पूरा विश्व इस समय कोरोना वायरस तथा इसके बदलते हुए स्वरूप का मुकाबला करने में वैज्ञानिक स्तर पर जुटा हुआ है। आए दिन नए नए वैज्ञानिक शोध किये जा रहे हैं। और पिछले लगभग एक वर्ष के गहन शोध का ही परिणाम है कि भारत सहित कई देशों ने कोरोना प्रतिरोधक वैक्सीन विकसित करने के सफल परीक्षण कर इसका विश्वव्यापी प्रयोग करना भी शुरू कर दिया है।
दुनिया भर में डॉक्टर्स तथा स्वास्थ्य विभाग के तमाम कर्मी इन्हीं वैज्ञानिक उपायों का प्रयोग कर तथा अपनी जान को भी खतरे में डालकर कोरोना प्रभावित मरीजों को बचाने के लिए दिन रात संघर्षरत हैं।हजारों डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मियों की इसी दौरान संक्रमित होने की वजह से मौत भी हो चुकी है। परन्तु हमारे देश में जहां अभी भी अशिक्षित, धर्मांध, अंधविश्वासी तथा पाखण्ड का पोषण करने वाले लोगों की पर्याप्त संख्या है, वहां तमाम लोग ऐसे भी हैं जो इस अभूतपूर्व विश्वव्यापी महामारी व इसके दुष्प्रभावों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सोशल मीडिया की सक्रियता के इस दौर में कोरोना से मुकाबला करने के ऐसे ऐसे बेतुके अप्रमाणित व अवैज्ञानिक तरीके प्रचारित किये जा रहे हैं जिनका वास्तविकता से तो कोई लेना देना है ही नहीं साथ ही यदि ऐसे ही प्रचारित उपायों पर ही इंसान निर्भर रहने लगे तो संभवत: यही अशिक्षा, धर्मांधता, अंधविश्वास तथा पाखण्ड पूरी मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा भी बन सकते हैं। फेसबुक और वॉट्सऐप पर इस तरह के सन्देश व आॅडियो प्रसारित होते हैं जिसमें बताया जाता है कि कुरान शरीफ की अमुक दुआ पढ़िए और स्वयं को व अपने परिवार को कोरोना से महफूज रखिये।
तमाम लोगों ने इस आशय की कुरानी आयतों को लैमिनेशन कराकर अपने घरों के दरवाजों पर टांग रखा है ताकि उनकी आस्थाओं के अनुसार कोरोना वायरस उनके घरों में प्रवेश न कर सके। गत वर्ष मैंने एक गांव में रात दस बजे अचानक बेवक़्त कई मस्जिदों से एक साथ अजान की आवाजें आती सुनीं। पता चला कि मुसलमानों का एक वर्ग कोरोना भगाने की गरज से अजान दे रहा है। कोई तावीज बता रहा है तो कोई पीने के लिए पानी झाड़ फूंक कर दे रहा है। कोई किस्म किस्म की फल,सब्जी बता रहा है तो कोई काढ़ा पीकर सुरक्षित रहने का दावा कर रहा है।जबकि सारी दुनिया के पढ़े लिखे व वैज्ञानिक सोच रखने वालों ने शोध के उपरांत यह निष्कर्ष निकाले हैं कि मास्क लगाना व सामाजिक दूरी का पालन करना बेहद जरूरी है। स्वयं वैज्ञानिक,डॉक्टर्स, विश्व के शिक्षित राजनीतिज्ञ सभी इनका पालन भी कर रहे हैं। बल्कि तीव्रता से फैलने वाले वर्तमान दौर में तो वैज्ञानिक घरों में भी मास्क पहनने व फासला बनाकर रहने का प्रयास करने की सलाह दे रहे हैं।
परन्तु हमारे समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिनपर इस तरह के वैज्ञानिक शोध व सलाहों का कोई फर्क ही नहीं पड़ता। कभी यह वर्ग मास्क न लगाने के तरह तरह के तर्क देता है तो कभी दो गज की दूरी रखने जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह को भी धत्ता बताता है। कभी इस महामारी को विश्व स्तर पर दवा बेचने वाले नेटवर्क का रचा हुआ ड्रामा बताकर महामारी की गंभीरता व इसके दुष्परिणामों को कम करके आंकने जैसी गलती करता है।
