दिल्ली में चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है। 08 फरवरी को वहां आम चुनाव होंगे जबकि तीन दिन बाद 11 फरवरी को वोटों की गिनती होगी। इस घोषणा के बाद दिल्ली में सियासी घमासान की सियासी रणभूमि तैयार हो चुकी है। राज्य में अबकी बार झाड़ू चलेगी या कमल खिलेगा कुछ कहना मुश्किल है। लेकिन इतनी बात तय हैं कि वहां सीधी लड़ाई भाजपा और आप के बीच है जबकि कांग्रेस तीसरे पायदान पर दिखती है। राष्टÑीय विचारधारा वाले राजनैतिक दलों भाजपा और कांग्रेस के लिए आप से कड़ी चुनौती मिलती दिखती है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की आमद के बाद दोनों दलों का अस्तित्व दांव पर है। कांग्रेस और भाजपा दिल्ली में अपनी खोई हुई जमीन तलाशने में जुटी हैं। शीला दीक्षित के जाने के बाद कांग्रेस में कोई दमदार नेतृत्व नहीं दिख रहा। कांग्रेस ने अजय माकन को भी हासिए पर ढकेल दिया है। अस्त्विवाली इस चुनावी जंग में माकन अपने को कितना सफल साबित कर पाते हैं यह तो वक्त बताएगा। जबकि भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष और सासंद मनोज तिवारी पर कुछ अधिक भरोसा जता रही है। वह हरदीपपुरी और मनोज तिवारी को आगे कर सिख समुदाय के साथ यूपी और बिहार के लोगों पर अपनी जमीन तैयार कतरी दिखती है। हालांकि यह पूरी जिम्मेदारी के साथ नहीं कहा जा सकता है कि जीत के बाद भाजपा मनोज तिवारी या हरदीपपुरी को केंद्र शासित दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाएगी। वह अतत: डॉ. हर्षबर्द्धन पर दांव खेल सकती है। क्योंकि दिल्ली में एक सुलझे हुए मुख्यमंत्री की जरुरत होगी। फिलहाल यह ख्याली पुलाव है दिल्ली तो अभी दूर है। दिल्ली का आम चुनाव भाजपा के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा। क्योंकि हाल ही में उसके हाथ से महाराष्टÑ के बाद झारखंड जैसा राज्य निकल गया है। इसके पूर्व मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ फिसल चुके हैं। हरियाणा में जैसे-तैसे जोड़तोड़ कर सरकार बनाई गई। 22 राज्यों से सिमट कर वह 17 पर पहुंच चुकी है। महाराष्ट्र में उसकी सियासी चाल सफल नहीं हो पाई। मराठा क्षत्रप शरद पवार अपनी पांवर गेम का इस्तेमाल कर भाजपा और शिवसेना की 33 साल पुरानी दोस्ती तोड़ने में कामयाब हुए। शिवसेना और भाजपा की तल्खी दिनों-दिन बढ़ती दिखती है। झारखंड में कांग्रेस और जेएमएम की दोस्ती उसका पांव उखाड़ने में कामयाब रही। जनता ने राष्ट्रीय मुद्दों सीएए , एनआरसी, धारा-370 और राममंदिर और तीन तलाक जैसे मसलों को तरजीह देने के बजाय स्थानीय समस्याओं पर वोटिंग किया, जिसकी वजह से भाजपा को सत्ता गवांनी पड़ी। मुख्यमंत्री रघुबरदास खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए और विरोध पर उतरे अपने राजनीतिक दोस्त सरयू प्रसाद से हार गए। राज्यों में एक के बाद एक खींसकती जमींन से यह साबित हो रहा है कि जनता अब राष्टÑीय मसलों के बजाय जमीनी मुद्दों पर वोट करना चाहती है। दिल्ली में वह मोदी को देखना चाहती है जबकि राज्य में वह अपने मनमाफिक सरकार बनाना चाहती है। उस हालात में दिल्ली का रण भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। चुनाव पूर्व जो सर्वे आए हैं वह चौकाने वाले हैं। संबंधित सर्वे में भाजपा और कांग्रेस की जमीन खीसकती नजर आती है। जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रधामंत्री मोदी के चेहरे पर दिल्ली की सात की सातों सीट पर कब्जा कर लिया था।
