Covid 19, Dana na ghaas, kharhara raat din! कोविड 19, दाना न घास, खरहरा रात दिन ! 

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प्रतीकों और महज आत्मविश्वास के बल पर युद्ध मे उतरना अक्सर आत्मघाती होता है। युद्ध या युद्ध जैसी स्थितियां अंतिम विकल्प होती हैं।
आज पूरा विश्व जिस विषाणु जन्य आपदा से जूझ रहा है वह एक युद्ध ही तो है। पर यह एक ऐसा युद्ध है जिसके शत्रु प्रछन्न है। हमारे घर मे ही कहीं छुपा हो सकता है। उसका नाश दवाओं से और बचाव सुरक्षात्मक उपकरणों से ही सम्भव है। लेकिन हम इन संसाधनों के संदर्भ में कहां हैं, यह हमें भलीभांति समझ लेना होगा। रणक्षेत्र में जब युद्ध के संसाधन पर्याप्त होते हों तो निश्चय ही प्रतीक और आत्मविश्वास उस युद्ध मे अतिरिक्त सम्बल देते हैं। पर जब युद्ध के संसाधनों के अभाव से ही हम जूझ रहे होते हों तो ऐसे प्रतीक और आत्मविश्वास वैसे ही हैं जैसे बिना बारूद के कारतूस या बिना कारतूस के बंदूकें। थाली, ताली, दीया, बाती इन सब आयोजनों से किसी को कोई ऐतराज नहीं है। ये सब उपक्रम मनोबल ही बढ़ाते हैं। लेकिन यह सब और अच्छे लगते अगर इस कोविड 19 से लड़ने के लिये हमारे डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के पास पर्याप्त संख्या में उपकरण और दवाएं होतीं। लेकिन न तो उचित दवाएं हैं और न हीं पर्याप्त संख्या में सुरक्षा के उपकरण। यह मैं ही नहीं कह रहा हूं, बल्कि देश के अनेक क्षेत्रों के डॉक्टरों का भी यही कहना है। इन सब समस्याओं के बारे में सरकार को बताना आज के समय मे नकारात्मक समझा जाने लगा है। आप खुद ही सोचें क्या सरकार को इन सब संसाधनों के अभाव के बारे में बताना क्या महज विरोध है या यह सरकार को जागृत करना है ? हमारे यहां भोजपुरी में एक कहावत कही जाती है, दाना न घास, खरहरा रात दिन। यानी, घोड़े को दाना पानी मयस्सर ही नहीं हो पा रहा है, पर  उसकी मालिश ज़रूर रात दिन की जा रही है।
अब जैसे जैसे कोविड 19 का प्रसार बढ़ रहा है  देश भर से पीपीई की ज़रूरतें बढ़ने लगी हैं और देशभर के अस्पतालों के डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को भी इनकी कमी पड़ने लगी है। असल समस्या एन 95 मास्क की है। यह मास्क अलग तरह का होता है, जो इस घातक वायरस को नियंत्रित करने में सफल होता है। अन्य मास्क जो दो या तीन पर्तो के होते हैं, वे एक मनोवैज्ञानिक ढांढस ज़रूर देते हैं पर संक्रमण को कितना रोक पाते होंगे इसमे विवाद है। फिर भी स्थानीय स्तर पर कुछ उत्साही और जनहित में अपना योगदान देने वाले कुछ युवा समूह ऐसे दो या तीन पर्तो वाले मास्क बना रहे हैं। लेकिन वे एन 95 के विकल्प नहीं हैं।
ऐसे उपकरणों की कमी जब राजधानी दिल्ली के समृद्ध अस्पताल महसूस कर रहे हैं तो देश के अन्य भागों में, इन उपकरणों का कितना अभाव होगा, यह अनुमान लगाया जा सकता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा है कि,  उनके राज्य के अस्पतालों में इन उपकरणों का अभाव हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम के साथ हुयी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद अपने यहां इन उपकरणों की कमी पर एक लंबा नोट भारत सरकार को भेजा है। आशा वर्करों के लिये जो गांव गांव घूम कर कोविड 19 के बारे में जानकारी एकत्र कर रही है उंनके संगठनों ने भी एक हस्ताक्षर याचिका अभियान अपनी इस समस्या के लिये चलाया है।
