Mumbai News : मोदी का 2029 से 2047 तक भारत को विश्व विजयी बनाने का संकल्प

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Modi's resolve to make India a world champion from 2029 to 2047

(Mumbai News)मुंबई| मुंबई के फिनटेक अनतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने फाइनेंस से जुड़े सैकड़ों पुराने अनुभवी और युवा प्रबंधकों को वित्तीय क्षेत्र में अपार संभावनाओं सफलताओं का विश्वास दिलाते हुए कहा ‘ मैं इस प्रगति पर 2029 में फिर आपके ऐसे सम्मेलन में आकर बात करूँगा | ‘ इस बात की गूंज लन्दन वाशिंगटन तक पहुंची | लंदन से फाइनेंस से जुड़े एक मित्र ने मुझसे फोन करके पूछा – ‘ नरेंद्र मोदी का आत्म विश्ववास गजब का है | अभी तीसरी बार जीतकर आए हैं और 2029 में चौथी बार प्रधान मंत्री बनकर फाइनेंस के टेक्नो क्रांति को बढ़ाने और 2047 में विकसित भारत की घोषणा ही कर दी है | तब इनकी उम्र क्या होगी ? ‘ मैंने उत्तर दिया – ‘ आप जोड़ लें – 17 सितम्बर 1950 का जन्म है , तो 79 के हो जाएंगे और 2047 में 97 के होंगे | इससे क्या फर्क पड़ता है | उनका एक आदर्श वाक्य है – ‘”जब हम तय करते हैं कि हमें कुछ करना है, हम मीलों आगे जा सकते हैं ” , इसलिए वर्षों की गिनती के बजाय मोदी को अपने और देश के लिए लक्ष्य निर्धारित करने और उसके क्रियान्वयन की पूरी योजना बनाने की आदत है | फिर हमारे यहाँ एक सौ वर्ष की आयु की प्रार्थना तथा आशीर्वाद की परम्परा है | मोदीजी की माताजी की आयु भी 99 की रही है |

सचमुच इस तरह के आत्म विश्वास और दूर दृष्टि वाला कोई अन्य नेता विश्व में नहीं दिखाई देता | देश इस 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 74वां जन्म दिन मनाएगा | भाजपा और उनके समर्थक इसे सेवा पखवाड़े की तरह गाँधी जयंती 2 अक्टूबर तक मनाएंगे | स्कूली जीवन से नरेंद्र मोदी को मंच पर बोलने , नायक की भूमिका ही निभाते हुए आसपास के गरीब साथियों और गाँव के लोगों की सहायता , उनके जीवन में बदलाव के प्रयास की इच्छा शक्ति रही है |

संघर्ष की क्षमता और जीवन मूल्यों की दृढ़ता

सत्ता, संपन्नता, शिखर-सफलता अधिक महत्वपूर्ण है- संघर्ष की क्षमता और जीवन मूल्यों की दृढ़ता। इसलिए नरेन्द्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री पद और राजनीतिक सफलताओं के विश्लेषण से अधिक महत्ता उनकी संघर्ष यात्रा और हर पड़ाव पर विजय की चर्चा करना मुझे श्रेयस्कर लगता है। राजधानी में संभवतः ऐसे बहुत कम पत्रकार इस समय होंगे, जो 1972 से 1976 के दौरान गुजरात में संवाददाता के रूप में रहकर आए हों। इसलिए मैं वहीं से बात शुरू करना चाहता हूँ। हिन्दुस्तान समाचार (न्यूज एजेंसी) के संवाददाता के रूप में मुझे 1973-76 के दौरान कांग्रेस के एक अधिवेशन, फिर चिमन भाई पटेल के विरुद्ध हुए गुजरात छात्र आंदोलन और 1975 में इमरजेंसी रहते हुए लगभग 8 महीने अहमदाबाद में पूर्णकालिक रहकर काम करने का अवसर मिला था।

