Delhi High Court: केंद्र सरकार और आरबीआई को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी राहत, दो हजार रुपए के नोट को बदले जाने वाली अधिसूचना के खिलाफ दाखिल याचीका ख़ारिज

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आशीष सिन्हा
आशीष सिन्हा

Aaj Samaj (आज समाज),Delhi High Court, नई दिल्ली :

1*2015 हरियाणा एसएससी परीक्षा: अभ्यर्थी ने ऑन्सर की शीट को किया चैलेंज, उच्च न्यायालय ने याचिका कर दी खारिज*

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) द्वारा आयोजित एक क्लर्क पोस्ट परीक्षा की उत्तर कुंजी को चुनौती देने वाली एक अपील को खारिज कर दिया। अदातल ने टिप्पणी दी है कि परिस्थिति को देखते हुए कि विशेषज्ञ ऑन्सरशीट की शुद्धता की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की राय की जरूरत नहीं है।

लिपिकिए संवर्ग की परीक्षा का विज्ञापन 2015 में जारी किया गया था, संशोधित अंतिम कुंजी 2018 में जारी की गई थी, और परिणाम पहले ही घोषित किए जा चुके थे, मुख्य न्यायाधीश रवि शंकर झा और न्यायमूर्ति अरुण पल्ली की खंडपीठ ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में, हम यह नहीं पाते हैं इस स्तर पर इस न्यायालय द्वारा इस मुद्दे को उठाने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा होगा।”
एकल न्यायाधीश की पीठ द्वारा एक रिट याचिका को खारिज करने के खिलाफ मोनू नाम के अभ्यर्थी द्वारा दायर अपील पर खण्डपीठ सुनवाई कर रही थी। याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि इस मामले की पहले से ही “एक विशेषज्ञ समिति द्वारा जांच” की जा चुकी है और “अदालत कोई विपरीत राय व्यक्त नहीं कर सकती है।
खंडपीठ ने रिशाल और अन्य बनाम राजस्थान लोक सेवा आयोग और अन्य (2018) 8 एससीसी 81 में कहा कि “न्यायालय को विशेषज्ञ राय की शुद्धता की जांच करने की आवश्यकता नहीं है।”

2* केंद्र सरकार और आरबीआई को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी राहत, दो हजार रुपए के नोट को बदले जाने वाली अधिसूचना के खिलाफ दाखिल याचीका ख़ारिज

केंद्र सरकार और आरबीआई को दिल्ली हाई कोर्ट से सोमवार को बड़ी राहत मिली है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने बीजेपी नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है।

अश्वनी उपाध्याय ने अपनी याचीका में कहा था कि आरबीआई ने बिना किसी मांग पर्ची और पहचान प्रमाण के नोट बदलने की अनुमति दी है और इसलिए, यह मनमाना और तर्कहीन है।

वही मामले की सुनवाई के दौरान दो हजार रुपए के करेंसी नोट को बदले जाने के लिए जारी किए गए नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने  दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था की 2,000 रुपये के नोटों को चलन से हटाना एक वैधानिक प्रक्रिया है न कि नोटबंदी। रिजर्ब बैंक के वकील ने यह भी मांग की कि याचिकाकर्ता अपनी पिटीशन से भ्रम फैलाना चाहता है इसलिए इस याचिका को कॉस्ट लगाकर रद्द किया जाए। इस पर याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से कहा कि वो पूरी अधिसूचना को चैलेंज नहीं कर रहे बल्कि अधिसूचना के एक हिस्से को चैलेंज किया है जिसमें  यह कहा गया है एक बार में 2,000 रुपये के 10 नोट बदलवाने पर किसी तरह की कोई आईडी नहीं दिखानी होगी। अधिसूचना में कहा गया है कि एक बार में 2000 के 10 नोट बदलवाए जा सकते हैं। अधिसूचना में कहीं नहीं लिखा है कि एक दिन में केवल एक बार शब्द इस्तेमाल नही किया गया है। इस तरह से तो अलगाववादियों जिहादियों मतांतरण मिशनरियों माओवादियों कालाबाजारियों हवाला कारोबारियों भूमाफियाओं खनन माफियाओं अपहरणकर्ताओं,घूसखोरों कमीशनखोरों जमाखोरों मिलावटखोरों मुनाफाखोरों सूदखोरों मानव तस्करों नशा तस्करों शराब तस्करों और सफेदपोश दलालों के लिए स्वर्णिम अवसर बन गया है।

