झारखंड में ‘जिहाद’ और ‘मतांतरण’ के कारण ‘डेमोग्राफी चेंज’

0
766
'Demography change' due to Jihad and transformation in Jharkhand

डॉ. महेंद्र ठाकुर,

इस महीने की 19 तारीख को इंडिया स्पीक्स डेली पर भारत सरकार के प्रशासनिक अधिकारी और सुप्रसिद्ध लेखक डॉ. शैलेन्द्र कुमार के यात्रा और गहन शोध पर आधारित ‘झारखंड, जिहाद और मतांतरण’ शीर्षक से 4 भागों में एक लेख श्रृंखला प्रकाशित की थी। अब तक इन चारों भागों को कुल मिलाकर 84 हजार से ज्यादा लोग पढ़ चुके हैं। एक दुःखद संयोग देखिये इस श्रृंखला के प्रकाशित होने के कुछ ही दिन बाद एक मुस्लिम जेहादी ने झारखंड के दुमका जिले की एक हिन्दू लड़की को आग लगाकर जला दिया। इस घटना से पूरा देश आक्रोशित है। लोगों का आक्रोश तब और अधिक बढ़ जाता है जब उस जेहादी का हँसता हुआ दुर्दांत चेहरा लोग वीडियो के माध्यम से देखते हैं।

झारखंड, जिहाद और मतान्तरण श्रृंखला में वनवासी राज्य झारखंड पिछले दशकों में जिस तीव्र गति से बड़ी मुस्लिम और ईसाई जनसंख्या के कारण सुलग रहा है इसका प्रमाणिक विश्लेषण किया गया है। झारखंड लंबे समय से जिहाद और मतांतरण का दोहरा दंश झेल रहा है। बांग्लादेश के निकट होने से झारखंड, मुसलमान घुसपैठियों की शरणस्थली और वनाच्छादित होने से वनवासियों के मतांतरण के लिए निरापद स्थान बन गया। कोई आश्चर्य नहीं कि आज झारखंड की जनसांख्यिकी में अभूतपूर्व परिवर्तन अर्थात ‘ डेमोग्राफिक चेंज’ हो चुका है। आनुपातिक दृष्टिकोण से झारखंड का हिन्दू समाज और उसका अभिन्न अंश वनवासी समाज दोनों ही पिछले सात दशकों से निरंतर घटते रहे हैं।

दूसरी ओर, झारखंड का एक जिला ईसाई-बहुल हो चुका है, जबकि लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व एक भी ईसाई इस पूरे क्षेत्र में ही नहीं था। इसी तरह झारखंड के दो जिले पाकुड़ और साहिबगंज मुसलमान-बहुल होने की ओर अग्रसर हैं। आखिर ऐसा परिवर्तन कैसे हुआ और अब क्या किया जा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर यथाशीघ्र ढूंढने की आवश्यकता है। यह समझने के लिए पत्रिका पांचजन्य का एक ट्वीट ही काफी है,” “CM योगी, PM मोदी, गृहमंत्री अमित शाह इस्लाम कबूल कर लें क्योंकि हिंदू धर्म फर्जी है और देवी-देवता काल्पनिक हैं।” : झारखंड के मौलाना नवाब शेख ने उगल जहर।

जी हाँ! झारखंड का एक ‘दो टके’ का मौलाना देश के प्रधानमन्त्री, गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को विश्व हिन्दू परिषद के नेता को व्हाट्सप्प मैसेज करके इस्लाम कबूल करने की धमकी दे रहा है। इस प्रकरण पर ओपिन्डिया ने एक विस्तृत स्टोरी भी लिखी है। वनवासियों के विकास के नाम पर बना झारखंड राज्य आखिर इतना सम्वेदनशील कैसे बन गया? कभी मुख्यमंत्री के अगल बगल के लोगों के पास करोड़ों रूपए पकड़े जाते हैं तो कभी ऐके-47, और हाल ही में एक हिन्दू लडकी को पैट्रोल डालकर आग लगाने की घटना तो सीमोलंघन हो गया है। ध्यान पूर्वक झारखंड की स्थिति पर दृष्टि डालें तो पता चलेगा कि झारखंड में बहुत तेजी से ‘डेमोग्राफिक चेंज’ हो रहा है। बंगलादेश से सटे होने के कारण यह समस्या और विकराल हो रही है।

भोले-भाले वनवासियों का धर्म परिवर्तन जोरों से हो रहा है। वनवासी युवतियां लव जिहाद के लिए बहुत सॉफ्ट टारगेट होती हैं। लैंड जिहाद के लिए लव जिहाद का खेल खेला जाता है। झारखंड की अधिकाँश शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर ईसाई चर्च का कब्जा है। प्रकृति पूजक वनवासी समुदाय को हिन्दू समाज से अलग करने और मतान्तरित करने के कुत्सित षड्यन्त्र के तहत “आदिवासी” कहा जाता है। जब भी कोई वनवासी ईसाई अथवा मुस्लिम बनता है, तो वह अपना धर्म, संस्कृति, भाषा या बोली, आस्था-विश्वास सब कुछ गवाँ देता है । जिन चीजों पर उसे गर्व होना चाहिए अब उन्हीं चीजों से उसे वितृष्णा होने लगती है। यही सब झारखंड में हो रहा है।