अखबारों में यह खबर छप रही है कि सरकारी रक्षा उत्पादन कंपनियां इन उपकरणों को बना रही हैं। महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप ने भी वेंटिलेटर के बनाने और कम दर पर उपलब्ध कराने की बात कही है। ऐसा ही एक बयान रिलायंस का भी आया था। लेकिन देश का मेनस्ट्रीम मीडिया न तो इन उपकरणों की कमी और न ही इन उपकरणों के कमी की पूर्ति की बात कर रहा है। वह इस विषय पर आंख मूंद कर बैठा है। यह ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर चुप बैठा रहा जा सके। अगर यह संक्रमण और अधिक प्रसारित होता है जैसा कि इसकी प्रकृति दुनियाभर में हो रहे इसके संक्रमण की गति से ज्ञात हो रही है तो ऐसे समय मे केवल हमारे देशभर के अस्पतालों के डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को ही संक्रमित होने से बचाने के लिए न्यूनतम पीपीई उपकरणों की ज़रूरत पड़ेगी। लेकिन आज एम्स के निदेशक डॉ गुलेरिया ने कह ही दिया कि हम कम्यूनिटी स्टेज यानी कोविड 19 के तीसरे चरण में प्रवेश कर गए हैं।
वेंटिलेटर और टेस्टिंग किट की बात तो बाद में आएगी। वेंटिलेटर की बात तो आईसीयू स्टेज पर आएगी। जब एन 95 मास्क ही पर्याप्त संख्या में नहीं हैं तो, वेंटिलेटर की क्या बात की जाय। वह तो शायद ही देश के सभी जिला स्तर के अस्पतालों में हों। हर प्रदेश के अस्पतालों से जो फीडबैक आ रहे हैं उन्हें देखते हुए तो स्थिति न केवल कठिन बल्कि  भयावह लग रही है। ऐसी परिस्थितियों में हांथ पर हांथ धरे, घरों में ही चुपचाप बैठ कर सोशल डिस्टेंसिंग का कर्तव्य शब्द और भावनाओं के अनुसार पालन करते हुए ही इस बीमारी से खुद को बचाया जा सकता है। पर हमारे डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ जो इस विषाणु युद्ध के योद्धा है, उन्हें तो यह सब उपकरण चाहिए ही।
देश के सबसे प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट दिल्ली के एम्स ( अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ) के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोशिएशन के जनरल सेक्रेटरी डॉ श्रीनिवासन ने प्रधानमंत्री को एक वीडियो अपील जारी कर के देश मे डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के लिये पीपीई की कमी की बात उठायी है। उन्होंने कहा है कि,
” भारत में कोरोना सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी है!  केंद्रीय सरकार को प्रकाश और मोमबत्ती के बजाय, आम लोगों के जीवन को बचाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले चिकित्सा उपकरण उपलब्ध कराए जांने चाहिए। लोगों को पता होना चाहिए कि आपके शरीर पर हमला करने के लिए वायरस का कोई धर्म नहीं  होता है। चिकित्सा उपकरण प्रदान करें और हमारे लोगों को बचाएं । “
डॉ श्रीनिवासन के इस बयान से स्पष्ट है कि मेडिकल संसाधनों की कमी से पूरा देश जूझ रहा है। इस आपदा से निपटने के लिये सरकार की तैयारी केवल आधी अधूरी है।
बिहार के मुख्यमंत्री ने 2 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि राज्य ने 100 वेंटिलेटर की मांग की थी मगर अभी तक नहीं मिला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि हम लोगों ने 5 लाख पीपीई किट की मांग की है। अभी तक 4000 ही मिला है। एक तो बिहार में डाक्टरों और हेल्थ वर्कर की संख्या बेहद कम है। ऊपर से उनकी सुरक्षा के लिए पीपीई की उपलब्धता का क्या यह हाल है कि दो महीने बीत जाने के बाद 4000 पीपीई किट ही केंद्र से मिले हैं। 