दिल्ली में चुनाव पूर्व एक निजी चैनल के जो सर्वे आए हैं वह कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों की नींद उड़ाने वाले हैं। सर्वे में 13 हजार से अधिक लोगों को शामिल किया गया है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में आम आदमी पार्टी को 59 भाजपा को 08 और कांग्रेस को 03 सीट मिलने की संभावना जाताई गई है। हालांकि यह सिर्फ आंकलन है, इसमें काफी फेरबदल हो सकता है। लेकिन चुनाव पूर्व ऐसे सर्वेक्षणों को झुठलाया भी नहीं जा सकता है। क्योंकि हरियाणा और झारखंड में कुछ इसी तरह सर्वे आए थे। सर्वेक्षणों से यह बात तो सच साबित होती है कि दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस को सीधी टक्कर दे रही है। दोनों राष्टÑीय दलों से उसकी स्थिति काफी मजबूत है। सर्वेक्षणों में अगर 10 सीट का भी फेदबदल भी हो जाए तो भी आप की स्थिति दिल्ली में काफी मजबूत दिखती है। मुख्यमंत्री केजरीवाल बेहद सधी रणनीति से चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। स्कूलों में सीधे संवाद स्थापित कर रहे हैं। दिल्ली भर में सीसी टीवी कैमरे और नई बसों की आमद का ऐलान किया है। विदेशी तकनीक पर कॉलोनियों और सड़कों के विकास की बात कर रहे हैं। कॉलोनियों को वैध करने का भी तोहफा दिया है। दिल्ली की जनता को खैरात बिजली और पानी की याद भी दिला रहे हैं। दिल्ली में आम जनता को बेहतर इलाज का भी वादा किया है। आटो वालों को विशेष सहूलियत दिया है। उधर भाजपा ने भी झुग्गी-झोपड़ियों को नियमित करने के साथ दूसरी सुविधाओं का एलान किया है। जबकि कांग्रेस के पास शीला दीक्षित के विकास और उनकी यादों के सिवाय कुछ भी नहीं है। इस तरह के हालात में कौन किस पर भारी पड़ेगा यह वक्त बताएगा।
दिल्ली में चुनाव पूर्व कराए गए सर्वे में कहा गया है कि 56 फीसदी जनता विकास को तरजीह देती है। जबकि 31 फीसदी अर्थव्यवस्था और 06 फीसदी सुरक्षा और 07 फीसदी अन्य बातों पर वोट करना चाहती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री के रुप में केजरीवाल जनता की पहली पसंद हैं। 70 फीसदी लोग उन्हें बतौर मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं जबकि 11 फीसदी के साथ डॉ. हर्षवर्द्धन दूसरे और सात फीसदी के साथ अजय माकन तीसरे और महज एक फीसदी के साथ मनोज तिवारी चौथे पायदान पर हैं। समस्या समाधान को लेकर दिल्ली वासियों ने सबसे अधिक केजरीवाल पर भरोसा जताया है। 33 फीसदी जनता का विश्वास है कि उनकी समस्याओं का समाधान आम आदमी पार्टी कर सकती है। जबकि 17 और पांच फीसदी ने भाजपा और कांग्रेस पर विश्वास जताया है।
2015 में आम आदमी पार्टी यानी झाडू को 70 सीटों में से 67 पर विजय हासिल हुई थी। भाजपा को सिर्फ तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा था। वहीं कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। जबकि 2013 में केजरीवाल की आप को 28 भाजपा 31 जबकि कांग्रेस को 08 सीट मिली थी। हालांकि सर्वे में बतौर प्रधानमंत्री देखा जाय तो नरेंद्र मोदी आज भी दिल्ली की जनता की पहली पंसद हैं। इस लिहाज से देखा जाय तो दिल्ली में केजरीवाल का जलवा कायम है। भाजपा और कांग्रेस लाख कोशिश के बाद भी जनता में खुद का भरोसा जमाने में नाकामयाब दिखती हैं। मुख्ममंत्री केजरीवाल बेहद सधी नीति पर आगे बढ़ रहे हैं। जनता के बीच वह अपनी बात लेकर जा रहे हैं। वह भाजपा और कांग्रेस जैसे विरोधी दलों के हमलों में अपना वक्त नहीं जाया कर रहे हैं। सीएए और एनआरसी, जामिया, जेएनयू जैसे मसलों पर वह चुप हैं। गृहमंत्री अमितशाह के सियासी हमलों पर भी केजरीवाल ने कुछ नहीं कहा है। फिलहाल कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों के लिए बड़ी कठिन है डगर पनघट की कहावत चरितार्थ दिखती है। कांग्रेस और भाजपा आप के मुकाबले अपने को कितना बेहतर साबित कर पाती हैं यह तो वक्त बताएगा।
प्रभुनाथ शुक्ल
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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