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Devotee Bhuradev Before Mother’s Darshan : हिंदू धर्म ग्रंथो में शाकंभरी (संस्कृत: शाकम्भरी) देवी को पार्वती माता का अवतार माना गया है। यह एक माँ दुर्गा का एक दिव्य रूप है जिन्हे “प्रकर्ति का वाहक” माना गया है। ऐसी मान्यता है कि अकाल के समय माता पार्वती शाकंभरी देवी के रूप में धरती पर आती हैं और लोगो को भोजन देती हैं। शाकंभरी देवी माँ आदिशक्ति पार्वती का एक अद्भुत रूप है। माँ भुवनेश्वरी ही पार्वती हैं जो संपूर्ण भू-मंडल की आदिश्वरी हैं।
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51 मे से एक शक्ति पीठ शाकुंभरी देवी
सिद्ध पीठ शाकुंभरी देवी मंदिर, सहारनपुर जिले में माँ दुर्गा का एक शक्ति पीठ है वैसे जगतमाता दुर्गा के 51 शक्ति पीठ है जिनमे से एक शक्ति पीठ शाकुंभरी है। सिद्ध पीठ शाकुंभरी देवी जिसका अर्थ है वह देवी जो अपने शरीर के शाखों द्वारा संसार का भरण पोषण करती है। शाकंभरी देवी सिद्ध पीठ मंदिर, उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में सहारनपुर से 40 किमी की दूरी पर जसमौर गांव में स्थित है। शाकुंभरी माता को समर्पित एक और मंदिर राजस्थान में सांभर झील के पास स्थित है। इसके अलावा शाकुंभरी देवी का एक बड़ा मंदिर कर्नाटक के बगलकोट जिले के बादामी में स्थित है।
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Devotee Bhuradev Before Mother’s Darshan : माँ पार्वती को ही माँ वैष्णो, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी, कामाख्या, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी भी कहा जाता है। मां शाकंभरी, रक्तिदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमा देवी, बनभौरी, भ्रामरी और श्री दुर्गा भी कहां जाता हैं।
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माता स्वयंभू रूप में प्रकट हुई Devotee Bhuradev Before Mother’s Darshan
माता श्री शाकंभरी भगवती का पवित्र प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठ शिवालिक पर्वतमाला के जंगलों में एक बरसाती नदी के तट पर है जिसका वर्णन पुराणों जैसे स्कंद पुराण, मार्कंडेय पुराण, भागवत आदि में मिलता है। माता शाकंभरी देवी का यह शक्तिपीठ एक पवित्र स्थान है। माता यहां स्वयंभू रूप में प्रकट हुई थीं। जनमानस के अनुसार, जगदंबा पार्वती के रूप माँ शाकुंभरी के इस धाम का पहला दर्शन एक चरवाहे ने किया था जिसकी समाधि आज भी मंदिर परिसर में बनी हुई है। माता के दर्शन से पहले यहां देवी के अनन्य भक्त भूरादेव के दर्शन करने का विधान है।
माँ शाकुंभरी देवी की कथा Devotee Bhuradev Before Mother’s Darshan
माँ शाकुंभरी देवी की कथा पुराणों में वर्णित है जिसके अनुसार पूर्व काल में दुर्गमासुर नाम का एक दानव था वह बहुत क्रूर था। वह, रुरु दैत्य का पुत्र तथा हिरण्याक्ष के परिवार में पैदा हुआ था। एक बार वह शक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से वह तपस्या करने के लिए हिमालय चला गया। उसने ब्रह्मा जी का ध्यान करते हुऐ कई वर्षों तक कठिन तपस्या की। तब भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हो उसे वरदान देने के लिए आए। उसने ब्रह्मा जी से चारो वेदो को प्राप्त कर लिया जिससे सभी ऋषि वेदों का ज्ञान भूल गये। जिससे पृथ्वी पर दैनिक यज्ञ अनुष्ठान और अन्य संस्कार आदि विलुप्त हो गए। जिससे देवता कमजोर और दानव बलशाली हो गये।
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अकाल जैसे हालत उत्पन्न हो गये Devotee Bhuradev Before Mother’s Darshan
सभी देवताओ ने सुमेरु पर्वत की गुफाओं और पहाड़ के दुर्गम दर्रों में जाकर शरण ली और महान देवी का ध्यान करना शुरू किया। देवताओ के क्षीण होने से पृथ्वी पर बारिश नहीं हुई और अकाल जैसे हालत उत्पन्न हो गये। पृथ्वी पर कोई बारिश नहीं हुई और यह अवस्था सौ वर्षो तक चली। जिससे अनगिनत लोग, और सैकड़ों हजारों जानवर मौत के ग्रास बन गए। जब संतो और ऋषियों ने ऐसी विपदाएँ देखी, तो उन्होंने शांत चित्त होकर बिना भोजन किए देवी की उपासना करने लगे।
सिद्ध पीठ शाकुंभरी देवी मंदिर Devotee Bhuradev Before Mother’s Darshan
इस प्रकार संतों की पुकार को सुनकर माहेश्वरी पार्वती देवी शिवालिक पहाड़ियों (वर्तमान शाकुंभरी मंदिर सहारनपुर) में प्रगट हुई, जहाँ देवता और ऋषि उनसे प्रार्थना कर रहे थे। तब सभी देवताओं ने माता से पृथ्वी वासियों के दुःख दूर करने के लिये प्रार्थना की। पृथ्वी पर इस भयानक स्थिति को देखकर माता ने शाकुंभरी देवी का रूप धारण कर अपने शरीर के भीतर असंख्य आँखें प्रगट कर उनकी और देखा तथा अपने नेत्रों से जल की वर्षा की जिससे पृथ्वी पर फिर से जीवन पनपने लगा। तब ऋषियों और देवताओं के साथ एकजुट होकर देवी की स्तुति की और शताक्षी देवी के रूप में उनका पूजन किया। देवी ने अपना एक अद्भुत रूप बनाकर अपने आठ हाथों में अनाज, सब्जियां, साग, फल और अन्य जड़ी बूटियों जैसे खाद्य पदार्थ प्रगट किये, देवी का यह नया रूप शाकंभरी माता के नाम से जाना जाने लगा।
माता से उस दैत्य का वध किया Devotee Bhuradev Before Mother’s Darshan
उसके बाद माता पार्वती ने दुर्गमासुर के पास दूत भेजकर वेद ब्रह्मा जी को वापस लौटाने और इंद्र को स्वर्ग वापस देने को कहां। तब दुर्गमासुर और माता के बीच भयकर युद्व हुआ जिसमे माता से उस दैत्य का वध किया। दुर्गमासुर का वध करने से वहां उपस्थित देवताओ और ऋषियों ने दुर्गा देवी के रूप में माता का पूजन किया।
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