दरअसल बैंकों में 2,000 रुपये की अदला-बदली आज, 23 मई से शुरू हो गई है। एसबीआई ने कहा है कि एक बार में 20,000 रुपये तक जमा करने के लिए किसी आईडी या मांग पर्ची की जरूरत नहीं है।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले सोमवार को कहा था कि जिस उद्देश्य के लिए 2,000 रुपये के नोट शुरू किए गए थे, वह पूरा हो गया है और प्रचलन में अन्य नोट भी पर्याप्त हैं। “2,000 रुपये के नोट कानूनी निविदा के रूप में जारी हैं और 30 सितंबर की समय सीमा निर्धारित की गई है ताकि लोग प्रक्रिया को गंभीरता से ले सकें।”

उन्होंने यह भी कहा कि 2,000 रुपये के नोटों ने अपनी आयु पूरी कर ली है, और उनकी निकासी मुद्रा प्रबंधन ऑपरेशन का हिस्सा है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि 2,000 रुपये के नोट मुख्य रूप से 2016 में विमुद्रीकरण के बाद वापस लिए गए नोटों की भरपाई के लिए पेश किए गए थे।

अर्थव्यवस्था पर वापसी का प्रभाव “बहुत मामूली” होगा, उन्होंने कहा, प्रचलन में कुल मुद्रा का सिर्फ 10.8 प्रतिशत के लिए बने 2,000 रुपये के नोटों को जोड़ना। “प्रणाली में तरलता की निगरानी दैनिक आधार पर की जा रही है।

3*प्रैग्नेंसी जारी रखना या टर्मिनेट कराना महिला का अधिकार, पीड़िता को हाईकोर्ट ने दी गर्भपात की मंजूरी*

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि महिला को गर्भधारण के लिए मजबूर करना बच्चे को जन्म देने की इच्छा व गरिमा के मौलिक अधिकार का अपमान है। साथ ही कोर्ट ने गर्भवती हुई पीड़ित महिला को 23 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दे दी है।

बॉम्बे हाईकोर्ट के  न्यायमूर्ति अभय अहूजा व न्यायमूर्ति एमएम साठे की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत महिला के बच्चा पैदा करने की इच्छा को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा माना है। एमटीपी के केस में महिला का अपने शरीर पर पूरा हक है। सर्वोच्च न्यायालय की यह बात मौजूदा मामले में पूरी तरह से लागू होगी। वैसे भी अभी महिला का भ्रूण 24 सप्ताह से ऊपर नहीं हुआ है। लिहाजा महिला को गर्भपात की इजाजत दी जाती है। खंडपीठ ने महिला को राहत देते समय उसकी जांच को लेकर पेश की गई मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर भी विचार किया। यह रिपोर्ट कोर्ट के निर्देश के तहत पेश की गई थी।

नियमानुसार, 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। इसलिए पीड़िता ने गर्भपात की अनुमति को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में महिला ने दावा किया था कि यदि उसे गर्भपात की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे उसकी मानसिक चिंता बढ़ेगी। वह दूसरे बच्चे की देखरेख करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए उसे गर्भपात की अनुमति दी जाए।

दुष्कर्म की शिकार पीड़िता ने अजय सूमरा नाम के शख्स से 2018 में शादी की थी। शादी के बाद पीड़िता को एक बेटा हुआ था। पीड़िता के मुताबिक, 7 अक्टूबर 2022 को शराब के नशे में उसके पति ने उसे व उसके बेटे को पीटा। इससे दुखी पीड़िता ने रात में अपने दोस्त को फोन किया। दोस्त के आने के बाद महिला बच्चे को लेकर उसके साथ चली गई। 23 अक्टूबर, 2022 को पीड़िता के दोस्त ने बच्चे की देखरेख व उससे शादी करने का वादा कर उसके साथ संबंध बनाए। बेबसी के चलते पीड़िता ने दोस्त का विरोध नहीं किया। कुछ समय बाद पीड़िता गर्भवती हो गई। जब महिला ने अपने दोस्त को इसकी जानकारी दी तो, उसने महिला को गर्भपात कराने के लिए कहा।

