Covid is 19, save, save: कोविड19 है, बचिए, बचाइए

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हरियाणा में आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में ज़ोर-शोर से मनाने की तैयारी चल रही थी। इस अवसर पर गाँवो में महिलाओं से सम्बंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए ग्राम-सभा की बैठक होनी थी। ज़िला और प्रखंड स्तर पर जागरूकता दौड़ होनी थी। गुरुग्राम में ऑल-वीमेन मैराथन होना था जिसके लिए लाख के क़रीब उत्साही महिलाओं ने पंजीकरण भी करवा लिया था। मिलेनीयम सिटी में उत्सव का माहौल था।
जब हरियाणा के मुख्य मंत्री ने चार मार्च को जनस्वास्थ्य को ख़तरे की बात कर गुरुग्राम मैराथन को स्थगित करने की घोषणा की तो बहुतों के समझ में नहीं आया कि मामला क्या है? तब से लेकर वे लगातार कोविड19 की चुनौती से वे राज्य को उबारने की कोशिशों में लगे हैं। योजनाबद्ध तरीक़े से प्रशासन को प्रेरित और सक्षम करने में जुटे हैं। स्थिति का जायज़ा लेने के  लिए रोज़ सैकड़ों लोगों से स्वयं बात करते हैं। प्रतिदिन पाँच बजे स्थिति और तैयारियाँ को ब्योरा टीवी पर स्वयं आकर देते हैं। लोगों को आश्वस्त और प्रेरित करते हैं। इसी का परिणाम है कि संक्रमितों की संख्या नियंत्रण में है। पुलिस बग़ैर बल प्रयोग किए लाक्डाउन को लागू करने में सफ़ल हुई है। पहले दिन से ही रिलीफ़ वर्क में जुटी है। प्रशासन एकजुट है, आम राजनैतिक सहमति है। इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
31 दिसंबर 2020 को दुनियाँ नए साल के जश्न में डूबी थी। तब किसी को पता नहीं था चीन के वुहान शहर में एक नई बीमारी से कोई अंतिम साँस ले रहा है। ये कोरोना वाइरस कुनबे की छठी वारिस थी जो बेहद चतुर और फुर्तीली निकली। अब तक सिवाय अंटॉर्क्टिक के हर देश में जड़ जमा चुकी है। एक लाख से ऊपर की जान ले चुकी है। संक्रमितों की संख्या बीस लाख तक पहुँचा चुकी है। क्या अमेरिका, क्या यूरोप, इसके सामने सबकी हवाइयाँ उड़ रह रही है।
कोविड19 के अनियंत्रित प्रसार का जवाब निश्चित रूप से चीन को ही देना है। इसे ही साबित करना है कि इसने समय रहते इस संकट के बारे मे सही-सही दुनियाँ को बताया। वैसे क्या ये आश्चर्य की बात नहीं है कि ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का मुखिया पेशे से डाक्टर नहीं है? ईथोपिया में मंत्री हुआ करता था। कहते हैं कि इसने चीन की पैरवी से ये पोस्टिंग पाई है। अमेरिका का आरोप है कि इसने अपने आका के इशारे पर इस बीमारी के बारे दुनियाँ को आगाह करने में देरी कर दी। चूँकि वाइरस आदमी पर सवार होकर सब जगह फैला अगर समय रहते यात्राओं पर रोक लग जाती, जैसा कि 2003 में सार्स के मामले में किया गया था, तो नुक़सान ‘95% तक कम’ होता। ढीठ का जवाब था ‘अगर महामारी पर राजनीति हुई तो और भी ज़्यादा लोग मरेंगे’। जैसे कि अब तक रोक रखा हो।
