Delhi Controversial Excise Policy, (आज समाज), नई दिल्ली: शराब नीति घोटाले से जुड़े सीबीआई के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर सुनवाई सितंबर के फर्स्ट वीक तक टल गई है। आज उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सीबीआई ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से और वक्त मांगा है, ऐसे में अगली सुनवाई अब 5 सितंबर को होगी।
सिसोदिया को मिल चुकी है जमानत, सीएम को भी थी उम्मीद
सुनवाई का टलना केजरीवाल के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इस कथित शराब घोटाले में दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को जमानत मिल चुकी है। उसके बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि केजरीवाल भी बाहर आ सकते हैं। बड़ी बात यह है कि ईडी मामले में तो केजरीवाल को जमानत पहले ही मिल चुकी है। वह तो जेल में इसलिए हैं क्योंकि सीबीआई ने भी उनके खिलाफ केस दर्ज किया था।
कोर्ट के समक्ष विस्तृत जवाब रखेगी सीबीआई
सीबीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश वकील ने कहा कि उन्हें जांच करने के लिए थोड़ा वक्त और चाहिए, उसके बाद ही वे कोर्ट में अपना विस्तृत जवाब रख पाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई को अतिरिक्त समय दे दिया है, ऐसे में अब 5 सितंबर को केजरीवाल की किस्मत तय होने वाली है। तब पता चलेगा कि सिसोदिया के बाद क्या उन्हें भी राहत मिलती है या नहीं।
जमानत हर किसी का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा है कि किसी भी मामले में जेल को अपवाद मानना चाहिए और जमानत हर किसी का अधिकार है। इसी वजह से केजरीवाल भी जमानत को अपना हक मानते हैं। वह तो लगातार यहां तक कहते आ रहे हैं कि जांच एजेंसी को उनके खिलाफ एक सबूत नहीं मिला है। आम आदमी पार्टी (आप) भी यही दावा कर रही है कि फर्जी मामले में बीजेपी के दबाव में आकर उनके नेताओं को अंदर किया गया है।
समझें क्या है शराब घोटाला
दरअसल, 3 वर्ष पहले 17 नवंबर 2021 को दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने नई शराब नीति को लागू करने का फैसला किया था। इस नई नीति के मुताबिक दिल्ली को कुल 32 जोन में बांट दिया गया और कहा गया कि हर जोन में 27 शराब की दुकानें खोली जाएंगी। अगर इसी आंकड़े के हिसाब से टोटल किया जाए तो पूरी दिल्ली में 849 शराब की दुकानें खुलनी थीं। यह एक बड़ा बदलाव होने वाला था कि जो भी शराब की दुकाने खुलनी थीं, वो सारी निजी क्षेत्र की थीं। सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं रहने वाला था। दूसरे शब्दों में जिस शराब करोबार में पहले सरकार की हिस्सेदारी रहती थी, नई नीति के तहत उसे ही खत्म कर दिया गया।