Deepawali is a festival of happiness and gifts: खुशियों और सौगातों का त्योहार है दीपावली

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किसी भी समाज के सारे नियम कायदे व त्योहार किसी न किसी तरह से उसकी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। जैसे कि मुस्लिम समाज ईद पर और ईसाई समाज क्रिसमस के मौके पर खूब खरीदारी करता है ठीक उसी तरह हिंदू, जैन, सिख व बौद्ध समाज साल भर दिवाली के त्योहार का इंतजार करते हैं। सालों से चली आ रही भारतीय कृषि अर्थ व्यवस्था की धुरी है यह त्योहार। कुछ वर्ष पूर्व जब नीति आयोग योजना आयोग था, तन उसने अपने एक सर्वे में बताया था कि भारत के कुल योजना व्यय का आधार दीपावली पर आने वाला पैसा है। भारतीय उपभोक्ता का असली बाजार दरअसल दीपावली है। बाकी सारे त्योहारों का धार्मिक महत्व है पर दीपावली का एक व्यावसायिक महत्व है। आपको बताता चलूँ, कि आज से छह वर्ष पहले का आंकड़ा यह था, कि साल 2013 में दीवाली पर दस हजार करोड़ की तो मिठाई बिकी तथा हजार करोड़ से ऊपर की कारें। सोना और चांदी की बिक्री भी इसी सीजन में सबसे ज्यादा होती है और कपड़ों की भी। लेकिन इस दफे बाजार में सन्नाटा है, धनतेरस सूनी पड़ी है। लोगों के पास पैसा है, मगर वह बैंकों में कैद है।
दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज तक लगातार पांच दिन तक चलता है। पूरे देश में यह त्योहार समान रूप से मनाया जाता है और हिंदू, सिख, जैन तथा बौद्ध आदि सभी इसे मनाते हैं। यही कारण है कि दुनिया के अधिकांश देशों में इस दिन हिंदुओं को सरकारी तौर पर दीवाली की छुट्टी मिलती है। नेपाल, श्रीलंका, भूटान, बर्मा, मारीशस, गयाना, थाईलैंड में तो खैर इस दिन राजकीय अवकाश रहता है और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सारे कामकाज बंद रहते हैं। लेकिन अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में इस दिन हिंदुओं को छुट्टी मिलती है। साल 2003 से तो हर साल दीपावली के रोज अमेरिका के व्हाइट हाउस को भी रोशनी से सजाने की परंपरा चली आ रही है।
लेकिन रोशनी के इस त्योहार का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही अधिक यह उल्लास का भी पर्व है। इस दिन पूरे देश में जितनी खरीदारी होती है उतनी शायद किसी भी त्योहार में नहीं। गरीब से गरीब आदमी भी दीपावली में बर्तन से लेकर कपड़े, गहने, घर व गाड़ी सब खरीद लेना चाहते हैं। इसीलिए व्यापारी इसे त्योहारी सीजन भी कहते हैं। जो अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी नवरात्रि से शुरू होकर कार्तिक आमावस्या दीपावली  से कार्तिक पूर्णिमा यानी गुरु नानक देव के जन्म दिन तक चला करता है। आप पाएंगे कि अधिकतर छूट या डील दूकानदार इसी सीजन में चलाते हैं। सारे नये काम और शादी विवाह का मौसम भी यही है। जितनी गाडिय़ां इस त्योहारी सीजन में बिकती हैं उतनी पूरे साल नहीं बिक पातीं। हालांकि चैत्र नवरात्रि का एक सीजन मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल के पहले हफ्ते तक भी चलता है लेकिन गर्मी के कारण बाजार उस सीजन में लगभग सूना ही जाता है। इसीलिए भी दीपावली का महत्व अधिक है।
दरअसल भारत एक कृषिप्रधान देश रहा है इसलिए शुरू से ही यहां फसलों के लिहाज से ही त्योहार मनाए जाते रहे हैं। उष्ण कटिबंधीय देश होने के कारण यहां मुख्यतौर पर दो ही फसलें खास होती रही हैं रबी और खरीफ। रबी मार्च से कटनी शुरू होती है और खरीफ सितंबर मध्य से। चूंकि यहां धान मुख्य फसल है और धान ही खरीफ का आधार है इसलिए किसान के पास पैसा धान की फसल आने के बाद ही आता है। धान अब तक कट चुका होता है और किसान के पास खर्च करने को पैसा आ जाता है। किसान को भी महाजन पैसा तब ही देता है जब धान वो घर पर ले आता है। यह धान का पर्व है इसे धन-धान्य का पर्व भी इसीलिए कहते हैं। दीपावली में लाई व खील खास तौर पर देवी लक्ष्मी को अर्पित की जाती है। पूरे भारत में इसे खूब धूमधाम से मनाते हैं। एक तरफ तो धान की फसल घर आती है दूसरी तरफ दलहन की, मालूम हो कि उड़द, मसूर व मूंग जैसी दलहन की फसलों के