पहले कहते थे कि अपराध और अपराधियों का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन अब हालात बदले-बदले से हैं। अब अपराधियों का स्वागत भी धड़ल्ले से हो रहा है और उसमें धार्मिक नारे भी लग रहे हैं। जिस तरह मॉब लिंचिंग के दौरान आरोपियों द्वारा धार्मिक नारे लगाए जाते हैं, ठीक वैसा ही। इस नई पनपती संस्कृति को शासन-सत्ता जो समझे, पर यह है खतरनाक। समाज के लिए तो बेहद डरावना है। भविष्य में मिलने वाले इसके परिणाम के बारे में सोचकर ही डर लगने लगता है। यदि इस तरह की संस्कृति पर रोक नहीं लगी तो इसके परिणाम दुखद होंगे। पिछले पांच-छह वर्षों में देश में बहुत कुछ बदला है। उसी बदलाव में यह भी है कि पहले लोग हत्यारोपियों और अपराधियों से नफरत करते थे, लेकिन अब उन पर भी प्यार उमड़ने की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। कभी-कभार तो हद तब हो जाती है जब शासन-सत्ता से जुड़े लोग भी मिशन अभिनन्दन-ए-अपराधी में खुद संलिप्त हो जाते हैं। इसे बेलागलपेट दुर्भाग्यपूर्ण की संज्ञा दे सकते हैं। इससे भी दुखद यह है कि देश में बड़ी कुर्सियों पर आसीन नेता इन बिन्दुओं पर अपना मुंह तक नहीं खोलते। इसे उनकी मौन स्वीकृति मान लेना लाजिमी है। सवाल यह है कि इस नए युग में हम किस दिशा में जा रहे हैं और आखिरकार इसका लाभ किसे और क्या मिलने वाला है।
इस पलती-बढ़ती नई संस्कृति का ताजा उदाहरण यूपी का बुलंदशहर का है जहां भारी हिंसा और आगजनी के कुछ अभियुक्तों की पिछले दिनों जमानत होने पर उनका जोरदार अभिनन्दन किया गया। बीते वर्ष बुलंदशहर में हिंसा की एक भयानक घटना हुई थी जिसमें गोहत्या का आरोप लगाकर उपद्रवी भीड़ ने एक पुलिस अधिकारी की पहले पीट-पीटकर और फिर गोली मारकर हत्या कर दी थी। उनकी जीप में आग लगा दी गई थी। इस दौरान अन्य मौतें भी हुई थीं। घटना की शुरूआत महाव गांव के एक खेत से हुई। बताया गया कि खेत में गोवंश की कुछ हड्डियां पड़ी हैं जिससे लगता है कि गोहत्या हुई है। पुलिस ने जांच करके कार्रवाई का आश्वासन दिया। लेकिन करीब 400 लोगों की भीड़ एक ट्रैक्टर-ट्रॉली में जानवरों की हड्डियां लेकर पुलिस चौकी पहुंच गई और गोहत्या का आरोप लगाकर प्रदर्शन करने लगी। पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह खबर पाकर मौके पर पहुंचे। उन्होंने उग्र भीड़ को शांत कराना चाहा, लेकिन वह हिंसा पर उतर आई। किसी ने उन्हें गोली मार दी और उनकी जीप में आग लगा दी। इस मामले में कई लोग गिरफ्तार किए गए थे, जिनमें बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोग भी थे। बीते 24 अगस्त को गिरफ्तार अभियुक्तों में से सात लोग हाईकोर्ट से जमानत पाकर छूटे। जेल से उनके छूटते ही स्थानीय भाजपा नेताओं और हिंदू संगठनों के लोगों ने उनका जय श्रीराम और भारत माता की जय के नारों के बीच फूलमालाओं से स्वागत किया। लोगों ने उनके साथ सेल्फी खिंचाकर सोशल साइट्स पर डालीं और शाम को उनके लिए दावत का इंतजाम किया।
इसे दुखद ही नहीं, दुर्भाग्यपूर्ण भी कहेंगे कि भीड़-हत्या जैसे संगीन आरोपों से घिरे अपने कार्यकर्ताओं के अभिनंदन की शुरूआत बड़े नेताओं ने ही की थी। सितंबर, 2015 में यूपी में दादरी के बिसाहड़ा गांव में मुहम्मद अखलाक की हत्या कर दी गई थी। अखलाक को घर में गोमांस रखने का आरोप लगाकर पहले एक मंदिर से उसे सबक सिखाने का एलान किया गया। उसके बाद उत्तेजित भीड़ ने घर में घुसकर उसकी हत्या कर दी। उसके बेटे को अधमरा कर दिया गया। इस मामले के एक अभियुक्त रवींद्र सिसौदिया की जब कुछ महीनों बाद पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गई, तो अंतिम यात्रा में उसके शव को राष्ट्रीय ध्वज में लपेट कर ले जाया गया, जैसे वह कोई शहीद हो। तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा भी वहां मौजूद थे।