इमरजेंसी के दौरान नरेन्द्र मोदी भूमिगत रूप से संघ-जनसंघ तथा विरोधी नेताओं के बीच संपर्क तथा सरकार के दमन संबंधी समाचार-विचार की सामग्री गोपनीय रूप से पहुंचाने का साहसिक काम कर रहे थे। लेकिन संयोग से नरेन्द्र भाई के अनुज पंकज मोदी भी हिन्दुस्तान समाचार कार्यालय में काम कर रहे थे। उन्हीं दिनों पंकज भाई और ब्यूरो प्रमुख भूपत पारिख से इस परिवार और नरेन्द्र भाई के किशोर-युवा काल से संघ तथा समाज सेवा के प्रति गहरी निष्ठा एवं लेखन क्षमता की जानकारियाँ मिलीं। इसलिए यह कह सकता हूँ कि सुरक्षित जेल (और बड़े नेताओं के लिए कुछ हद तक न्यून्तम सुविधा साथी भी) की अपेक्षा गुपचुप वेशभूषा बदलकर इमरजेंसी और सरकार के विरुद्ध संघर्ष की गतिविधयाँ चलाने में नरेन्द्र मोदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भेस बदलकर गुजरात पहुंच थे सोशलिस्ट जार्ज फर्नांडीस

गिरफ्तारी से पहले सोशलिस्ट जार्ज फर्नांडीस भी भेस बदलकर गुजरात पहुंच थे और नरेन्द्र भाई से सहायता ली थी। मूलतः कांग्रेसी लेकिन इमरजेंसी विरोधी रवीन्द्र वर्मा जैसे अन्य दलों के नेता भी उनके संपर्क से काम कर रहे थे।अपनी पहली किताब ‘आपातकाल में गुजरात’ उन्होंने उस जमाने में लिखी थी, जब वह युवा थे और गुजरात में आपातकाल के खिलाफ भूमिगत संघर्ष कर रहे थे | यह वह दौर था जब नरेंद्र मोदी संघ से जुड़ हुए थे | इस किताब में नरेंद्र मोदी ने आपातकाल की दुश्वारियों का वर्णन किया है | यह किताब गुजराती में है |बताते हैं कि इस किताब को लिखने के लिए नरेंद्र मोदी ने खाना तक छोड़ दिया था | उन्होंने 23 दिन तक नींबू पानी पीकर इस किताब को लिखा था |

संघर्ष के इस दौर ने संभवतः नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति की कटीली-पथरीली सीढ़ियों पर आगे बढ़ना सिखा दिया। लक्ष्य भले ही सत्ता नहीं रहा हो, लेकिन कठिन से कठिन स्थितियों में समाज और राष्ट्र के लिए निरंतर कार्य करने का संकल्प उनके जीवन में देखने को मिलता है। इस संकल्प का सबसे बड़ा प्रमाण भाजपा को पूर्ण बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में आने के कुछ ही महीनों में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने बाकायदा संसद की स्वीकृति के साथ -कश्मीर के लिए बनी अस्थायी व्यवस्था की धारा 370 की दीवार ध्वस्त कर लोकतांत्रिक इतिहास का नया अध्याय लिख दिया। सामान्यतः लोगों को गलतफहमी है कि मोदी जी को यह विचार तात्कालिक राजनीतिक-आर्थिक स्थितियों के कारण आया। हम जैसे पत्रकारों को याद है है कि 1995-96 से भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के रूप में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल के साथ जम्मू-कश्मीर में संगठन को सक्रिय करने के लिए पूरे सामथ्र्य के साथ जुट गए थे।

छत्तीसिंगपुरा में आतंकवादियों ने 36 सिखों की नृशंस हत्या

हम लोगों से चर्चा के दौरान भी जम्मू-कश्मीर अधिक केन्द्रित होता था, क्योंकि भाजपा को वहां राजनीतिक जमीन तैयार करनी थी। संघ में रहते हुए भी वह जम्मू-कश्मीर की यात्राएं करते रहे थे। लेकिन नब्बे के दशक में आतंकवाद चरम पर था। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल किंलटन की भारत-यात्रा के दौरान कश्मीर के छत्तीसिंगपुरा में आतंकवादियों ने 36 सिखों की नृशंस हत्या कर दी। प्रदेश प्रभारी के नाते नरेन्द्र मोदी तत्काल कश्मीर रवाना हो गए। बिना किसी सुरक्षाकर्मी या पुलिस सहायता के नरेन्द्र मोदी सड़क मार्ग से प्रभावित क्षेत्र में पहुंच गए। तब फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। जब पता लगा तो उन्होंने फोन कर जानना चाहा कि ‘आप वहाँ कैसे पहुंच गए।

