Delhi High Court: दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामला: अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर गुरुवार को संविधान पीठ सुनाएगी फ़ैसला 

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आशीष सिन्हा
आशीष सिन्हा
Aaj Samaj, (आज समाज),Delhi High Court,आशीष सिन्हा: नई दिल्ली 
दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामला: अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर गुरुवार को संविधान पीठ सुनाएगी फ़ैसला
दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की जंग पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ गुरुवार को फैसला सुनाएगी।
अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार मांग रही दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ फ़ैसला सुनाएगी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा का संविधान पीठ फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ यह तय करेगी की दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच सर्विसेज का कंट्रोल किसके हाथ में होगा।सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दरसअल दिल्ली में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में होंगी, इस पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को एक फैसला दिया था लेकिन, उसमें दोनों जजों का मत फ़ैसले को लेकर अलग अलग था। लिहाजा फैसले के लिए तीन जजों की बेंच गठित करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया गया था। इसी बीच केंद्र ने दलील दी थी कि मामले को और बड़ी बेंच यानी संविधान पीठ को भेजा जाए।
4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल बनाम दिल्ली सरकार विवाद में कई मसलों पर फैसला दिया था, लेकिन सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मुद्दों को आगे की सुनवाई के लिए छोड़ दिया था।जिसके बाद 14 फरवरी 2019 को इस मसले पर 2 जजों की बेंच ने फैसला दिया था, लेकिन दोनों न्यायमूर्तियों, जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण का निर्णय अलग-अलग था। इसके बाद मामला 3 जजों की बेंच के सामने लगा। फिर केंद्र के कहने पर आखिरकार चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने मामला सुना।
*दिल्ली सरकार की दलील 
दिल्ली सरकार ने दलील दी कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कह चुकी है कि भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता रहेगी यानी नियंत्रण सरकार का रहेगा।
*केंद्र सरकार की दलील 
केंद्र सरकार ने कहा था कि गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट में किए गए संशोधन से स्थिति में बदलाव हुआ है।दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है. यहां की सरकार को पूर्ण राज्य की सरकार जैसे अधिकार कतई नहीं दिए जा सकते।केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार राजनीतिक करने के लिए लगातार विवाद की स्थिति बनाए रखना चाहती है।
*NAB के हवाले इमरान खान, पाकिस्तान में हालात बेकाबू, कई सूबों को किया गया फौज के हवाले*
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अदालत ने 8 दिन के लिए एनएबी (नेशनल अकाउंटेबिलिटि ब्यूरो के हवाले कर दिया है। इससे पहले इमरान खान  को तोशखाना मामले में आरोपित किया गया था। इस बीच पाकिस्तान के तमाम शहरों में हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वाह को सेना के हवाले कर दिया गया है। यह भी बताया जाता है कि इमरान खान के वकीलों ने गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। लेकिन खबरों पर पाबंदी और इंटरनेट बैन किए जाने से पाकिस्तान में क्या हो रहा है इस बारे में सही जानकारी नहीं मिल पा रही है।
इससे पहले एनएबी अदालत ने पीटीआई अध्यक्ष की 14 दिन की रिमांड की मांग वाली एनएबी की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दोनों सुनवाई इस्लामाबाद पुलिस लाइन में हुई, जिसे कड़ी सुरक्षा के बीच सोमवार देर रात “एक बार की व्यवस्था” के रूप में अदालत स्थल का दर्जा दिया गया था।
अतिरिक्त और जिला सत्र न्यायाधीश हुमायूं दिलावर ने तोशखाना मामले से संबंधित सुनवाई की अध्यक्षता की।
पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) ने पीटीआई प्रमुख के खिलाफ आपराधिक कानून के तहत कार्यवाही की मांग की थी। ईसीपी ने पिछले साल सत्तारूढ़ गठबंधन के सांसदों द्वारा दायर एक संदर्भ पर मामले पर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
संदर्भ में आरोप लगाया गया है कि इमरान ने प्रधान मंत्री के रूप में अपने समय के दौरान तोशखाना से रखे गए उपहारों के विवरणों को “जानबूझकर छुपाया” था – एक भंडार जहां विदेशी अधिकारियों से सरकारी अधिकारियों को दिए गए उपहार रखे जाते हैं और उनकी कथित बिक्री से आय होती है।
इस बीच, नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो की अदालत ने इमरान की 14 दिन की रिमांड के लिए नैब के अनुरोध पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई की अध्यक्षता न्यायाधीश मोहम्मद बशीर ने की।
पीटीआई अध्यक्ष के वकील ख्वाजा हैरिस ने अनुरोध का विरोध किया और कहा कि यह मामला ब्यूरो के दायरे में नहीं आता है। उन्होंने आगे कहा कि एनएबी ने जांच रिपोर्ट भी साझा नहीं की थी।
खुली अदालत में सुनवाई का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, “सभी को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।” उन्होंने आगे कहा कि अल-कादिर ट्रस्ट की भूमि पर एक भवन का निर्माण किया गया है, जहां लोग मुफ्त शिक्षा प्राप्त करते हैं।
उन्होंने कहा कि एक “कानूनी व्यक्ति”, जो एक सार्वजनिक कार्यालय धारक नहीं है, का मतलब ट्रस्ट का प्रभारी होना है। उन्होंने कहा कि इमरान अब सार्वजनिक पद पर नहीं हैं।
इस बीच एनएबी के अभियोजक ने अदालत को बताया कि गिरफ्तारी के समय इमरान को वारंट दिखाया गया था। उन्होंने इमरान के वकील को आश्वासन भी दिया कि जरूरी दस्तावेज मुहैया कराए जाएंगे।
उन्होंने कहा, “यह एक भ्रष्टाचार का मामला है जिसकी यूके की राष्ट्रीय अपराध एजेंसी ने जांच की है,” उन्होंने कहा कि प्राप्त धन पाकिस्तान सरकार को स्थानांतरित करने के लिए था। सरकार के बजाय, जो धन प्राप्त हुआ था, उसे बहरिया टाउन में स्थानांतरित कर दिया गया था।
दूसरी ओर, पीटीआई प्रमुख ने एनएबी के संस्करण का खंडन किया और अदालत को बताया कि उन्हें गिरफ्तारी वारंट तब दिखाया गया था जब उन्हें ब्यूरो के कार्यालय ले जाया गया था न कि उनकी गिरफ्तारी के समय।

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