वह रवींद्र के घर भी गए। उन्होंने इसका एलान बकायदा अपने ट्विटर हैंडल पर किया था। महेश शर्मा की तब काफी आलोचना हुई थी, लेकिन शर्मा ने इस पर कोई अफसोस नहीं जताया कि वह एक हत्याभियुक्त के पक्ष में खड़े दिखाई दिए। बल्कि, वह यह कहते रहे कि वह मेरा चुनाव क्षेत्र था और मैंने अपने लोगों के कहने पर ऐसा किया। बाद में अखलाक की हत्या के 15 आरोपियों को केंद्र सरकार की नौकरियां दिए जाने की खबर मिली। जून, 2017 में ही झारखंड के रामगढ़ में भीड़ ने 40 वर्षीय अलीमुद्दीन अंसारी की कार से बाहर खींच कर पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। उस पर अपनी गाड़ी में गोमांस ले जाने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में एक दर्जन अभियुक्तों को दोषी पाते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। साल भर बाद इनमें से आठ लोगों को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी। इस तरह छूटने पर भी बीजेपी ने उनके स्वागत में एक आयोजन किया। इसमें इन आठ लोगों का तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने फूलमाला पहनाकर अभिनंदन किया। बिहार के नवादा में 2017 की रामनवमी के दौरान दंगे भड़काने के मामले में पुलिस ने बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के कुछ स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था।
अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह गिरफ्तार अभियुक्तों से जेल में मिलने गए। उन्होंने इन अभियुक्तों की गिरफ्तारी को साजिश बताया और उनसे सहानुभूति जताई। गिरिराज सिंह की इस हरकत पर एनडीए के सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विरोध जताते हुए कहा था कि वह राज्य में क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म बर्दाश्त नहीं करेंगे। नीतीश की इस कड़ी टिप्पणी का बीजेपी नेताओं ने संज्ञान ही नहीं लिया। इस तरह की हालातों पर विश्लेषक नवीन जोशी की टिप्पणी है कि प्रधानमंत्री मोदी भीड़-हत्या के सिलसिलों पर खामोश ही रहते आए थे तो उनसे यह आशा कैसे की जा सकती थी कि वह अपने नेताओं की इन हरकतों पर लगाम लगाएंगे। उनसे अपेक्षा तो यह थी कि वह बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं की इन गैर-कानूनी और मुस्लिम-विरोधी हिंसा पर कड़ा रुख अपनाएंगे।
वैसे, बहुत दिनों बाद एक बार उन्होंने यह जरूर कहा कि गोहत्या के नाम पर हिंसा करने वाले गोरक्षक नहीं हो सकते। गोहत्या का आरोप लगाकर हत्या और मारपीट करने की वारदात देश के विभिन्न भागों में होती रही हैं। अब भी सिलसिला थमा नहीं है। कभी किसी मुसलमान को रास्ते में रोककर उसकी तलाशी ली जाती है कि कहीं वह गोमांस तो नहीं ले जा रहा, कभी किसी गोपालक के वाहन पर हमला करके जानवर छुड़ा लिए जाते हैं और कभी बाजार से लौटते किसी व्यक्ति के झोले में गोमांस होने की अफवाहें फैला कर उस पर हमला कर दिया जाता है। जानकार मानते हैं कि यह सब मूलत: मुसलमानों में भय फैलाने की सोची-समझी चाल है। राजस्थान के राजसमंद में शम्भू रैगर नाम के युवक ने एक मजदूर अफराजुल को कुल्हाड़ी से काटकर मारते हुए अपना वीडियो बनवा कर सोशल मीडिया में डाला था, तब शम्भू को नायक बताते हुए उसकी मदद की अपीलें की गई थीं। शम्भू के खाते में चंद रोज ही में कुछ लाख रुपए जमा हो गए थे। बेचारा निर्दोष अफराजुल पश्चिम बंगाल के मालदा से मजदूरी करने राजस्थान गया हुआ था।
ईद की खरीदारी करके दिल्ली से घर लौटते एक परिवार के किशोर जुनैद को ट्रेन में चाकू से गोद कर मार डालने और दूसरों को घायल कर देने की घटना क्या बिला वजह हुई थी? इन मामलों के अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस पर्याप्त सबूत जुटाकर अदालत में पेश नहीं करती। राजस्थान में पहलू खान की हत्या के सभी अभियुक्त हाल ही में अदालत से बरी हो गए। इन कहानियों को देख-समझ कर आपको डर नहीं लगता कि हम किस तरह के भारत का निर्माण कर रहे हैं। यदि यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो भविष्य में क्या होगा? बहरहाल, देखते हैं कि आगे क्या होता है?
