अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी के इस्तेमाल की जगह उपले या इलेक्ट्रॉनिक शवदाह गृह का करें इस्तेमाल

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Decision taken to save wood
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  • शहरी स्थानीय निकाय निदेशालय ने जारी किए निर्देश, लकड़ी बचाने के लिए लिया निर्णय

प्रभजीत सिंह लक्की, यमुनानगर :
हिन्दू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद मृत शरीर का दाह संस्कार करने में लकड़ी का सबसे अधिक उपयोग होता है। एक सर्वे के अनुसार भारत में एक तिहाई यानि करीब 70 फीसदी लकड़ी का उपयोग अंतिम संस्कार के लिए होता है। अकेले शवों के अंतिम संस्कार के लिए ही सालाना पांच करोड़ पेड़ों को काट दिया जाता है।

लकड़ी बचाने के लिए लिया निर्णय

शवों के अंतिम संस्कार से पर्यावरण पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़े, पेड़ों के अंधाधुंध कटान पर अंकुश लगाया जाए व लकड़ी बचाई जाए। इसके लिए शहरी स्थानीय निकाय निदेशालय की ओर से अंतिम संस्कार में लकड़ी के इस्तेमाल की बजाय उपले या विद्युत शवदाह गृह से अंतिम संस्कार करने की एडवाइजरी जारी की है। इस संबंध में निदेशालय की तरफ से प्रदेश के सभी निगम आयुक्त, जिला निगम आयुक्त, ईओ, नगर परि‌षदों के सचिव व अन्य को पत्र जारी कर लोगों को इसके प्रति जागरूक करने का आह्वान किया है। निगम की ओर से सभी श्मशान घाटों पर बैनर लगाकर लोगों को लकड़ी की जगह उपले या विद्युत शव गृह में अंतिम संस्कार कराने के लिए जागरूक किया जा रहा है।

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लकड़ी के इस्तेमाल की जगह उपले या इलेक्ट्रॉनिक शवदाह गृह का करें इस्तेमाल

निगमायुक्त आयुष सिन्हा ने बताया कि एक शव के संस्कार के लिए करीब चार से पांच क्विंटल तक लकड़ी की आवश्यकता होती है। ऐसे में हर साल सैकड़ों क्विंटल लकड़ी का इस्तेमाल शवों के अंतिम संस्कार में किया जाता है। इससे जहां पर्यावरण प्रदूषित अधिक मात्रा में होता है, वहीं लकड़ी की बहुत अधिक मात्रा अंतिम संस्कार में खर्च हो जाती है। लकड़ी को बचाने व पर्यावरण संरक्षण को लेकर विभाग की ओर से यह कदम उठाया गया है। इसके अलावा प्रत्येक श्मशान में हरा-भरा व लकड़ी रहित श्मशान बनाने, गाय के गोबर को शमशान घाट से चिपकाने की इकाई स्थापित करने श्मशान घाटों का जीर्णोद्धार व पुनर्विकास करने, फूलों की क्यारियां लगाने, दिवंगत व्यक्ति की याद में श्मशान घाट में पौधे लगाने के लिए भी लोगों को जागरूक करने के निर्देश जारी किए गए है।

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