12 करोड़ की आबादी वाले बिहार की आवश्यकता क्या सिर्फ 100 वेंटिलेटर की होगी? उल्लेखनीय है कि, बिहार ने केंद्र से 5 लाख पीपीई और 10 लाख एन 95 मास्क की मांग की है? मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि बिहार ने कोरोना के मरीज़ों के लिए कितने आई सी यू बेड बनाए हैं? 30 जनवरी को भारत में कोरोना का पहला केस आया था। 2 अप्रैल तक केंद्र बिहार को 4000 PPE किट दे सका है। यही नहीं बिहार ने दस लाख एन 95 मास्क की मांग की है। अभी तक 50,000 ही मिला है। अन्य राज्यों की भी हालत बिहार जैसी ही होगी। कोविड 19 के इलाज में वेंटिलेटर की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। न्यूयार्क के डाक्टर इम्तियाज़ पटेल ने कहा कि तीन से चार घंटे में हालत खराब हो जाती है। उसे वेंटिलेटर पर रखना होता है।
देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है। देश भर के सभी डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ इलाज़ में लगे हुए है। लेकिन कोरोना वायरस से बचाव में जुटी टीम के लिए एन 95 मास्क, पर्सनल प्रोटेक्टिव किट और सैनिटाइजर की किल्लत हो रही है। मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए किट और मास्क की और ज्यादा जरूरत है। इसी बीच कोरोना से लड़ने के लिए जरूरी मेडिकल उपकरण बनाने वालों ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इन लोगों का कहना है कि सरकार ने इस महामारी से लड़ने के लिए जरूरी मेडिकल उपकरण बनाने की अनुमति ही देर से दी जिसके चलते पांच हफ्ते का समय सरकारी औपचारिकताओं में ही बरबाद हो गया।
ऐसे समय में जब स्वास्थ्यकर्मी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई किट) की कमी के बारे में बार-बार चिंता जता रहे हैं, तो सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या भारत सरकार ने स्वास्थ्य संकट के इस विंन्दु को सही तरीके से देखा है? क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रिवेंटिव वियर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष संजीव ने बताया कि
” पीपीई की कमी की मुख्य वजह इसको लेकर सरकार द्वारा विलंब से की गयी प्रतिक्रिया है।”
पीपीई बनाने वाली कम्पनियों का कहना है कि उन्होंने फरवरी में स्वास्थ्य मंत्रालय से संपर्क किया था और सरकार से पीपीई किट का स्टॉक रखने का आग्रह किया था। लेकिन तब स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था कि इस मामले में उन्हें केंद्र से कोई निर्देश नहीं मिला है। संजीव ने कहा कि हमें 21 मार्च तक सरकार की तरफ से कोई मेल नहीं मिला। अगर सरकार ने 21 फरवरी तक मेल का जवाब या निर्देश दे दिया होता तो अबतक पीपीई किट की पर्याप्त व्यवस्था हो सकती थी । संजीव ने आगे कहा “लगभग 5 से 8 मार्च के बीच राज्य सरकारों, सेना के अस्पतालों, रेलवे अस्पतालों से टेंडर आना शुरू हुए।”
एक अखबार की खबर के अनुसार, कोरोना वायरस के इलाज में लगे स्टाफ के लिए एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा में प्रतिदिन, 50-60 पर्सनल प्रोटेक्टिव किट और 70-80 एन-95 मास्क की जरूरत है। ऐसे में अभी कॉलेज के पास लगभग 100 पीपीई किट और 70-80 एन-95 मास्क का ही स्टाक है। देश में कोरोना के कुल मामले बढ़कर अब तक 4068 हो गए है। जिनमें से 292 लोग इस बीमारी से उबर चुके हैं। 109 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। पूरी दुनिया मे यह आंकड़ा, 2,76,302 का है  जिसमें 2,64,048 ठीक हो चुके हैं और 69,527 लोग इस बीमारी के कारण मर चुके हैं। सबसे अधिक मृत्यु 15, 887 इटली में हुयी है और तब स्पेन में नम्बर है जहां 12,641 लोग कोरोना से ग्रस्त हो कर मर गए हैं। इसके बाद अमेरिका का स्थान है जहाँ मृत्यु संख्या अब तक 9,643 पहुंच गयी है।