इसी वर्ग के लोग कभी सामूहिक नमाज अदा करने की जिद पर अड़े रहते हैं तो कभी कुंभ मेले में लाखों की तादाद में गंगा स्नान करने को भी अपनी प्राचीन परंपरा व धार्मिक आस्था का विषय बता कर वैज्ञानिक आधार पर दिए गए सभी दिशा निदेर्शों की अवहेलना करते हैं। यही वर्ग है जो दवाओं पर नहीं बल्कि दुआओं पर ज्यादा विश्वास करता है। कभी गायत्री मन्त्र में कोरोना से बचाव की संभावना पर शोध की तैयारी की जाती है तो कभी गोमूत्र और गाय के गोबर में कोरोना का इलाज नजर आता है कोई हवन से तो कोई प्याज से कोई लहसुन से कोई योगा से इसका इलाज बताता है। कुछ लोगों ने तो गौमूत्र सेवन की पार्टियां तक आयोजित कीं।
हमारे एक केंद्रीय मंत्री तो ‘गो कोरोना गो ‘ का नारा लगा कर ही कोरोना भगाने चले थे। वैसे भी हमारे ‘विश्व गुरु ‘ भारत में गली गली घूमने वाले ”गुरु गण’ आए दिन तरह तरह के अप्रमाणित नुस्खे यू ट्यूब,वाटस एप,और फेसबुक आदि पर प्रसारित करते रहते हैं। कई नीम हकीमों ने तो इसी सोशल मीडिया यू ट्यूब आदि के माध्यम से अशिक्षित लोगों के बीच शोहरत पाकर अपना बड़ा जनाधार भी बना लिया है। कुछ लोग इन दिनों अपने वाट्सएप के ज्ञानार्जन के आधार पर बड़े दावे से यह बताते फिर रहे हैं कि यह कोरोना नहीं बल्कि 5 ॠ की टेस्टिंग का दुष्प्रभाव है।
बाबा रामदेव जैसे कुछ ऐसे तेज दिमाग लोग जो भारतीय समाज के सीधे व भोलेपन की नब्ज को पहचान चुके हैं वे तो बाकायदा एक समारोह में दो केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में कोरोना की दवा ढूंढ निकालने की घोषणा कर डालते हैं तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन से उनके दावों का खंडन आने से पहले ही करोड़ों रुपयों का वारा नियारा भी कर बैठते हैं। दरअसल आम लोगों की धार्मिक भावनाओं को भुनाने में महारत रखने वाले यही लोग जो दूसरों को गौमूत्र पीकर या गंगाजल से कोरोना से ठीक हो जाने अथवा अजान देकर व दुआ तावीज से कोरोना भगाने जैसी अवैज्ञानिक बातें करते हैं जब इन्हीं में से किसी पर खुदा न ख़्वास्ता कोरोना का कहर बरपा हुआ तो यकीन जानिए इन्हें भी उसी वैज्ञानिक उपलब्धियों की शरण में जाना पड़ता है और भविष्य में भी जाना पड़ेगा जिसे पूरा विश्व सर्वसम्मत रूप में मानता व स्वीकार करता है। लिहाजा इस महामारी काल में अपने उन मार्गदर्शकों, नेताओं व धर्मगुरुओं की बातें सुनें जो वैज्ञानिक सोच रखते हों न कि अपनी लोकप्रियता मात्र के लिए धर्म संस्कृति व परंपराओं के नाम पर अपने अनुयायियों को सुरक्षित उपाय बताने के बजाए मोत के मुंह में ढकेलने का काम करते हों।
गलत उदाहरण भी नहीं दिए जाने चाहिए। जैसे की चुनाव हो सकते हैं और कुंभ हो सकता है तो जुलूस क्यों नहीं निकल सकता या जुमा अथवा ईद की नमाज क्यों नहीं हो सकती। यह दलीलें सर्वथा गलत हैं। क्योंकि पूरी दुनिया भारत सरकार के हर उन कदमों की जबरदस्त आलोचना कर रही है जिनके चलते देश में कोरोना ने तेजी से पैर पसारे हैं।
(लेखक स्तंभकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
Sign in
Welcome! Log into your account
Forgot your password? Get help
Password recovery
Recover your password
A password will be e-mailed to you.