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बच्चों में अवसाद और चिड़चिड़ापन लगातार बढ़ता जा रहा है और इसका मुख्य कारण स्कूली गतिविधियों का ठप्प होना है। विशेषकर 6 से 13 साल के आयु वर्ग के बच्चे समझ नहीं पा रहे है की इस आपदा से कैसे निकले। अमेरिका की चाइल्ड माइंड इंस्टिट्यूट और पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी जैसी कई संस्थाओं ने चेताया है की ऐसे हालातों पर काबू नहीं पाया गया तो बच्चे अनेक मानसिक और शारीरिक बीमारियों के शिकार हो जायेंगे जिनका इलाज डॉक्टरों के पास भी नहीं है।
अभिभावक भी इस स्थिति से बेहद चिंतित है। फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के एक अध्ध्य्यन में बताया गया है की अभिभावकों को इन स्थितियों को गंभीरता से लाना चाहिए। बच्चों का ध्यान बंटाएं और नियमित खेलकूद गतिविधियों पर ले जाएँ। आउटडोर गेम्स पर अधिक ध्यान दें। स्कूलों के बंद होने से बच्चे घरों में कैद होकर रह गए है। मोबाइल और टीवी ने बच्चों को अपनी जकड में ले लिया है। विशेषकर टीनएजर्स की सेहत पर इसका बड़ा असर पड़ा है। खेलने कूदने के दिन हवा हो गए है।
शारीरिक गतिविधिया ठप्प होने से बच्चों के विकास पर भी बुरा असर हुआ है। विश्व स्वास्थ संगठन के एक अध्ययन में पाया गया कि 85 प्रतिशत लड़कियां और 78 प्रतिशत लड़के रोजाना कम से कम एक घंटे की शारीरिक गतिविधि की वर्तमान सिफारिश को पूरा नहीं कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के शोधकतार्ओं ने इस सर्वेक्षण के परिणामों का विश्लेषण किया जिसमें 146 देशों के 11 से 17 वर्ष के 1.6 मिलियन किशोर-किशोरियां शामिल थे। आजकल की भागदौड़भरी और व्यस्त लाइफस्टाइल ने साफतौर पर इंगित किया गया है कि आधुनिक जीवन शैली, रहन सहन, खान पान और शारीरिक श्रम के प्रति घोर लापरवाही ने टीनएजर्स को अनेक व्याधियों ने जकड़ लिया है। यदि हम चेतावनियों के बावजूद नहीं सुधरे तो स्वस्थ जीवन जीना भूलना होगा।
इंडियन काउंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के आंकड़ों बताते हैं कि 54.4 फीसदी लोगों की शारीरिक गतिविधियां करने में रुचि नहीं है। इस सरकारी एजेंसी द्वारा की गई स्टडी के अनुसार लोग यात्रा और मनोरंजन से जुड़ी शारीरिक गतिविधियों के मुकाबले काम में ज्यादा समय बिताते हैं। आलसी जीवनशैली, कसरत न करना या प्रोफेशनल की देखरेख के बिना कसरत करने से युवाओं के जोड़ों के लिगामेंट में दिक्कतें होने लगती हैं। जमाने के बदलने के साथ मानव की आदतें भी बदलती रहती है। शारीरिक श्रम नहीं के बराबर होता है। पुराने जमाने में खान पान के साथ शरीर सौष्ठव का भी विशेष ध्यान रखा जाता था। शरीर कसरती और मेहनत बेशुमार होती थी। महिला और पुरुष दूरदराज के कुएं, तालाब, बावड़ी आदि पानी श्रोतों से मटकों या अन्य साधनों से पीने का पानी लाते थे। घर पर पत्थर की चक्की में आटा पीसने का रिवाज था। घर घर में गाय भैंस का काम भी बहुतायत से किया जाता था। पैदल या साईकिल का स्थान स्कूटर, मोटर साईकिल और चार पहियों के वाहनों ने ले लिया।
कबड्डी और कुश्ती जैसे खेल भी गली मोहल्लों में देखने को मिल जाते थे। कहने का तात्पर्य है भरपूर खाते पीते थे तो उसके मुकाबले मेहनत के कामों में भी पीछे नहीं रहते। समय के साथ हमारी दिनचर्या और खान पान की प्रणाली बदली जिसके फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली के अनुरूप हमने अपने को ढालना शुरू कर दिया। भागमभाग की हमारी लाइफ स्टाइल ने हमें मेहनत के कार्यों से दूर कर दिया।
व्यस्त जीवन शैली के कारण आजकल कमर दर्द एक मुख्य समस्या बनती जा रही है। ज्यादातर मामलों में कमर के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है। शोधकतार्ओं ने बताया हैं कि टहलना, कठिन व्यायाम, तथा अन्य शारीरिक गतिविधियों से कमर दर्द को कम किया जा सकता है। शोधकतार्ओं ने 160,000 से अधिक लोगों पर 36 तरह के अलग-अलग अध्ययन किए तथा प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया। विश्लेषण से यह नतीजा सामने आया है कि निरंतर व्यायाम करने से कमर के निचले हिस्से में होने वाले असहनीय दर्द को कम किया जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)