तीन महीने बीतने के बाद महिला के दोस्त ने उससे शादी करने से मना कर दिया। यही नहीं, उसने महिला को अपने गर्भवती होने की बात छिपाने के लिए भी दबाव बनाया। उसे धमकाया भी। दोस्त का कहना था कि जो बच्चा महिला के गर्भ में है, वह उसका नहीं है। इससे नाराज महिला ने आरोपी के खिलाफ मुंब्रा पुलिस स्टेशन में धारा 376(2) व 506 के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

खंडपीठ ने पुलिस को भ्रूण के रक्त के नमूने को सहेजकर रखने का निर्देश भी दिया, ताकि डीएनए व दूसरी जांच के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सके। कोर्ट ने कहा, गर्भपात के दौरान यदि बच्चा जीवित पैदा होता है और उसके जैविक माता-पिता अपने पास रखने की इच्छा नहीं दिखाते, तो राज्य सरकार बच्चे की पूरी जिम्मेदारी संभाले।

4* विदेशी महिला पर्यटक से छेड़छाड़ के दोषी रियाज अहमद को मुम्बई की अदालत ने सुनाई 2 साल की सजा, कहा “इस कृत्य से हमारे देश की छवि खराब हुई”

मुंबई की अदालत ने पेरू की एक महिला पर्यटक से छेड़छाड़ के आरोप में 19 वर्षीय एक युवक को 2 साल की जेल की सजा सुनाई है। पीआई मोकाशी (मझगांव अदालत में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट) ने घटना के 2 महीने बाद आरोपी रियाज अहमद को दोषी ठहराया और सजा सुनाई। साथ ही कोर्ट ने उन पर 5 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। फैसले में जहाँ गया कि “अच्छी पृष्ठभूमि और प्रतिष्ठा वाली कोई भी महिला और विदेशी होने के नाते बिना किसी कारण के आरोपी को झूठा फंसाने के लिए अदालत में नहीं आ सकती है, जब तक कि ऐसी घटना न हुई हो।” सजा की मात्रा पर बहस के दौरान, आरोपी के वकील ने उसकी उम्र को देखते हुए नरमी की प्रार्थना की।

वकील ने कहा, चूंकि वह युवा था और यह उसका पहला अपराध था, उसे अच्छे आचरण के लिए परिवीक्षा पर रिहा किया जाना चाहिए। लेकिन अदालत ने कहा कि आरोपी महिला के कमरे में केवल उसे छूने के लिए घुसा था और अब वह भारत में यात्रा करने से डर रही थी। मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘आरोपी के इस कृत्य से हमारे देश की छवि खराब हुई है। अगर आरोपी को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट की धारा 4 के तहत लाभ दिया जाता है, तो पूरी दुनिया में गलत संदेश जाएगा। आरोपी उस गेस्ट हाउस में मैनेजर के रूप में काम करता था, जहां पेरू की 38 वर्षीय महिला अकेले मुंबई की यात्रा पर इस साल मार्च में रुकी थी। महिलाओं ने आरोप लगाया कि, वह उसके कमरे में जाता रहा, और जोर देकर कहा कि वह उसके साथ सेल्फी क्लिक करे, और कई मौकों पर उसे अनुचित तरीके से छुआ।

5 *योगी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के सख्त निर्देश, डिप्टी कलैक्टर-तहसीलदार के पदों पर जल्द करें भर्ती*

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश की सभी राजस्व अदालतों के अधिकारियों को राजस्व संहिता के उपबंधों का कड़ाई से पालन करने को कहा है। साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उप जिलाधिकारी न्यायिक व तहसीलदार न्यायिक के खाली पदों को एक वर्ष के भीतर भरने का निर्देश भी दिया है।