आतंकवादियों द्वारा यहां वहां रास्तों में भी बारूद बिछाए जाने की सूचना है। आपके खतरा मोल लेने से मैं स्वयं मुश्किल में पड़ जाऊँगा।’ यही नहीं उन्होंने पार्टी प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी जी से शिकायत की कि, आपका यह सहयोगी बिना बताए किसी भी समय सुरक्षा के बिना घूम रहा है। यह गलत है। आडवाणी जी ने भी फोन किया। तब भी नरेन्द्र भाई ने विनम्रता से उत्तर दिया कि मृतकों के अंतिम संस्कार के बाद ही वापस आऊँगा। असल में सबको उनका जवाब होता था कि ‘अपना कर्तव्य पालन करने के लिए मुझे जीवन-मृत्यु की परवाह नहीं होती’। जम्मू-कश्मीर के दुर्गम इलाकों-गाँवों में निर्भीक यात्राओं के कारण वह जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को समझते हुए उसे भारत के सुखी-संपन्न प्रदेशों की तरह विकसित करने का संकल्प संजोए हुए थे।

वैसे भी हिमालय की वादियां युवा काल से उनके दिल दिमाग पर छाई रही हैं। लेह-लद्दाख में जहां लोग ऑक्सीजन की कमी से विचलित हो जाते हैं, नरेन्द्र मोदी को कोई समस्या नहीं होती। उन दिनों लद्दाख के अलावा वह तिब्बत, मानसरोवर और कैलाश पर्वत की यात्रा भी 2001 से पहले कर आए थे। तभी उन्होंने यह सपना भी देखा कि कभी लेह के रास्ते हजारों भारतीय कैलाश मानसरोवर जा सकेंगे। यह रास्ता सबसे सुगम होगा। उम्मीद की जाए कि लद्दाख और कश्मीर आने वाले वर्षों में स्विजरलैंड से अधिक सुगम, आकर्षक और सुविधा संपन्न हो जाएगा। अमेरिका , यूरोप ही नहीं चीन के साथ भी सम्बन्ध सुधारने के प्रयास सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर लद्दाख को सुखी संपन्न बनाना रहा है | इसलिए लद्दाख को केंद्र शासित बनाने की मांग को पूरी करने के साथ जम्मू कश्मीर को भी फिलहाल केंद्र शासित रखा और नागरिकों को भी समूर्ण भारत में लागू सुविधाओं – कानूनों का प्रावधान कर दिया | जम्मू कश्मीर में स्थानीय पंचायतों और लोक सभा चुनाव के बाद विधान सभा के चुनाव अन्य राज्यों की तरह होने जाए रहे हैं | कश्मीर की खुशहाली की खबरों से पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीरी क्षेत्र की जनता मोदी से उद्धार की उम्मीदें करने लगी है |

हिमालय की तरह नर्मदा उनके दिल से जुर्ड़ी हुई है। उनका मुकाबला तो कोई नहीं कर सकता, लेकिन उज्जैन-इंदौर-ओंकारेश्वर की मेरी पृष्ठभूमि के कारण नर्मदा बांध पर 1973-74 से नर्मदा के पानी बंटवारे, राजनीतिक विवाद, नर्मदा के गंगा नदी से प्राचीन होने तथा पौराणिक महत्व के साथ आधुनिक प्रगति में नर्मदा की जल शक्ति के उपयोग पर लिखता रहा। इसलिये भाजपा संगठन और मुख्यमंत्री रहते नरेन्द्र मोदी जी से नर्मदा पर बातचीत के अवसर मिले थे । कुछ वर्ष पहले नर्मदा के महत्व , संस्कृति पर एक पुस्तक तैयार की और इसकी भूमिका लिखने का संदेश प्रधान मंत्री को भेजा। फिर पांडुलिपि भिजवाई, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्यवस्तताओं के बावजूद ध्यान से पढ़कर सुंदर लिखित टिप्पणी भेज दी। बाद में भारत के सामाजिक सुधारों पर लिखी पुस्तक पर उन्होंने प्रभावशाली सन्देश भेजा | उन्होंने बहुत पहले स्वयं सामाजिक समरसता पर एक पुस्तक लिखी थी |

संगठन या सरकार में रहते हुए भी मोदी का न तो पुस्तक प्रेम रुका और न ही पढ़ने का सिलसिला थमा

 