व्यक्तिगत स्तर पर कोविड19 का बड़ा सरल समाधान है – हाथ धोएँ, हाथ से अपने  मुँह, नाक और आँख को ना छुएँ। चूँकि संक्रमण बीमारी के लक्षण (बुख़ार, खांसी, साँस लेने में तकलीफ़) से पहले ही शुरू हो जाता है, पता नहीं चलता की कौन संक्रमित है और कौन नहीं। इसलिए सबसे दूरी रखें। पहले तीन फ़ीट की बात थी लेकिन एक शोध में पाया गया है कि थूक, छींक और सांस के माध्यम से निकला वाइरस आठ फ़ीट से ज़्यादा दूर जा सकता है और घंटों हवा में झूलता रह सकता है। इसीलिए लोग फ़ेस-मास्क पहनें। चूँकि कोई इलाज नहीं है और बीमार अस्पताल की क्षमता से अधिक हो गए तो बचाए जा सकने वाले की भी जान जाने लगेगी, बेहतर है कि एहतियात बरतें।
जानकारों का कहना है कि भारत ने लॉकडाउन जैसे सख़्त कदम समय रहते उठा लिए। अगर देर की होती तो कोविड19 से संक्रमितों की संख्या पंद्रह अप्रैल तक आठ लाख की हो गई होती। ये असाधारण स्थिति में लिया गया कठोर फ़ैसला था। मुश्किलें तो होनी थी। लेकिन अब तक तंत्र ने कुशलता से स्थिति को सम्भाल रखा है। पुलिस, स्वास्थ्य एवं सफ़ाई कर्मी एक ख़तरनाक स्थिति से जूझ रहे हैं। अधिकांश लोग मौक़े की नज़ाकत को समझते हैं। सहयोग कर रहे हैं। कई डूबते टायटानिक जहाज़ के नकचढ़े यात्रियों की तरह सुविधा-वंचन की शिकायत करते हैं। रोज़ कमाने खाने वाले तत्काल सरकारी राशन पर जी रहे हैं। सोच में हैं कि कब अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटे और ग़रीबी के गर्त से बाहर निकलने का संघर्ष शुरू हो। फ़ूड फ़ाउंडेशन के रिपोर्ट के मुताबिक़ इंग्लैंड जैसे समृद्ध देश में लाक्डाउन की वजह से क़रीब तीस लाख लोग भूखे पेट सोने को विवश हैं।
अब जब कि लाक्डाउन आगे बढ़ाने की बात हो रही है, ये समझ लेना चाहिए कि जब तक कोई वैक्सीन नहीं बन जाता कोविड19 का ख़तरा मंडराता रहेगा। समस्या सिर्फ़ बीमारी की नहीं है। सोशल मीडिया की वजह से एक ‘इंफ़ोडेमिक’ समानांतर चल रहा है। दुष्प्रचार और अधकचरे ज्ञान से घोर संशय को स्थिति बनी हुई है। विज्ञान में कहते हैं कि गैलीलियो के समय जैसी अफ़रा-तफ़री है। कोई इसे तीसरा विश्व युद्ध बता रहा है जो चीन बैठे-बैठे जीत गया। कोई डराने में लगा है कि इससे लोगों की प्राइवेसी पर आँच आएगी। रोग का पता करते-करते लोगों की अन्य सूचनाएँ भी बाहर आ जाएगी जो क़ायदे से नहीं होनी चाहिए। अर्थव्यवस्था की अर्थी तो सारे उठा ही चुके हैं।
छोटी सी बात है कि हाथ धोना है, नाक-मुँह-आँख नहीं छूना है और फ़ेसमास्क लगाकर चलना  है। इसे सुनिश्चित करने के लिए ही लाक्डाउन किया हुआ है। लगता है, इसके हटने के बाद भी ये बाध्यता रहेगी। जीने का ढंग बदलना पड़ेगा। नमस्ते और फ़ेसमास्क में बचाव है। बहुत संभव है कि माल, होटल, बाज़ार, सोसायटी के आगे मेटल डिटेक्टर और फ़्रिस्किंग के साथ आपको एक डिसिन्फ़ेक्टिंग सुरंग से भी गुजरना पड़े। एक आदमी थर्मल गन आपके माथे पर तान दे इस अख़्तियारात के साथ कि आपका माथा गरम है, आप अंदर नहीं जा सकते।