देश भर में, उपकरणों और अन्य दवाइयों की जितनी ज़रूरत है उसकी तुलना में मांग और आपूर्ति के बीच बहुत अधिक अंतर है। देश भर के 410 जिला मैजिस्ट्रेट और प्रशासन में उच्च और महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त अफसरों ने कहा है कि देश के अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना आपदा से निपटने के लिये सक्षम नहीं हैं। यह कहना है इस आपदा के समन्वय का काम देख रहे वरिष्ठ अधिकारियों का। यह रिपोर्ट एक फीड बैक का अंश है जो सरकार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से मांगी है। सभी राज्यों के 410 जिलों में नियुक्त इन अधिकारियों ने नेशनल प्रिपेयर्डनेस सर्वे कोविड 19 योजना के अंतर्गत यह फीडबैक दिया है कि, : टेस्टिंग किट, एन 95 मास्क और प्रोटेक्टिव उपकरणों की भारी कमी है। ‘ यह सब उपकरण किसी भी अस्पताल और मेडिकल स्टाफ के सबसे ज़रुरी उपकरण होते हैं। इस फीडबैक के पहले ही देशभर के मुख्य अस्पतालों के चिकित्सक और मेडिकल स्टाफ  ऐसी शिकायतें कर चुका हैं। यह अलग बात है कि देश का मुख्य मीडिया ऐसी शिकायतों पर मौन है। उनकी प्राथमिकताएं अलग होती हैं।
इस फीडबैक के अनुसार, अरुणांचल प्रदेश में सबसे नज़दीकी टेस्टिंग केंद्र राज्य के सुदूर गांव से 379 किमी दूर डिब्रूगढ़ में है जहां सैम्पल लिया जा सकता है। नागालैंड में एक भी टेस्टिंग केंद्र नहीं है। झारखंड के कुछ अस्पतालों में वेंटिलेटर तक नही हैं। मध्य  प्रदेश के पन्ना जिले में एक भी निजी अस्पताल नहीं है और जिले भर में केवल एक ही वेंटिलेटर है। मध्यप्रदेश के ही, नीमच जिले में पीपीई किट और एन 95 मास्क की उपलब्धता बहुत कम है। यहां भी वेंटिलेटर का अभाव हैं और मेडिकल स्टाफ और आईसीयू ऐसे रोगियों के इलाज के लिये न तो समृद्ध है और न ही समर्थ है।
असम के दीमा हसाओ के सरकारी अस्पतालों में न तो आईसीयू है और न ही कोई वेंटिलेटर है और पूरे जिले में एक भी निजी नर्सिंग होम नहीं है। यही स्थिति करीमगंज और नलबाड़ी जिलो की भी है। लगभग ऐसी ही बुरी स्थिति, अरुणांचल प्रदेश के ईस्ट सियांग,  नामसाई, तवांग सहित हरियाणा के जझ्झर, भिवानी, हिमाचल प्रदेश के चंबा, महाराष्ट्र के कोल्हापुर, और जम्मूकश्मीर के कुलगाम सहित लगभग सभी  राज्यों की है। यह स्थिति लगभग पूरे देश की है।
बिहार की राजधानी पटना में भी पीपीई, मास्क, वेंटिलेटर, दवाओं, सर्जिकल ग्लब्स, ऑक्सिजन सिलेंडर, ऑक्सिजन रेगुलेटर और संक्रमण रोकने के उपकरणों की कमी है। यही स्थिति बिहार के अन्य जिलों  पूर्णिया, सहरसा और समस्तीपुर में भी है। छत्तीसगढ़ के बलरामपुर, गरियाबंद महासमुंद, जशपुर, सरगुजा और मुंगेली जिलों में मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं, प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ, और उपकरणों का अभाव है। इस आदिवासी राज्य में इस आपदा से निपटने के लिये जंगल की आबादी के बीच इस नए रोग कोविड 19 के बारे में वैज्ञानिक जानकारी का भी अभाव है। यही स्थिति महाराष्ट्र के पालघर जिले की भी है। वहां के अधिकारियों ने भी स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में निराशाजनक फीडबैक दिया है। वहां आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में भी बाधा पहुंच रही है। लक्षद्वीप के समक्ष भी यही समस्या है। देश की राजधानी दिल्ली के  पॉश इलाके साउथ दिल्ली में भी जितनी टेस्टिंग होंनी चाहिए उतनी नहीं हो पा रही है। यहां भी अस्पताल तो हैं पर वहां भी पीपीई उपकरणों की कमी है।
