सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा लिखी दवाई, गरीबों की जेब पर पड़ रही है भारी

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patients returning without medicine
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इशिका ठाकुर,करनाल :
सरकारी अस्पताल में मरीजों के लिए दवाइयां उपलब्ध होने के बावजूद सरकारी अस्पताल के डॉक्टर बाहर से मिलने वाली दवाइयां लिख रहे हैं। इसे नागरिक अस्पताल के डाक्टरों की मिलीभगत कहें या कोई लाचारी पर उनके द्वारा लिखी बाहर की दवाई गरीब मरीजों की जेब पर जरूर भारी पड़ रही है।निजी अस्पतालों में दो-तीन सौ रुपये की पर्ची से बच कर सरकारी अस्पताल में पांच रुपये की पर्ची बनवा कर इलाज करवाना गरीबों के लिए सपने जैसा हो गया है।

इसके पीछे बड़ा कारण है कि अस्पताल में दवाइयों का स्टाक तो पूरा है लेकिन जांच करने वाले डाक्टर अस्पताल के बाहर से मिलने वाली दवाइयां लिख रहे हैं। जिसके कारण गरीब मरीज बाहर से दवा लेने को मजबूर है। दवा वितरण खिड़की पर मरीज जब चिकित्सक की लिखी पर्ची देता है तो दवा वितरण कर्मचारी एक या दाे पत्ते मरीज की तरफ उछालकर बोलता है कि बाकी की तीन दवा बाहर से ले लेना। अब इसे कमीशन का खेल कहें या कुछ और पर यह सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है। हिसाब लगा सकते हैं जब मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र करनाल में ही यह हाल है तो पूरे हरियाणा के बाकी सरकारी अस्पतालों में क्या हाल होगा।

करनाल के सरकारी अस्पताल में डाक्टर “हम नहीं सुधरेंगे” की तर्ज पर काम कर रहे हैं। ऐसा

इसलिए कि स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज कई बार नसीहत दे चुके हैं कि मरीजों को बाहर की दवाई नहीं लिखी जाएगी। पर ये सच्चाई भी हकीकत से कोसों दूर है। वहीं, कुछ माह पहले सिविल सर्जन की टीम ने कुछ डाक्टरों को बाहर की दवाई लिखने पर नोटिस थमाते हुए चेतावनी भी दी थी। लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि आखिर किसके साए में रह कर मरीजों को लुटने पर मजबूर कर रहे हैं, ये जांच का विषय जरूर है।

Despite  availability of medicines in t government hospital doctors are prescribing medicines from outside.
Despite availability of medicines in t government hospital doctors are prescribing medicines from outside.

बाहर की अन्य दवाई लिखना कमीशनखोरी की ओर भी इशारा करता है

अस्पताल में रोजाना करीब दो हजार मरीज पंजीकरण करवाते हैं। जो डाक्टर से जांच के बाद पर्ची पर दवाई लिखवाते हैं लेकिन उस पर आधी से ज्यादा दवाई जिनकी कीमत अधिक होती है वह दवाई अक्सर बाहर की लिखी होती है। जिसके कारण मरीजों को मजबूरन महंगी दवाई बाहर से लेनी पड़ती है। अनुमान के अनुसार एक दवा सौ से पांच सौ रुपये तक की होती है।जिसके चलते गरीब लोगाें की जेब से करोड़ों रुपये का कारोबार केमिस्ट करते हैं। अस्पताल में दवाई स्टाक के पूरे होने के बावजूद बाहर की अन्य दवाई लिखना कमीशनखोरी की ओर भी इशारा करता है।

दवाई लेने के लिए आए हुए मरीजों का कहना है कि वह गरीब तथा दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोग हैं उनके पास किराए तक के पैसे नहीं होते हैं और जब वह बीमारियों में दवाई लेने के लिए सरकारी हॉस्पिटल में पहुंचते हैं तो उनको वह दवाई दी जाती है जो कम रेट की होती है। जो महंगी दवाई होती है उसको बाहर से लेने की सलाह दी जाती है । ऐसे में गरीब लोग कहां जाएं। इस मामले में जिला सिविल सर्जन डा योगेश शर्मा से बात की गई उन्होंने कहा कि नागरिक अस्पताल में डाक्टरों द्वारा बाहर की दवाई लिखने के मामले की जांच करवाई जाएगी। जांच में आरोप सिद्ध होने पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। पहले भी कुछ डाक्टरों को बाहर की दवाई लिखने को लेकर नोटिस दिए गए थे। अब दोबारा जांच करवाई जाएगी।

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