(लेखक आज समाज के समाचार संपादक हैं)
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इस पलती-बढ़ती नई संस्कृति का ताजा उदाहरण यूपी का बुलंदशहर का है जहां भारी हिंसा और आगजनी के कुछ अभियुक्तों की पिछले दिनों जमानत होने पर उनका जोरदार अभिनन्दन किया गया। बीते वर्ष बुलंदशहर में हिंसा की एक भयानक घटना हुई थी जिसमें गोहत्या का आरोप लगाकर उपद्रवी भीड़ ने एक पुलिस अधिकारी की पहले पीट-पीटकर और फिर गोली मारकर हत्या कर दी थी। उनकी जीप में आग लगा दी गई थी। इस दौरान अन्य मौतें भी हुई थीं। घटना की शुरूआत महाव गांव के एक खेत से हुई। बताया गया कि खेत में गोवंश की कुछ हड्डियां पड़ी हैं जिससे लगता है कि गोहत्या हुई है। पुलिस ने जांच करके कार्रवाई का आश्वासन दिया। लेकिन करीब 400 लोगों की भीड़ एक ट्रैक्टर-ट्रॉली में जानवरों की हड्डियां लेकर पुलिस चौकी पहुंच गई और गोहत्या का आरोप लगाकर प्रदर्शन करने लगी। पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह खबर पाकर मौके पर पहुंचे। उन्होंने उग्र भीड़ को शांत कराना चाहा, लेकिन वह हिंसा पर उतर आई। किसी ने उन्हें गोली मार दी और उनकी जीप में आग लगा दी। इस मामले में कई लोग गिरफ्तार किए गए थे, जिनमें बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोग भी थे। बीते 24 अगस्त को गिरफ्तार अभियुक्तों में से सात लोग हाईकोर्ट से जमानत पाकर छूटे। जेल से उनके छूटते ही स्थानीय भाजपा नेताओं और हिंदू संगठनों के लोगों ने उनका जय श्रीराम और भारत माता की जय के नारों के बीच फूलमालाओं से स्वागत किया। लोगों ने उनके साथ सेल्फी खिंचाकर सोशल साइट्स पर डालीं और शाम को उनके लिए दावत का इंतजाम किया।
इसे दुखद ही नहीं, दुर्भाग्यपूर्ण भी कहेंगे कि भीड़-हत्या जैसे संगीन आरोपों से घिरे अपने कार्यकर्ताओं के अभिनंदन की शुरूआत बड़े नेताओं ने ही की थी। सितंबर, 2015 में यूपी में दादरी के बिसाहड़ा गांव में मुहम्मद अखलाक की हत्या कर दी गई थी। अखलाक को घर में गोमांस रखने का आरोप लगाकर पहले एक मंदिर से उसे सबक सिखाने का एलान किया गया। उसके बाद उत्तेजित भीड़ ने घर में घुसकर उसकी हत्या कर दी। उसके बेटे को अधमरा कर दिया गया। इस मामले के एक अभियुक्त रवींद्र सिसौदिया की जब कुछ महीनों बाद पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गई, तो अंतिम यात्रा में उसके शव को राष्ट्रीय ध्वज में लपेट कर ले जाया गया, जैसे वह कोई शहीद हो। तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा भी वहां मौजूद थे।
वह रवींद्र के घर भी गए। उन्होंने इसका एलान बकायदा अपने ट्विटर हैंडल पर किया था। महेश शर्मा की तब काफी आलोचना हुई थी, लेकिन शर्मा ने इस पर कोई अफसोस नहीं जताया कि वह एक हत्याभियुक्त के पक्ष में खड़े दिखाई दिए। बल्कि, वह यह कहते रहे कि वह मेरा चुनाव क्षेत्र था और मैंने अपने लोगों के कहने पर ऐसा किया। बाद में अखलाक की हत्या के 15 आरोपियों को केंद्र सरकार की नौकरियां दिए जाने की खबर मिली। जून, 2017 में ही झारखंड के रामगढ़ में भीड़ ने 40 वर्षीय अलीमुद्दीन अंसारी की कार से बाहर खींच कर पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। उस पर अपनी गाड़ी में गोमांस ले जाने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में एक दर्जन अभियुक्तों को दोषी पाते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। साल