डॉ शैलेन्द्र कुमार के शोधपूर्ण लेख में झारखंड में वर्ष 1951 से 2011 तक दशक अनुसार सभी समुदायों का जनसंख्या प्रतिशत दिया गया है। यह डेटा चौंकाने वाला है। डेटा के अनुसार झारखंड में हिन्दू वर्ष 1951 में 87.79% थे जबकि वर्ष 2011 आते-आते हिन्दुओ का जनसंख्या प्रतिशत घटकर 81.17% हो गया है। निःसंदेह वर्तमान 2022 में यह प्रतिशत और कम हुआ होगा। वहीं झारखंड में मुस्लिम वर्ष 1951 में 8.09% थे जबकि वर्ष 2011 आते-आते मुस्लिमों का जनसंख्या प्रतिशत बढ़कर 14.53% हो गया है। और यदि ईसाई जनसंख्या के प्रतिशत पर दृष्टि डाले तो वह वर्ष 1951 में 4.12% से बढ़कर 2011 में बढ़कर 4.30% थी।

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि बांग्लादेशी घुसपैठ, मुसलमानों की उच्च जन्म दर और ईसाइयों द्वारा किए जा रहे मतांतरण के परिणामस्वरूप मुसलमान और ईसाईयों की जनसंख्या झारखंड में व्यापक रूप से बढ़ रही है। इन दोनों समुदायों के कारण राज्य का धर्म, सभ्यता और संस्कृति नष्ट हो रही है । मुसलमान-बहुल क्षेत्रों में सर्वत्र मस्जिद, कब्रगाह, दरगाह, मजार आदि देखे जा सकते हैं । उर्दू के प्रति पागलपन जैसा लगाव देखा जा सकता है । मुसलमानों छोड़ कर जिस भाषा को कोई नहीं जानता उसका प्रयोग करना समाज और राष्ट्र-विरुद्ध बात है । दुर्भाग्य से झारखंड में उर्दू का जोर बढ़ता जा रहा है । इसी प्रकार मदरसों का भी जोर बढ़ता जा रहा है ।

अभी हाल ही में सैकड़ों की संख्या में ऐसे सरकारी विद्यालयों का पता चला है जिनमें न जाने कब से रविवार के स्थान पर शुक्रवार को छुट्टी दी जा रही थी । मुसलमान शिक्षकों का कहना है कि इन विद्यालयों में लगभग सभी-के-सभी छात्र मुसलमान हैं, जो शुक्रवार को नमाज पढ़ने के लिए एक से दो घंटे तक की छुट्टी लेते थे, इसलिए शुक्रवार को छुट्टी करने का निर्णय लिया गया। शुक्रवार के स्थान पर रविवार को विद्यालय खोले जाते हैं। यह कितना चिंताजनक, विभेदकारी और पृथकतावादी कदम है! विद्यालयों की छुट्टी क्या छात्रों के धर्म, मजहब या रिलिजन से तय होगी ?

फिर इस देश का क्या होगा? झारखंड की संस्कृति पर मुसलमानों की निरंतर बढ़ती संख्या का ऐसा असर पड़ा है कि यह राज्य गायों की तस्करी में अग्रणी है। यह काम रात-दिन अर्थात निरंतर चलता रहता है । वैसे भी यह तस्करी लंबे समय से चल रही है। कोई भी गायों के झुंडों को ले जाते हुए देख सकता है। जिस झारखंड में बाबा बैद्यनाथधाम, बासुकिनाथधाम और छिन्नमस्तिका जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं, वहाँ ऐसा नहीं लगता कि यह राज्य हिन्दू-बहुल और हिन्दू संस्कृति का पोषक है। सर्वत्र मांसाहार के चिह्न देखे जा सकते हैं ।

सर्वाधिक दयनीय स्थिति है वनवासी समाज की। झारखंड में मुसलमान और ईसाई वनवासी समाज को निगल कर ही बलिष्ठ हो रहे हैं । 2001 में वनवासी धर्मावलंबियों का प्रतिशत था 13.04, जो 2011 में घटकर रह गया 12.84 प्रतिशत । 2001 में पहली बार मुसलमानों का अनुपात (13.8%), वनवासियों के अनुपात (13.04%) से आगे निकल गया । कैसी विडंबना है कि आज झारखंड में वनवासी धर्मावलंबियों से अधिक संख्या मुसलमानों की है । जिस वनवासी समाज के नाम पर पृथक राज्य बना ताकि इस समाज का विकास होगा उसके धर्म का ही लोप हो गया है ।
यदि समय रहते महामारी की तरह बढने वाली मुस्लिम और ईसाई जनसंख्या के कारण होने वाले ‘डेमोग्राफिक चेंज’ समस्या का निदान नही किया गया तो झारखंड में होने वाली अमानवीय घटनाओं का स्तर बढ़ेगा और यह देश के खतरे की घंटी है।

डॉ. महेंद्र ठाकुर, हिमाचल प्रदेश आधारित फ्रीलांसर स्तंभकार हैं साथ ही कई बेस्टसेलर और सुप्रसिद्ध पुस्तकों के हिंदी अनुवादक भी हैं। इनका ट्विटर हैंडल @Mahender_Chem है।

Connect With Us: Twitter Facebook