Delhi Pollution | राकेश शर्मा | नई दिल्ली | राजनीति का इससे क्रूरतम और वीभत्स चेहरा मैंने अपने जीवन में आज तक नहीं देखा जब भयंकरतम प्रदूषण के कारण दिल्लीवासियों का दम घुट रहा है, जिंदगी नर्क हो गई है, बच्चे, बीमार, बुजुर्ग बीमारियों और मौत का आलिंगन करने को मजबूर है।
एक्यूआई का स्तर 400 पार कर गया है। दस वर्ष से आप सरकार दिल्ली में शासन कर रही है और दिल्ली का प्रदूषण साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है, दिल्ली को संसार के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता है। और आप पार्टी का शीर्ष नेतृत्व झूठी और अस्थायी मुख्यमंत्री आतिशी, उसके धूर्तता के राजनैतिक गुरु अरविंद केजरीवाल, गुरु भाई संजय सिंह, गोपाल राय इत्यादि इत्यादि दिल्ली को मौत के कुएं में धकेलने के लिए राजनीति से बाज नहीं आ रहे।
आये भी कैसे इनकी तो सारी राजनीति ही धूर्तता, फरेब, मक्कारी, झूठ और भ्रम पर आधारित है। जब दिल्ली के प्रदूषण के कारण हवा में जहर है, दिल्ली वालों पर कहर है, दिल्ली हांफ रही है, खांस रही है, मरने को मजबूर है, फेफड़े बर्बाद हो रहे हैं, तरह-तरह की नई बीमारियां घर में प्रवेश कर रहीं है, डॉक्टर्स की मोटी फीस भरनी पढ़ रही है, पिछले सालों की तुलना में पंद्रह प्रतिशत प्रदूषण के केस बढ़ गये हैं।
जिस दिल्ली की जनता को दुनिया का सबसे खूबसूरत शहर बनाने का स्वप्न दिखा कर सत्ता में आये थे उन्होंने शहर को तो नर्क बनाकर अपना घर सारी दुनिया में खूबसूरत जरूर बना लिया और झूठ बोल रहे हैं कि प्रदूषण का कारण हरियाणा और उत्तर प्रदेश है। कल तक पंजाब को दोष देते थे आज पंजाब का नाम भी नहीं लेते क्यूंकि वहां भी अब इनकी सरकार है। इसीलिए मैं इसे धूर्त राजनीति से प्रेरित कहता हूं।
मैं शर्त लगा कर कह सकता हूं कि पिछले दस वर्षों के समाचार पत्र उठाकर या टीवी क्लिपिंग निकालकर देख लीजिए इनके यही जुमले दिखेंगे कि प्रदूषण पड़ोसी राज्यों के कारण है, इनका तो कोई दोष ही नहीं है, यह तो पाक साफ हैं। लाहनत है इनकी आत्मा पर जो दिल्ली वालों को मौत के कुएं में धकेलकर तांडव कर रहे हैं।
विश्व के कितने शहर हैं जहां गाड़ियां कम नहीं है, आबादी कम नहीं है, औद्योगिक उत्पादन कम नहीं है। लेकिन एक्यूआई लगभग दिल्ली के आजकल के 400 के स्तर के बजाय दस रहता है। ज्ञात हो कि वैश्विक स्तर पर एक्यूआई पचास से सौ तक अच्छा माना जाता है और 400 का स्तर तो जहरीला और स्वस्थ व्यक्ति को भी बीमार करने वाला माना जाता है।
अब प्रश्न उठता है कि हर साल इसी मौसम में दिल्ली सरकार दिखावटी प्रदूषण कम करने के (अ)सफल प्रयास करती क्यूं दिखाई देती है, क्यूं बारह महीने प्रदूषण को सर्वोत्तम प्राथमिकता नहीं दी जाती।
क्यूं नहीं विदेशी सैर सपाटे की जगह जिम्मेदार मंत्री और अधिकारी विश्व के उन शहरों का दौरा कर पता लगाते कि प्रदूषण को शून्य स्तर पर रखने को वह क्या करते हैं। जानकारी प्राप्त कर उन्हें क्यूं दिल्ली में लागू नहीं करते जिससे की भारत की राजधानी दिल्ली के निवासियों को मौत के कुएं से बाहर निकाल सकें।
कल ही एक जगह संख्या पढ़ रहा था की हर साल भारत में प्रदूषण से 16 लाख मौतें होती हैं। जिसमें एक लाख मौतें नवजात शिशुओं की होती है। क्या दोष है इनका, सिर्फ दोष है दिल्ली रहते है। विश्व के प्रदूषण रहित शहरों में रहने वाले लोगों की बजाय दिल्ली में रहने वाले लोगों की आयु ग्यारह वर्ष कम होती है, यह आंकड़ा भारत के संदर्भ में पांच वर्ष है।
अरबों रुपया लोगों का इस प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियों से निपटने में खर्च होता है। सरकार मुफ्त की रेवड़ियां जिनको बांटती है यदि उसे प्रदूषण रोकने पर खर्च कर दे तो उनका डाक्टरों पर खर्च कितना कम होगा और जान भी बचेगी। कल बहुत से फेफड़ों के डाक्टरों से भी बात हुई और सभी ने इस प्रदूषण के प्रति गंभीर चिंता जतायी और कहा यह सिफ खांसी और फेफड़ों तक सीमित नहीं है बल्कि इससे दिल और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती है।
अस्थायी मुख्यमंत्री और स्थायी मुख्यमंत्री केजरीयल और सभी आप नेताओं के झूठों के झुंड से अपील करता हूं कि यह प्रदूषण आपके परिवार, मित्रों और रिश्तेदारों को भी प्रभावित करता है, उन्हीं के लिए गंभीर होकर इसके रोकथाम के बारह महीने प्रयास करो। जिसको स्वार्थी लाभ का नुकसान होता हो तो हो। जिंदगी बहुत कीमती है।
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