करें, रात को दीपदान भी इस दिन करना चाहिए, एकादशी की रात्रि भगवान विष्णु का भजन कीर्तन भी करना बेहद लाभकारी होगा, इस दिन विशेष रूप से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें, श्री हरि विष्णु अपनी मनोकामनाएं मांगे, भूल के लिए क्षमा भी मांगे, द्वादशी तिथि पर फिर से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें, इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं, फिर जरूरतमंदों को क्षमतानुसार दान करें। मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु व अन्य देवतागण कुल चार मास के लिए निद्रा मुद्रा में चले जाते हैं। यही कारण है इसे चतुर्मास भी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी के बाद से चार माह तक सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित हो जाएंगे फिर देवउठनी एकादशी यानी 14 नवंबर, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष से सभी मांगलिक कार्य शुरू होंगे। हिंदू धर्म के अनुसार देवशयनी एकादशी से भगवान शिव सृष्टि का संचालन करेंगे। एक साल में कुल 24 कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी पड़ती है। कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी से विश्राम करने के बाद भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन सृष्टि का कार्यभार संभालते है।
देवशयनी एकादशी को देवदेवशयनी, हरिदेवशयनी, पद्मनाभा, शयनी तथा प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा!
धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा: हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूँ। एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया: सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अत: वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है। उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रुचि कहाँ रह जाती है। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी। राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दु:खी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन: सा पाप-कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। वहाँ विचरण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा। तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा: महात्मन?! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूँ। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया इसका समाधान करें। यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा: हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से ही संभव है। किंतु राजा का हृदय एक नरपराधशूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा: हे देव मैं उस निरपराध को मार दूँ, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपा करके आप कोई और उपाय बताएँ। महर्षि अंगिरा ने बताया: आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी। राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।