भर बाद इनमें से आठ लोगों को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी। इस तरह छूटने पर भी बीजेपी ने उनके स्वागत में एक आयोजन किया। इसमें इन आठ लोगों का तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने फूलमाला पहनाकर अभिनंदन किया। बिहार के नवादा में 2017 की रामनवमी के दौरान दंगे भड़काने के मामले में पुलिस ने बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के कुछ स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था।
अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह गिरफ्तार अभियुक्तों से जेल में मिलने गए। उन्होंने इन अभियुक्तों की गिरफ्तारी को साजिश बताया और उनसे सहानुभूति जताई। गिरिराज सिंह की इस हरकत पर एनडीए के सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विरोध जताते हुए कहा था कि वह राज्य में क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म बर्दाश्त नहीं करेंगे। नीतीश की इस कड़ी टिप्पणी का बीजेपी नेताओं ने संज्ञान ही नहीं लिया। इस तरह की हालातों पर विश्लेषक नवीन जोशी की टिप्पणी है कि प्रधानमंत्री मोदी भीड़-हत्या के सिलसिलों पर खामोश ही रहते आए थे तो उनसे यह आशा कैसे की जा सकती थी कि वह अपने नेताओं की इन हरकतों पर लगाम लगाएंगे। उनसे अपेक्षा तो यह थी कि वह बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं की इन गैर-कानूनी और मुस्लिम-विरोधी हिंसा पर कड़ा रुख अपनाएंगे।
वैसे, बहुत दिनों बाद एक बार उन्होंने यह जरूर कहा कि गोहत्या के नाम पर हिंसा करने वाले गोरक्षक नहीं हो सकते। गोहत्या का आरोप लगाकर हत्या और मारपीट करने की वारदात देश के विभिन्न भागों में होती रही हैं। अब भी सिलसिला थमा नहीं है। कभी किसी मुसलमान को रास्ते में रोककर उसकी तलाशी ली जाती है कि कहीं वह गोमांस तो नहीं ले जा रहा, कभी किसी गोपालक के वाहन पर हमला करके जानवर छुड़ा लिए जाते हैं और कभी बाजार से लौटते किसी व्यक्ति के झोले में गोमांस होने की अफवाहें फैला कर उस पर हमला कर दिया जाता है। जानकार मानते हैं कि यह सब मूलत: मुसलमानों में भय फैलाने की सोची-समझी चाल है। राजस्थान के राजसमंद में शम्भू रैगर नाम के युवक ने एक मजदूर अफराजुल को कुल्हाड़ी से काटकर मारते हुए अपना वीडियो बनवा कर सोशल मीडिया में डाला था, तब शम्भू को नायक बताते हुए उसकी मदद की अपीलें की गई थीं। शम्भू के खाते में चंद रोज ही में कुछ लाख रुपए जमा हो गए थे। बेचारा निर्दोष अफराजुल पश्चिम बंगाल के मालदा से मजदूरी करने राजस्थान गया हुआ था।
ईद की खरीदारी करके दिल्ली से घर लौटते एक परिवार के किशोर जुनैद को ट्रेन में चाकू से गोद कर मार डालने और दूसरों को घायल कर देने की घटना क्या बिला वजह हुई थी? इन मामलों के अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस पर्याप्त सबूत जुटाकर अदालत में पेश नहीं करती। राजस्थान में पहलू खान की हत्या के सभी अभियुक्त हाल ही में अदालत से बरी हो गए। इन कहानियों को देख-समझ कर आपको डर नहीं लगता कि हम किस तरह के भारत का निर्माण कर रहे हैं। यदि यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो भविष्य में क्या होगा? बहरहाल, देखते हैं कि आगे क्या होता है?
(लेखक आज समाज के समाचार संपादक हैं)
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