Desh main sab changa si! देश में सब चंगा सी!

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ठीक कहते थे जॉन केनेथ गैलब्रेथ कि दो तरह के भविष्यवक्ता होते हैं- पहले जो कुछ नहीं जानते और दूसरे जो यह नहीं जानते कि वे कुछ नहीं जानते। मनोविज्ञानियों ने आशावादी पूर्वाग्रह की खोज 1980 में ही कर ली थी। आज दुनिया के 80 प्रतिशत लोग इसके शिकार हैं। तथ्यहीन आशाओं के कारण इस पूर्वाग्रह के मरीजों को हमेशा लगता है कि मुसीबत उन पर नहीं पड़ोसी पर आएगी। आशावादी पूर्वाग्रहों से ग्रसित लोग सामूहिक अज्ञान में फंस जाते हैं।
वह तथ्यों और अतीत के अनुभवों को नकार कर पूर्वाग्रहों के आधार पर एक मनगढ़ंत सहमति बना लेते हैं। कुटिल राजनीति के लिए यह मन मांगी मुराद है। शायद यह आशावादी पूर्वाग्रह ही है जो कोविड से भारत में तकरीबन 45000 लोगों की मौत और प्रति दिन 60000 (विश्व में सबसे अधिक) से भी ज्यादा मामले आने के बाद भी लोगों में यह भावना बनाए हुए है कि भारत काफी बेहतर स्थिति में है।
एक और अति-आशावादी पूर्वाग्रह यह है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई है। हालांकि आंकड़े कुछ और ही खेल बयां करते हैं। आरबीआई के नियमित रूप से आने वाले सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था की स्थिति का नक्शा बताते हैं। उपभोक्ता विश्वास सूचकांक में गिरावट जारी है और जुलाई में यह अपने सबसे निचले स्तर 54 पर पहुंच गया। साथ ही कारोबारी विश्वास सूचकांक पिछली तिमाही के 102.2 से 2020-21 की पहली तिमाही में तेजी से गिर कर 55.3 पर आ गया।
बिक्री और कच्चे माल का अनुपात, पिछले वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही के बाद से बढ़ रहा है। यह कोविद से पहले भी अर्थव्यवस्था में मांग की कमी को दशार्ता है। अर्थव्यवस्था में विनिर्माण फर्मों की क्षमता मार्च 2019 में 76 प्रतिशत से घटकर मार्च 2020 में 69.9 प्रतिशत रह गई। कोविड के भारत में दस्तक देने से पहले ही नकारात्मक वृद्धि देखी जा रही थी, अब तो हालात और गंभीर हो गए हैं। एसबीआई की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि नकारात्मक ब्याज दरों के बावजूद लोग एहतियातन अपनी बचत बढ़ा रहे हैं। साफ है कि भविष्य अप्रत्याशित है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई में राज्य-वार जीएसटी संग्रह में अधिकांश राज्यों में महीने दर महीने 11.1 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।
सनद रहे, राज्यों के राजस्व का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा जीएसटी पर आश्रित है। इसके अलावा खरीद प्रबंधक के सूचकांक जैसे अन्य संकेतक आर्थिक गतिविधि मंदी की ओर इशारा करते हैं, निर्माण पीएमआई जुलाई में 46 तक गिर गया। वहीं सेवा क्षेत्र पीएमआई 34.2 रहा। आईएचएस मार्केट की रिपोर्ट के अनुसार, सेवा क्षेत्र के आउटपुट में तेज कमी देखी गई है। व्यापार और वाणिज्य के एक छद्म डीजल की बिक्री जुलाई में पिछले महीने से 13 प्रतिशत गिरी है। दैनिक रेलवे भाड़ा मात्रा जून के लगभग 3.1 मिलियन टन से गिरकर जुलाई में 3 मिलियन टन रह गया। इसके साथ जुलाई में व्यापार निर्यात वर्ष-दर-वर्ष 12 प्रतिशत कम रहा। दूसरी तरफ डीपीआईआईटी के अनुसार, भारत के प्रमुख उद्योगों ने जून 2020 में 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है।
इसके अलावा कभी भी घाटा न उठाने वाली तेल कंपनियां एक तिमाही में 40 प्रतिशत का नुक्सान दर्ज कर रही हैं। बाजार में सूचीबद्ध करीब 1640 प्रमुख कंपनियों के मुनाफे पिछले वर्ष की चौथी तिमाही में करीब 10.2 प्रतिशत गिरे। यह गिरावट कॉपोर्रेट टैक्स में कमी के बावजूद हुई। पहली तिमाही में ही भारत का राजकोषीय घाटा इस वित्त वर्ष के बजटीय लक्ष्य के 83.2 प्रतिशत तक पहुंच गया है। दूसरी तरफ आशावादीयों की नजर में चीन के बुरे दिन शुरू हो गए हैं। चीन के इतने बुरे दिन आए हैं कि उसके उत्पादों पर वैश्विक नकारात्मकता के बावजूद- बैकएंड नेटवर्क उपकरण और उपभोक्ता प्रौद्योगिकी उपकरण में चीनी प्रमुख हुआवे अप्रैल-जून तिमाही के दौरान वैश्विक डिवाइस शिपमेंट के मामले में सैमसंग को पिछाड़ शीर्ष स्मार्टफोन निमार्ता के रूप में उभरी है।
भगवान इतने बुरे दिन किसी को ना दिखाए। चीन कि मुसीबतें यहां पर नहीं थमतीं! जुलाई में (साल-दर-साल) चीन का निर्यात 7.5 प्रतिशत बढ़ा। जिसमें चीन का अमेरिका में निर्यात 12.5 प्रतिशत बढ़ा है और कुल आयात 1.4 प्रतिशत कम हो गया है। चीन जी-20 में एकलौती अर्थव्यवस्था है जिसके इस वर्ष सकारात्मक बढ़त दर्ज करने की उम्मीद है। चीन के लिए इससे बुरे दिन और क्या हो सकते थे?समस्या यह नहीं कि चीन कहां खड़ा है या वो क्या करता है? समस्या यह है कि हम अपनी समस्याओं को छोड़ दूसरों पर क्यों ध्यान केंद्रित करते हैं? समस्याओं का समाधान तभी हो सकता है जब हम यह मानें कि समस्या है। आशावादी पूर्वाग्रह से मन कि झूठी शान्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)