कोर्ट ने अधिकारियों की ओर से, राजस्व संहिता के अंतर्गत दाखिल विवाद में समाप्त हो चुके उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भू राजस्व कानून के उपबंधो के उल्लेख पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि राजस्व संहिता में विभिन्न प्रकार के आवेदनों के निस्तारण की अवधि तय है। उसी अवधि के भीतर वाद तय किए जाएं।

जिन मामलों में समयावधि तय नहीं है, उनका निस्तारण छह माह में किया जाय। कोर्ट ने आदेश के उल्लघंन को अदालत की अवमानना करार दिया है। इसके लिए कलेक्टर, आयुक्त व राजस्व परिषद पर अवमानना कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने दया शंकर की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

याची तिलकधारी तथा अन्य के बीच धारा 116 में संपत्ति बंटवारे का केस विचाराधीन है। इसके शीघ्र निस्तारण की मांग में यह याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा, राजस्व संहिता में हर मामले को तय करने की समय सीमा निर्धारित है। वकीलों की हड़ताल तथा अधिकारियों की गैर मौजूदगी के कारण सुनवाई में देरी हो रही है।

ऐसे मामलों के शीघ्र निस्तारण की मांग में भारी संख्या में याचिकाएं दायर की जाती हैं। कोर्ट ने हर अर्जी को तय करने की समय सीमा तय करते हुए पालन करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी आदेश की वापसी या स्थगन अर्जी लंबित है तो उत्पीड़ऩात्मक कार्रवाई न की जाय। किसी भी मामले को छह माह से अधिक न लटकाया जाय।

6 *अब यूं ही किसी की संपत्ति को वक्फ की जायदाद घोषित नहीं कर सकता वक्फ बोर्ड- सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में लिख दिया साफ-साफ*

अब यूं ही वक्फ किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि  केवल एक अधिसूचना का प्रकाशन वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करना आवश्यक है। इसमें दो सर्वेक्षण, विवादों का निपटारा और राज्य सरकार वक्फ बोर्ड को रिपोर्ट जमा करना शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी स्पष्ट समर्पण के अभाव में धार्मिक और सार्वजनिक धर्मार्थ उद्देश्यों, संपत्ति के लंबे उपयोग सहित प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के प्रकाश में  वक्फ संपत्ति का निर्धारण किया जाएगा।

जस्टिस व रामसुब्रमण्यन और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने एक फैसले में कहा, मुस्लिम कानून के तहत, एक वक्फ कई तरीकों से बनाया जा सकता है, लेकिन मुख्य रूप से मुस्लिम कानून की ओर से इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति के किसी चल और अचल संपत्ति के स्थायी समर्पण और इस तरह के समर्पण की अनुपस्थिति में इसे लंबे समय तक उपयोग से अस्तित्व में माना जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सलेम मुस्लिम श्मशान भूमि संरक्षण समिति की ओर से दायर अपील खारिज कर दी। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने भूमि पर समिति के दावे को खारिज कर दिया गया था। मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ ही सलेम मुस्लिम श्मशान भूमि संरक्षण समिति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। अपीलकर्ता का कहना था कि भूमि का उपयोग कब्रिस्तान के रूप में किया गया था और एक बार वक्फ होने पर वह हमेशा वक्फ बना रहेगा।

पीठ ने कहा, शुरुआत से ही इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस्लाम को मानने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्य के लिए उक्त भूमि का कोई स्पष्ट समर्पण किया गया था। अदालत ने यह भी पाया कि लंबे समय तक उपयोग से भी वाद भूमि वक्फ भूमि साबित नहीं हुई थी। पीठ ने कहा, यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई ठोस सबूत भी नहीं है कि वर्ष 1900 या 1867 से पहले वाद से पहले भूमि वास्तव में कब्रिस्तान के रूप में इस्तेमाल की जा रही थी।

पीठ ने यह भी कहा कि एक घोषणा को वक्फ अधिनियम, 1954 या वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए। पीठ ने कहा, दोनों अधिनियमों के प्रावधानों को पढ़ने से पता चलता है कि किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले सर्वेक्षण करना अनिवार्य है।

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