असल समस्या है अस्पतालों में पीपीई की कमी, टेस्टिंग कम होना और दवाइयों वेंटिलेटर आदि का अभाव। एम्स के एक रेजिडेंट डॉक्टर के हवाले से एक खबर छपी है कि ₹ 50 लाख रुपये की धनराशि जो अस्पताल के स्टाफ के लिये पीपीई उपकरणों की खरीद के लिये आयी थी वह संस्थान ने पीएम केयर फंड में स्थानांतरित कर दी। पीएम केयर फंड एक नया दानपात्र है जिसमे लोगों से यह अपील की जा रही है वे कोरोना आपदा के लिये दान दें। होना तो यह चाहिए था कि इस केयर फंड से ही एम्स को पीपीई के लिये धनराशि दी जाती, जब कि बजट में ही पीपीई खरीदने के लिये तय की गयी राशि सीधे वापस केयर फंड में चली गयी। अंग्रेजी दैनिक द हिन्दू ने इस पर विस्तार से लिखा है। एक अन्य खबर  के अनुसार, यह धनराशि  ₹ 50 लाख नहीं, बल्कि ₹ 9.02 करोड़  है।  एम्स को अगर 50 लाख ही मिल जाते तो कुछ न कुछ पीपीई उपकरण तो उपलब्ध हो ही जाते।
इस फीडबैक रिपोर्ट में प्रवासी कामगारों के बारे में भी इन अधिकारियों ने सरकार को वास्तविक स्थिति से अवगत कराया है। आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में विदेशों से लौटे नागरिकों की पहचान की समस्या को रेखांकित किया गया है। साथ ही तेलंगाना से आने वाले कामगारों के रोकने, टेस्ट करने और क्वारन्टीन करने के संबंध में आ रही समस्याओं की बात की गयी है। आन्ध्र के प्रकाशम जिले में बाहर से आने वाले प्रवासी कामगारों की बहुलता जनपद के लिये समस्या बनी हुयी है। गुजरात के बनासकांठा जिले में तो इतने अधिक प्रवासी आ रहे हैं कि वहां उनकी देखरेख करने तक की दिक्कत पड़ रही है। भावनगर में 15 दिनों में 2 लाख प्रवासी कामगार आ गए। इन सबके साथ साथ गुजरात के भी अस्पतालों में पीपीई और अन्य उपकरणों की भारी कमी है। हरियाणा के मेवात जिले में भी बाहर से बहुत प्रवासी आ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में तो प्रवासी समस्या को पैनिक मूवमेंट कहा है और वे भी उनकी व्यवस्था करने में असमर्थ हैं। महाराष्ट्र के परभणी जिले में पुणे और मुंबई से प्रवासी मज़दूरों का व्यापक पलायन हुआ है। गुजरात और असम ने झुग्गी झोपड़ी वाले प्रवासी कामगारों की समस्या को उजागर किया है।
उपरोक्त फीडबैक से दो महत्वपूर्ण बातें उभर कर सामने आ रही हैं। एक तो देश के स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर में गम्भीर खोट है औऱ वह इस आपदा को संभाल सकने में बिलकुल ही समर्थ नहीं है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या है कम्युनिटी ट्रांसमिशन को कैसे रोका जाय। लॉक डाउन के बाद प्रवासी कामगारों का जो व्यापक पलायन हुआ है उससे कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ गया है। अब इसे चेक करने का एक ही उपाय है कि सभी प्रवासी लोगों को जो बाहर से आ रहे हैं क्वारन्टीन में 14 दिन रख दिया जाय। लेकिन उनकी संख्या इतनी अधिक है कि सबको अलगथलग करना संभव ही नहीं है। फिर भी राज्य सरकारें जो भी कर सकती हैं कर रही हैं।
