30 जनवरी को जब केरल में पहला कोविड 19 का केस मिला था, तब बहुतों को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि एक ऐसी आपदा ने दस्तक दे दिया है जो न सिर्फ लाइलाज है, बल्कि वह दुनिया के तमाम समीकरणों को बदल कर रख देने वाली है। यह वायरस जिसे कोरोना नॉवेल या कोविड 19 के नाम से जानते हैं, लाक्षणिक रूप से एक फ्लू और जुखाम ही है पर यह तेजी से श्वसन तत्र को संक्रमित कर देता है, जिससे मृत्यु हो जाती है। इसकी कोई तयशुदा दवा नहीं है, और न ही बचाव के लिये कोई टीका अभी तक विकसित हो पाया है। चिकित्सा वैज्ञानिक निरन्तर इस पर शोध कर रहे हैं और उम्मीद है कि जल्दी ही कोई न कोई वैक्सीन या कारगर औषधि वे ढूंढ लेंगे।
सरकार ने सम्भावित संक्रमण रोकने के लिये घरों में ही लोगो को अनिवार्य रूप से रखने, जिसे लॉक डाउन नाम दिया गया, की नीति अपनाई और, इसके साथ स्वच्छता की सलाह तथा हेल्थकेयर सुविधाएं बढ़ाने की ओर भी ध्यान दिया गया । केरल ने भी न केवल बाहर से आने वालों की सघन चेकिंग शुरू की बल्कि अस्पतालों को भी सन्नद्ध किया जिससे इलाज हो सके। केरल स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर के दृष्टिकोण से भारत मे प्रथम स्थान पर और शिक्षा तथा अन्य सामाजिक सुविधाओं के मामले में देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक व्यवस्थित है तो, उसे इसका लाभ भी मिला। देश मे पहला केस होते हुए भी केरल में मृत्यु दर सबसे कम बनी हुयी है।
इसके 52 दिन बाद, 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात आठ बजे, अपने संबोधन के सिर्फ चार घंटे बाद, यानी रात 12 बजे से पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी। लोगो को 8 नवम्बर, 2016 की रात 8 बजे की, उनकी घोषणा याद आ गयी जब उन्होंने नोटबंदी की घोषणा की थी और उसी के बाद देश की आर्थिक स्थिति में जो गिरावट आयी, वह अब कोरोना आपदा के कारण, और भी अधिक बिगड़ गयी है। 24 मार्च 2020 तक पूरे भारत में, कोरोना वायरस के कुल 564 केस पॉजिÞटिव पाए गए थे और मौतों की संख्या 10 बताई गई थी। आज अकेले महाराष्ट्र में 50 हजार का आंकड़ा पार कर गया है। आज की नवीनतम सूचना के अनुसार, पूरे देश मे,1,31,868 मामले सामने आए हैं और तक 6767 लोगो की मृत्यु हो गयी है। लॉकडाउन के प्रथम दिन से अब चौथे चरण में अब तक मृत्यु दर में 2 % की वृद्धि हुयी है।
कोरोना एक ऐसा संक्रामक रोग है जिससे निपटने में पूरी दुनिया की स्वास्थ्य सेवाएं जुटी हुयी हैं। चीन से निकल कर यूरोप और फिर अमेरिका तथा पूरी दुनिया मे अचानक फैल जाने वाले इस संक्रामक रोग ने दुनिया के विकसित देशों से लेकर पिछड़े देशों तक, सबको निगलने की कोशिश की है। दुनिया की सारी सीमाएं इस रोग ने तोड़ दीं है। स्पेन हो या इटली, अमरीका हो या ब्रिटेन, जापान हो या दक्षिण कोरिया, कनाडा हो या ब्राजील, हर देश में यह वायरस अपना कहर बरपाता चला जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व मे, इस घातक वायरस से कुल 47 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से तीन लाख से ज्यादा की मृत्यु हो चुकी हैं। इससे बचने के लिये निरोधात्मक उपायों के रूप में, कुछ देशों ने, टोटल लॉकडाउन तो, कुछ देशों ने, ‘आंशिक लॉकडाउन’ यानी अलग-अलग इलाकों और संक्रमण के खतरों के ज्यादा या कम होने की घटनाओं के आधार पर इसे लागू किया। पर ऐसा नहीं है कि किसी देश को संक्रमण रोकने में पूरी सफलता मिली हो। ताइवान, वियतनाम जैसे कुछ छोटे छोटे देश जरूर इस आपदा से उतने पीड़ित नहीं हैं पर इसका कारण उनका आकार में कम और स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतर होना है।
कोरोना को अगर एक युद्ध माना जाय, और जैसा इसे माना जा रहा है, तो यह जंग दो मोर्चे पर है। एक हेल्थकेयर और दूसरे आर्थिक मोर्चे पर। युद्ध मे आर्थिक गति नहीं थमती है बल्कि कुछ क्षेत्रों में वह बढ़ ही जाती है, जबकि कोरोना आपदा ने देश को, दोनों ही मोर्चो पर, संकट में डाल चुकी है। तालाबंदी या लॉकडाउन एक समय लेने का कार्यक्रम है और एक निरोधात्मक उपाय, न कि संक्रमण का कोई कारगर इलाज है। हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाएं विशेषकर सरकारी या पब्लिक हेल्थकेयर बहुत सुदृढ नहीं हैं। हम इस विषय पर टाटा इंस्टिट्यूट आॅफ सोशल साइंस के सीनियर रिसर्च फेलो संजीव कुमार के एक रिसर्च पेपर से कुछ आंकड़े जो गुजरात मॉडल के हेल्थकेयर को केंद्र में रख कर तैयार किये गये है, प्रस्तुत करते हैं। स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में