कटने का समय भी यही है। जबकि रबी की फसल में गेहूं, चना, सरसों व अरहर है। यही कारण है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा व पंजाब में बैशाखी का पर्व भी इतने ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। जब किसान  के पास पैसा आएगा तब ही वह उल्लासित हो पाएगा। त्योहार इसी लिहाज से मनाए जाते रहे हैं। पूरे भारत की अर्थ व्यवस्था भी त्योहारी सीजन के आधार पर ही चलती रही है। आज भले ही अर्थ  व्यवस्था में तकनीक और कल कारखाने महत्वपूर्ण हो गए हैं लेकिन अभी भी रीढ़ कृषि ही है। यूं भी भारत में निर्यात ज्यादातर कृषि उपजों का ही होता है इसलिए उपभोक्ता भी कृषि उपज के घटने बढ़ने के आधार पर ही खरीदारी कर पाता है। चैत्र अप्रैल नवरात्रि का आधार अगर गन्ना है तो अश्विन नवरात्रि का आधार है धान। गन्ना दीपावली के कुछ पहले से कटना शुरू होता है और होली अंत तक चला करता है। यानी गन्ने की फसल का असली मजा दीपावली से होली के बीच का है। यही हमारे यहां आने वाले धन का आधार है। यहां तक कि शहरी कमकर वर्गों को भी कृषि उपज के आधार पर ही वेतन मानक तय होता है। चाहे वह केंद्रीय कर्मचारियों को मिलने वाला बोनस हो अथवा उनके वेतन संस्तुतियां। यही वेतनवृद्धि और बोनस उनकी खरीदारी का जरिया बनता है। पूरे साल लोग इंतजार करते हैं कि कब बोनस मिले और वे अतिरिक्त खरीदारी करें। दीपावली इस खरीदारी का बहाना बन जाती है। यह दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है। मान्यता है कि इस दिन कुछ खरीदारी जरूर करनी चाहिए। धनतेरस के दिन बर्तन से लेकर वाहन एवं सोने की खरीद के लिए शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन देर रात तक लोग खरीदारी करते हैं। इसी तरह अगले दिन छोटी दिवाली अर्थात नरकचौदस मनाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इस दिन लोगबाग अपने घर को साफ करते हैं। हर कोने से गंदगी निकाली जाती है। संभव हो तो इस दिन घर की सफाई व रंगाई का काम भी कर लिया जाए। इस दिन रात के समय बाथरूम व घर के बाहर एक-दो दीया रखकर रोशनी की जाती है और कहा जाता है कि घर के अंदर के सभी अपशकुन दूर हों। तीसरा दिन दीपावली का है। इस दिन सुबह से ही गहमा-गहमी रहती है। खाता पूजन से लेकर इस दिन पैसा नहीं खर्च करने का दिन है। आमतौर पर दीपावली के रोज खरीदारी से बचा जाता है। शाम को शुभ मुहूर्त में गणेश लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें फल फूल, मिठाई तथा खील का भोग लगाया जाता है। चीनी से बने हुए खिलौने भी गणेश लक्ष्मी के विग्रह पर चढ़ाए जाते हैं और पूजन के बाद पूरे घर में दीए जलाकर रखने और रोशनी करने का नियम है। माना जाता है कि इस दिन रात के किसी समय लक्ष्मी जी का घर में आगमन हो सकता है इसलिए उनकी अगवानी के लिए घर में पर्याप्त रोशनी की जाए। चूंकि पटाखे छुड़ाने का रिवाज भी है इसलिए लोग बाग दीवाली पूजन के बाद पटाखे छुड़ाते हैं। और अक्सर इतने पटाखे छुड़ाए जाते हैं कि सिर्फ एक ही दिन में हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। इससे जो लोग अस्थमा के मरीज होते हैं उन्हें काफी परेशानी होती है। इसके साथ ही एक और बीमारी या लत इस त्योहार के एक काले पक्ष को उजागर करती है वह है जुआ खेलना। दीपावली को जुआ खेलना लोग एक रसम समझते हैं लेकिन जुआ खेलकर वे कितनी रकम हार जाते हैं कि हंसी व उल्लास का यह पर्व मातम में बदल जाता है। दीपावली के अगले रोज का पर्व है गोवर्धन या अन्नकूट पूजा। मान्यता है कि इस दिन विष्णु ने इंद्र की पूजा खत्म कराई थी और अपनी पूजा शुरू कराई थी इसलिए यह दीपावली के अगले रोज मनाया जाने वाला पर्व है। इसके बाद तीसरे दिन भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन मथुरा में यम ने यमी से टीका लगवाया था। यमी यान यमुना नदी जो यम की छोटी बहन है। इसीलिए यम द्वितीया यानी भाई दूज पर्व को मनाया जाता है। इसमें बहनें अपने-अपने भाइयों को टीका लगाती हैं। और बदले में भाई बहन की रक्षा की कसम लेता है। धनतेरस से भाई दूज तक चलने वाला यह पर्व इसी के साथ समाप्त हो जाता है।