कोविड 19 के संदर्भ में, पूरी दुनिया से आ रही बुरी खबरों के बीच एक राहत भरी खबर केरल से है,। केरल ने 16 मार्च को लॉक डाउन करके कोरोना की चैन ब्रेक करने का जो लक्ष्य बनाया था , उसमे राज्य को बड़ी सफलता मिली है। केरल ने कोरोना को फिलहाल लगभग रोक दिया है। कोरोना आपदा के संबंध में, केरल को देश का सबसे संवेदनशील राज्य माना गया है। केरल में कुल 296 मामले आए जिनमे 207 विदेश से आए और 7 विदेशी थे। 14 लोग ठीक हो गए। 30 जनवरी को  पहला कोविड 19 का मामला आने के बाद से ही अस्पतालों मे आइसोलेशन वार्ड बनाने शुरू कर दिए। 30 मार्च को केरल में कुल 222 संक्रमण के मामले थे, जो 4 अप्रैल को 295 पर आ गये हैं। इससे प्रसार में कमी साफ दिख रही है।
केरल में सबसे ज्यादा टेस्ट किये गए , पूरे देश में किये औसत टेस्ट से 7 गुना अधिक  टेस्ट अकेले केरल में किये जा रहे हैं । डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई गई । वहां के लोग भी अधिक समझदार है जो ख़ुद भी सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रख रहे हैं। केंद्र द्वारा राहत पैकेज घोषित करने के पहले ही, केरल सरकार द्वारा 2000 करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज घोषित किया जा चुका था,  और सबके खाते में पांच पांच हज़ार रुपये भी उपलब्ध कराए गये हैं । पूरे केरल में हर पंचायत स्तर पर सामुदायिक रसाई के माध्यम से हर एक को खाना उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया गया और लोगों के बीच 17 चीजों वाली फ़ूड किट वितरित की गयी।
अब जरा कोविड 19 के संबंध में  देश भर से टेस्टिंग के आंकड़े देखिये.
● यूएस ने 10 लाख से अधिक, और यूरोपीय देशों ने 8 लाख तक के टेस्ट कर चुके हैं।
● भारत मे यह संख्या, पिछली रात तक केवल, 69,245 है।
● 130 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत मे केवल 69,245 लोगो का टेस्ट अनुपात कम है, इसे बढ़ना चाहिए।
● दुनियाभर में प्रति 10 लाख की आबादी में दक्षिण कोरिया 7622, इटली 7,122, जर्मनी 5,812, यूएस 2,732, यूके 1891, श्रीलंका 97, पाकिस्तान 67 और भारत केवल 29 टेस्ट कर पा रहा है। टेस्टिंग के बिना इस आपदा पर नियंत्रण मुश्किल है।
प्रतीकों का अपना एक अलग महत्व होता है पर वे होते तो प्रतीक ही हैं। वे वास्तविकता से अलग होते हैं। प्रतीक, वास्तविकता पर ही आधारित होते हैं। अगर हमारे अस्पताल स्वास्थ्य सेवाएं, लॉक डाउन प्रबंधन आदि पर्याप्त सुदृढ होते तो, मनोबल बढ़ाने वाले यह सारे प्रतीक अच्छे लगते। युद्ध मे नगाड़े और शंख की ध्वनि तभी शत्रु जो आतंकित करती है जब शत्रु की तुलना में हम अधिक साधन संपन्न हों, और इतना आत्मविश्वास हो कि हम विजयी होंगे। पांचजन्य की ध्वनि के साथ विजय के लिये गांडीव की टंकार भी ज़रूरी है। मनोबल बढ़ाने वाला दुंदुभिवादन अकेले विजय नहीं दिला सकता है, अतः कोरोना आपदा को शत्रु और खुद को हम एक युयुत्सु योद्धा मानकर देखें तो। सरकार की पहली प्राथमिकता और दायित्व स्वास्थ्य सेवाओं को स्वस्थ रखना है।
अंत मे आज सरकार को उसकी कमियां बताना जब कुछ मित्रों को असहज लग रहा है तो वाल्मीकि रामायण का यह श्लोक बरबस याद आ रहा है। यह मारीचि का रावण को दिया गया परामर्श है। सरकार को समय समय पर सचेत और सतर्क करते रहना न केवल मीडिया का ही दायित्व है बल्कि यह प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य भी है। अब यह श्लोक पढ़े।
सुलभा: पुरुषा: राजन्‌ सततं प्रियवादिन: ।
अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:।।
हे राजन, प्रिय बोलने वेल पुरुष तो सुलभता से मिल जाते हैं, परंतु अप्रिय एवम् हितकर बात कहने वाले लोग बड़े दुर्लभ होते हैं !
( विजय शंकर सिंह )
लेखक यूपी कैडर के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं।