दिल्ली धर्मान्तरण; छद्म बुद्धिज़्म की आड़ में राजनितिक लाभ का खेल 

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Delhi Conversions; The game of political gain under the guise of pseudo-intellectualism
Gopal Goswami is a social thinker and researcher.

गोपाल गोस्वामी

आम आदमी पार्टी के MLA  गौतम द्वारा दिल्ली के एक कार्यक्रम में हजारों हिन्दुओं का बौद्ध धर्म में परिवर्तन कराने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा में है , जिसमे वे हिन्दू धर्म की आस्थाओं का अपमान करते व उन्हें त्यज देने की प्रतिज्ञा दिलवा रहे हैं. कम्युनिस्टों द्वारा छद्म रूप से एक नई कौम का निर्माण करने के प्रयत्न एक सदी से चलते आ रहे हैं. उनके इन कुप्रयासों से एक नई जाति का निर्माण हो रहा है जो न तो हिन्दू हैं न ही बौद्ध पर इन नापाक शक्तियों का हथियार अवश्य बन रहे हैं. गौतम द्वारा जो प्रतिज्ञाएं दिलवाई जा रही थी उनका बुद्ध के संदेशों से कहीं का लेनादेना नहीं है. उनका आशय इस्लामी व ईसाई ताकतों से धन प्राप्त कर उनके लिए संरक्षण देने वाली कुछ राजनैतिक पार्टियों का जनाधार तैयार करना मात्र ही है.

भगवान बुद्ध एक सनातनी परिवार में जन्मे हिन्दू थे, एक पक्षी का शिकार उनके भाई के द्वारा कर दिए जाने से उनका ह्रदय द्रवित हो गया एवँ वैराग्य उत्पन्न हुआ. उन्होंने विलासिता छोड़ सादगी पूर्ण जीवन बिताने का निश्चय किया व सन्यासी हो गए. उनके द्वारा प्रतिपादित सबसे महत्वपूर्ण सन्देश था अहिंसा, उनके समय में जात-पात , ऊंच-नीच जैसी कोई प्रथा नहीं थी. इन कुप्रथाओं का कोई भी उद्धरण उनके द्वारा प्रतिपादित शिक्षाओं में भी कहीं नहीं दृष्टिगोचर होता।  बुद्ध ने किसी भी प्रकार की हिंसा को वर्जित किया, परन्तु आज उनको मानने  वाले तथाकथित बौद्ध सबसे अधिक मांस भक्षण करते हैं. यहीं से यह ध्यान में आता है कि  वे लोग बुद्ध की शिक्षाओं के कितने समीप हैं.

इन तथाकथित बौद्धों ने एक सूची बनाई है जिसकी प्रतिज्ञा वे धर्म परिवर्तन से पहले दिलवाते हैं जैसा गौतम कर रहे थे. आइये इन प्रतिज्ञाओं की पड़ताल करते हैं कि वे स्वयं इसका कितना पालन करते हैं तथा वे  जिन ब्राह्मणों को कोसते हैं उनके द्वारा इनका कितना पालन होता है।  उन्होंने इन 22 प्रतिज्ञाओं को निर्धारित किया है  ताकि हिंदू धर्म के प्रति समाज के एक वर्ग में अलगाव उत्पन्न किया जा सके व उनके आकाओं को राजनैतिक लाभ मिल सके. ये प्रतिज्ञाएं हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं.

१. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.

सनातन हिन्दू धर्म में किसी भी भगवन को पूजने या किसी को भी नहीं पूजने की स्वतंत्रता है अतः इस प्रतिज्ञा का कोई औचित्य नहीं रह जाता, नाही बुद्ध ने ऐसा करने की किसी शिक्षा का कोई उल्लेख मिलता है।

२. मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.

उपरोक्त की भांति मानना  या न मानने की कोई बाध्यता नहीं है आप नास्तिक होकर भी हिन्दू रह सकते हैं.

३. मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.

आस्था यह नितांत व्यक्तिगत विषय है, पूजा करना या नहीं करना भी व्यक्तिगत विषय है, ऐसे असंख्य हिन्दू हैं जो किसी भी देवता की पूजा नहीं करते परन्तु हिन्दू हैं, अतः यह प्रतिज्ञा क्या सिद्ध करती है यह समझ के बहार है.

४. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ.

यदि आपकी भगवान में आस्था ही नहीं है तो अवतार में विश्वास हो या नहीं उससे क्या अंतर पड़ता है अतः यह प्रतिज्ञा भी औचित्य बिना की ही है.

५. मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ.

भगवन बुद्ध, भगवान् विष्णु के अवतार थे यह हिन्दुओं की मान्यता है, आप इसे नहीं मानते तो हिन्दुओं ने तो कभी इसको आपका पागलपन नहीं कहा तो आप क्यों कहते हैं यह समझ के परे है.

६. मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूंगा.

श्राद्ध व पिंडदान आप अपने पितरों के सम्मान में करते है, इसे किसी ब्राह्मण के द्वारा कर्मकांड कर ही संपन्न किया जा सकता है ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है, करना या नहीं करना यह नितांत व्यक्तिगत है.

७. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा.

यह अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा है जो क्रम ९ व १० का स्वतः उल्लंघन है, अतः आपकी नियत स्पष्ट दिखाई देती है.

८. मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा.

यह अत्यधिक मूर्खता का प्रदर्शन है, समारोह में जाना या नहीं जाना व्यक्तिगत निर्णय है.

९. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ.

