बरेली एक बार फिर चर्चा में है। कभी बरेली के बाजार में गिरा एक झुमका गीत की शुक्ल में बॉलीवुड से बरेली को चर्चा में लाया था। बरेली की बाला प्रियंका चोपड़ा विश्व सुन्दरी बनीं, तो बरेली पर फिर खूब बातें हुर्इं। कुछ साल पहले आई फिल्म बरेली की बर्फी ने भी देश को बरेली से जोड़ा। इन सबके बाद एक बार फिर बरेली चर्चा में है।
इस बार बरेली की बेटी देशभर में चर्चा का कारण बनी है। बरेली की बेटी ने इश्क के लिए बगावत की है, यह बगावत क्या करवट लेगी, यह तो वक्त ही बताएगा किन्तु फिलहाल इस बगावत ने देश की बेटियों को ही बांट दिया है। कुछ बेटियां आंख बंद कर बरेली की बेटी के साथ खड़ी हैं, तो कुछ उसे यह कहकर खारिज कर रही हैं कि बरेली की बेटी ने देश की अन्य बेटियों को मिल रही आजादी की राह में बड़ा रोड़ा अटका दिया है। पिछले कुछ वर्षों से देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे तेजी से बढ़े हैं। भारतीय परंपरा में वैसे भी यत्र नार्यस्तु पूज्यंते जैसी पंक्तियां नारी सशक्तीकरण का आधार बनती रही हैं। बेटियों की पढ़ाई को लेकर जागरूकता बढ़ी है और उन्हें आजादी भी मिली है।
बेटियां घर से दूर छात्रावासों में रहकर पढ़ रही हैं। बरेली की बेटी साक्षी भी इश्क की इस बगावत से पहले जयपुर में माता-पिता से दूर रहकर ही पढ़ रही थी। यह पहला मामला नहीं है, जब अंतर्जातीय विवाह हुआ हो। अच्छी बात यह है कि आॅनर किलिंग की तमाम घटनाओं के बीच ही सही, अंतर्जातीय विवाहों की स्वीकार्यता भी बढ़ी है। इसके बावजूद साक्षी ने जिस तरह से अपने पिता के खिलाफ बगावत करने के साथ उन्हें हर कदम पर शर्मसार करने की रणनीति अपनाई है, उससे तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं।
साक्षी ने पहले दिन जब अपने पिता से खतरा होने संबंधी वीडियो संदेश जारी किया था, तब तक अधिकांश लोग उसके साथ ही खड़े थे किन्तु अगले ही दिन जिस तरह साक्षी ने मीडिया के बीच जाकर अपने परिवार की छीछालेदर की, उससे स्थितियां बदल गई हैं। यह स्थितियां विचारणीय भी हैं। प्यार को परिभाषित करना बड़ा कठिन
सा भी है। एक बेटी बीस साल तक माता-पिता के साथ रहती है। इस दौरान वह पापा की लाड़ली होती है, इस कदर लाड़ली कि उसकी जुबां पर पापा की परी हूं मैं जैसे गीत गूंजते रहते हैं। अचानक एक दिन एक युवक उसकी जिंदगी में आता है और उसका प्यार बीस साल के प्यार के ऊपर भारी पड़ जाता है। दोनों के प्यार की कोई तुलना नहीं की जानी चाहिए, इसके बावजूद स्वीकार्यता के साथ आगे बढ़ने के रास्ते पर विचार तो होना ही चाहिए। अपनी बेटी को प्यार करने वाला हर पिता उसके फैसले के साथ खड़ा होगा।
इस मामले में तो साक्षी ने ऐसा भी नहीं किया। पिता को पता ही नहीं चला कि वह किसी से विवाह करना चाहती है। सामान्य भारतीय परिस्थितियों में किसी बेटी का पिता अपने बेटी से उम्र में काफी बड़े, बेरोजगार व कर्जदजार युवक से उसका विवाह नहीं करना चाहेगा। ऐसे में जिस तरह साक्षी ने अपने पूरे परिवार को कठघरे में खड़ा किया, उससे भी तमाम सवाल उठ रहे हैं। पिता व भाई अपराधी हो सकते हैं, पर सामान्यत: बेटियां मां को तो अपने मन की बात बताती ही हैं, किन्तु इस मामले में ऐसा भी नहीं हुआ। ये स्थितियां समाज में आ रहे नकारात्मक बदलावों की कहानी कह रही हैं, इस पर सकारात्मक विचार होना जरूरी है।
दरअसल यह मामला भी तमाम अन्य मामलों की तरह शांत हो जाता, यदि साक्षी के पिता विधायक न होते। पिता के विधायक होने के कारण साक्षी को भी शायद उनसे कुछ ज्यादा ही डर लगा होगा। वैसे पहले वायरल वीडियो के बाद स्थितियां साक्षी के पक्ष में आ गई थीं, ऐसे में चैनल-चैनल जाकर परिवार पर आरोप लगाने से स्थितियां बदल गर्इं। इसमें मीडिया की भूमिका भी सवालों में है।
जिस तरह से मीडिया ने साक्षी के साथ खड़ा दिखने भर के लिए भारतीय परिवार व्यवस्था पर सवाल उठाए, वह भी दुर्भाग्यपूर्ण है। अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने की बात करने वाले भी साक्षी द्वारा उठाए गए कदम से सहमत नजर नहीं आते हैं।ऐसे में इतना तय है कि बरेली की इस बेटी ने पूरे देश में एक नई चर्चा को जन्म दिया है। परिवार व्यवस्था व प्यार की परिभाषा के साथ रिश्तों की तराजू पर तौलते मनोभावों का विश्लेषण भी जरूरी है।
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