गुजरात की चर्चा इस लिए भी जरूरी है कि, इसी राज्य के विकास के मॉडल पर 2014 के चुनाव में भाजपा को अपार सफलता मिली थी और यह मॉडल देश के विकास मॉडल के अग्रदूत के रूप में समझा जाता है। लेकिन विकास के इस मॉडल में जनता कहां है? जनता के लिये स्कूल, अस्पताल और उनकी बेरोजगारी दूर करने के उपाय क्या हैं ? विकास के इस मोहक मॉडल के पीछे का सच क्या है? यह जानना बहुत जरूरी है। सरकार की प्राथमिकता में, हेल्थकेयर कहीं है भी, जब इस सवाल का उत्तर ढूंढ़ा जाता है तो निराशा ही हांथ लगती है। स्वास्थ्य बीमा की कुछ लोकलुभावन नामो वाली योजनाओं को छोड़ दिया जाय तो अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और बड़े विशेषज्ञ अस्पतालों के लिये, धरातल पर सरकार ने पिछले सालों में कुछ किया भी नहीं है,, बस कुछ बीमा आधारित घोषणाओं को छोड़ कर। अहमदाबाद शहर में इस रोग के भयानक प्रसार पर एक याचिका अहमदाबाद हाईकोर्ट में दायर हुयी और उस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जो कहा, उसे भी एक उदाहरण के रूप में देखा जाना चाहिये। अदालत ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि, राज्य सरकार केवल ऊपर ऊपर से इस आपदा को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल जहां कोविड 19 के इलाज की बात की जा रही है, वहां की स्थिति एक काल कोठरी की तरह है, या उससे भी बदतर है। वेंटीलेटर्स की कमी के कारण बढ़ती हुयी मृत्यु दर पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि, क्या राज्य सरकार को यह बात पता है कि, अस्पताल में जो कोविड 19 के कारण मृत्यु हो रही हैं उनका एक बड़ा कारण वेंटीलेटर्स का अभाव है ? सरकार इस समस्या से निपटने के लिए क्या कर रही है ? अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देशित किया है कि वह नोटिफिकेशन जारी कर के यह आदेश दे कि, अहमदाबाद, और आसपास के सभी म्युनिसिपल, सिविल और कॉरपोरेट अस्पताल अपने 50 % बेड कोविड 19 के संक्रमितों के लिये सुरक्षित करें। टेस्टिंग प्रोटोकॉल पर राज्य सरकार द्वारा कम टेस्टिंग किये जाने के विंदु पर, अदालत ने कहा कि, कई मामलों में यह पता लगा है कि निजी लैब ने अनावश्यक रूप से कुछ अन्य टेस्ट किये हैं। राज्य सरकार इन निजी लैबोरेटरीज के लिये केवल एक गेट कीपर की भूमिका में है। सरकार को अपनी टेस्टिंग क्षमता को बढ़ाना चाहिए और टेस्ट, मुफ्त किये जाने चाहिए। जब तक सरकारी टेस्टिंग क्षमता उपलब्ध है तब तक निजी लैब्स द्वारा टेस्ट कराने के लिये मरीजों को बाध्य नहीं करना चाहिए। जब सरकारी लैब्स टेस्टिंग करने में अपनी क्षमता समाप्त कर लें, तभी निजी लैब्स की सहायता लेनी चाहिए। गुजरात राज्य में, 19 सरकारी लैबोरेटरी हैं, जो कोविड मरीजों के लिये आरटी – पीसीआर टेस्ट करते हैं। अब तक 1,78,068 टेस्टिंग सैम्पल लिए गए हैं। अदालत ने कहा, अगर यह भय है कि सबके टेस्ट किये जायेंगे तो 70 % लोग पॉजिटिव निकल आएंगे तो, केवल इस आशंका से भयग्रस्त होकर कम टेस्ट नही किये जाने चाहिए। राज्य सरकार सभी टेस्टिंग केंद्रों से निरंतर संपर्क में रहे, और जो भी संक्रमित मरीज पॉजिटिव पाए जांय, जहां तक सम्भव हो उन्हें उनके घरों में ही आइसोलेशन में रख दिया जाय, या क्वारन्टीन की सुविधा में रखा जाय। जब लक्षण हों तो उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाय। यह भी बताया गया है कि टेस्टिंग किट की कमी नहीं है, पर उनका उपयोग बिना राज्य सरकार के अनुमोदन के नहीं किया जा सकता है। अहमदाबाद से अधिक चिंताजनक स्थिति मुंबई की है, पर याचिका अहमदाबाद में सुनी जा रही है तो इसका उल्लेख किया जा रहा है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं कि, अन्य शहरों या राज्यों में स्थिति बिल्कुल दुरुस्त है। बल्कि हर जगह स्थिति कमोबेश एक ही जैसी है।
गुजरात एक आदर्श विकसित राज्य माना जाता है तो उसका उल्लेख मैं कर रहा हूं। पूरे देश मे पब्लिक हेल्थकेयर प्राथमिकता में बहुत नीचे है, और इसका कारण निजीकरण के दौर में हमने पब्लिक हेल्थकेयर को अपनी प्राथमिकता में कभी रखा ही नहीं है। देश मे हेल्थकेयर एक उपेक्षित क्षेत्र है और किसी भी सरकार ने पब्लिक हेल्थकेयर जिसे हम सरकारी अस्पताल की सुविधा कहते हैं, की तरफ उतना ध्यान नहीं दिया जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था।
(लेखक यूपी कैडर के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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