यह बुद्ध के सिद्धांतों का उल्लंघन का प्रमाण है जो इसी सूची में ऊपर आये  क्रमों के एकदम उलट है.

१०. मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा.

अत्यधिक हास्यास्पद प्रतिज्ञा है, एक बड़े वर्ग के विरोध में प्रतिज्ञा दिलवा कर कहाँ की समानता आएगी?

११. मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करूँगा.

यह मैं आप सभी पाठकों पर छोड़ता हूँ कि  इसका अवलोकन आप स्वयं करें  .

१२. मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.

इसको भी मैं पाठकों के विवेक पर छोड़ता हूँ.

१३. मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालु रहूंगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.

सारे दलित एक्टिविस्ट गौमांस भक्षण के पक्ष में खड़े रहते हैं अन्य जीवों की तो बात ही क्या करें, अतः इसका भी विवेक पाठकों पर.

१४. मैं चोरी नहीं करूँगा.

चोरी नहीं करना सनातन हिन्दू धर्म के मूल उपदेश ही है.

१५. मैं झूठ नहीं बोलूँगा.

यह सनातन हिन्दू धर्म का मूल मंत्र है, सभी पंडित इसका उपदेश करते हैं.

१६. मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.

प्रत्येक ब्राह्मण यह उपदेश करता है व इसका स्वयं पालन करता है.

१७. मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.

यह प्रतिज्ञा हर कर्मकांडी ब्राह्मण द्वारा सभी को लेने के लिए कही जाती है, चाहे किसी भी जाति-धर्म का हो व सभी कर्मकांडी पंडित इसका स्वयं पालन भी करते हैं.

१८. मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और अपने दैनिक जीवन में दयालु रहने का अभ्यास करूँगा.

अष्टांग मार्ग का पालन प्रत्येक हिन्दू करने का प्रयत्न तो करता है परन्तु कितना कर पाता है वो अलग विषय है, कितने बौद्ध इसका पालन करते हैं यह चर्चा का विषय हो सकता है.

१९. मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ.

धर्म का त्याग करना या पालन करना यदि किसी लोभ लालच, छल  या प्रपंच के बिना हो तो ठीक है, परन्तु पूरा संसार आज इस बात को मानता  है कि यदि संसार में शांति स्थापित करनी है तो सनातन शिक्षाएं एकमात्र उपाय हैं, यूरोप के कई देश हिन्दू हो रहे है, अतः इन प्रपंच में आ रहे हिन्दुओं को इसपर विचार कर ही कदम उठाना चाहिए  . स्वतंत्रता के बड्स से अब तक हजारों लोगों ने तथाकथित बौद्ध धर्म अपनाया है उनकी कितनी उन्नति हुई इसका आंकलन हो तो अच्छा है.

२०. मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.

हिन्दुओं में असंख्य लोग बुद्ध धर्म की शिक्षाओं को मानते है व बुद्ध को भगवान् विष्णु का अवतार मानते हैं अतः उनका बताया धर्म भी सनातन का अविभाज्य अंग है.

२१. मुझे विश्वास है कि मैं (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा) फिर से जन्म ले रहा हूँ.

एक ओर  आप अवतार में विश्वास नहीं होने की प्रतिज्ञा दिलवा रहे हैं व यहीं पर पुनर्जन्म जो सनातन हिन्दू धर्म की प्रधान मान्यता है उसी की शपथ दिलवा रहे हैं.

२२. मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा  .

यदि हम गौर करेंगे तो पाएंगे कि बुद्, महावीर, नानक की शिक्षाएं देश काल व स्थिति के अनुरूप सनातन वेदों व अन्य हिन्दू ग्रंथों व मान्यताओं की ही बढ़ोतरी है. उपरोक्त प्रतिज्ञाएं शत-प्रतिशत हमारी मान्यताओं का ही प्रतिरूप हैं, आठ सौ वर्षों की विधर्मियों की गुलामी ने उसमे कुरीतियों को आश्रय दिया, अन्यथा हम विश्व की सबसे उत्कृष्ट समाज व्यवस्था थे. जन्म से जाति नहीं कुल होता है, वर्ण या लक्षण आपके व्यक्तित्व के लक्षणों पर आधारित होता है. सूत के घर जन्मा कर्ण  भी अंगराज हुआ, मछुवारन के पेट से जन्मा वेदव्यास ब्राह्मण हुआ, क्षत्रिय कुल में जन्मे विश्वामित्र ब्राह्मण हुए. जंगल में पैदा हुए हनुमान सेनापति हुए, शबरी संत हुई, ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जो यह सिद्ध करने के लिए उपयुक्त हैं कि जाति जन्म नहीं कर्म आधारित थी.

आज असंख्य लोग इस छुआ-छूत, जाति -पाती  के भेद को मिटाने के लिए कार्य कर रहे हैं, आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कुछ दिन पूर्व ही जाति -पाति समाप्त कर सभी हिन्दुओं को समरस होने का आग्रह किया था, संघ के सभी स्वयंसेवक समरसता के मूर्त उदाहरण हैं. समाज को ऐसे लोगों का साथ देकर उनको अधिक शक्ति प्रदान करनी चाहिए, न कि वामन मेश्राम व गौतम जैसे लोगों का जो विदेशी चंदे के लालच में देश का नुकसान व समाज के अंदर खायी को और बढ़ाने के कार्य में लगे हैं.

(लेखक सामाजिक चिंतक व शोधार्थी हैं@gopalgiri_uk)