संगठन या सरकार में रहते हुए भी मोदी का न तो पुस्तक प्रेम रुका और न ही पढ़ने का सिलसिला थमा |प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मोदी के पठन-पाठन में कोई कमी नहीं आई है. अब भी देर रात वो पढ़ने के लिए समय निकाल ही लेते हैं. जहां तक उनकी लाइब्रेरी में पुस्तकों का सवाल है, उनकी संख्या में पिछले दस वर्षों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है | सैकड़ों नई किताबें उनकी लाइब्रेरी में शामिल हुई हैं | ये किताबें दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में हैं | मोदी जब विदेश प्रवास पर होते हैं, तो उनके पुस्तक प्रेम को जानते हुए मेजबान शासनाध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष तो उन्हें किताबें भेंट करते ही है | हाँ आशा करना चाहिए कि उनकी सरकारों और आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस मंत्रालयों के अधिकारी पुस्तकों और पुस्तकालयों को करोड़ों भारतवासियों तक सुलभ कराने पर समुचित प्राथमिकता देंगे |

स्वामी विवेकानंद , दयानन्द , राजराममोहनरॉय , महात्मा गाँधी के आदर्शों सपनों के अनुरुप समाज सुधार के अभियान कार्यक्रम मोदी सरकार क्रियान्वित कर रही है | भारत के ही नहीं विश्व के चुनिन्दा नेताओं में नरेंद्र मोदी अग्रणी समझे जाने लगे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें अंतरिक्ष, मंगल, चंद्र यानों की सफलताओं से अधिक गाँवों को पानी, बिजली, बेटियों को शिक्षा, गरीब परिवारों के लिए मकान, शौचालय और घरेलु गैस , बिजली , सड़क , गरीबों के साथ बुजुर्गों के लिए आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं उपलब्ध कराने के अभियानों से अधिक संतोष मिलता है। इसी तरह स्व रोजगार , महिलाओं की आत्म निर्भरता के लिए कई नई योजनाएं शुरु करने से उन्हें तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने में सफलता मिली | इसलिये मैं इस धारणा से सहमत नहीं हूं कि गुजरात में हुए औद्योगिक विकास और संपन्नता को ध्यान में रखकर पहले उन्होंने उद्योगपतियों को महत्व दिया और ‘सूट-बूट की सरकार’ के आरोप लगने पर अजेंडा बदलकर गांवों की ओर ध्यान दिया। आखिरकार, उनका बचपन और 50 वर्ष तक की आयु तो अधिकांश गरीब बस्तियों, गाँवों-जंगलों में घूमते हुए बीती है। फिर गरीबों की चिंता क्या किसी राजनीतिक दल और विचारधारा तक सीमित रहती है?

इसमें कोई शक नहीं कि नरेन्द्र मोदी के विचार दर्शन का आधार ज्ञान शक्ति, जन शक्ति जल शक्ति, ऊर्जा शक्ति, आर्थिक शक्ति और रक्षा शक्ति है। लगता है |दिन-रात उनका ध्यान इसी तरफ रहता है। इसलिये भारत की ग्राम पंचायतों से लेकर दूर देशों में बैठे प्रवासी भारतीयों को अपने कार्यक्रमों, योजनाओं से जोड़ने मे उन्हें सुविधा रहती है। योग, स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत – स्वस्थ भारत , शिक्षित भारत जैसे अभियान सही अर्थों में भारत को शक्तिशाली और संपन्न बना सकते हैं। कोरोना महामारी से निपटने में में भारत की स्थिति दुनिया के अधिकांश संपन्न विकसित देशों से बेहतर रहने कि बात विश्व समुदाय मान रहा है | विशालतम आबादी के अनुपात में मृत्यु दर सबसे कम और कोरोना से प्रभावित होकर ठीक होने वालों की संख्या सर्वाधिक है |

आतंकवाद से निपटने के लिए आतंकवादियों के खात्मे के साथ रचनात्मक रास्ता भी सामाजिक-आर्थिक विकास है। तभी तो नरेंद्र मोदी के प्रयासों से दुनिया भारत के साथ खड़ी है और कई इस्लामिक देश भी पाकिस्तान से दूर हो गए हैं | इसलिये राजनीति, विवाद, चुनौतियों से हटकर जननेता के रूप में नरेन्द्र मोदी के दृढ़ संकल्पों और सपनों के लिए इस बार भी जन्म दिन तथा अच्छे कार्यों पर उन्हें बधाई तथा शुभकामनाएं दी जानी चाहिये।