COP29 UN Climate Summit, (आज समाज), बाकू: विकसित देश जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में विकासशील देशों को सालाना रिकॉर्ड 300 बिलियन डॉलर देंगे। अजरबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप-29 में वार्ता के दौरान यह समझौता हुआ है।
हालांकि बताया जा रहा है कि वार्ता 33 घंटे देरी से चली और लगभग यह विफल हो गई है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु निकाय के प्रमुख साइमन स्टील ने बताया कि यह एक कठिन यात्रा रही है, लेकिन हमने एक समझौता किया है। उन्होंने बताया कि विकासशील देशों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील देश शनिवार दोपहर को नाटकीय ढंग से वार्ता से बाहर निकल गए।
2035 तक हर साल दिए जाएंगे 300 अरब डॉलर
संयुक्त राष्ट्र जलवायु निकाय के प्रमुख ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए अमीर यानी विकसित देश विकासशील देशों को 2035 तक हर साल कम से कम 300 अरब डॉलर देंगे। यह प्रस्ताव उन देशों के दो समूहों के शनिवार को वार्ता के दौरान कक्ष से बाहर जाने के कुछ घंटे बाद दिया गया, जो क्लाइमेट चेंज से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
रविवार को स्थानीय समयानुसार तीन बजे समझौते में कुछ बदलावों के बाद, राष्ट्रों ने आखिरकार विकासशील देशों को 300 अरब डॉलर देने के समझौते को पारित कर दिया। इस पर जयकारे और तालियां बजीं, लेकिन भारत के उग्र भाषण से पता चला कि अभी भी गहरी निराशा बनी हुई है।
द्वीप डूबने की बात अतिशयोक्ति नहीं
साइमन स्टील ने बताया, हालांकि वार्ता पिछले साल पारित किए गए समझौते पर आगे नहीं बढ़ पाई, जिसमें देशों से ‘जीवाश्म ईंधन से दूर जाने’ का आह्वान किया गया था। छोटे द्वीप देशों के गठबंधन के अध्यक्ष, सेड्रिक शूस्टर ने कहा, जब मैं कहता हूं कि हमारे द्वीप डूब रहे हैं, तो मैं अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूं। आप हमसे यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि हम अपने देशों की महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के पास एक खराब समझौते के साथ वापस जाएंगे।
भारतीय प्रतिनिधि चांदनी रैना समझौते पर नाखुश
भारतीय प्रतिनिधि चांदनी रैना ने कॉप29सम्मेलन में हुए समझौते पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने कहा, इसमें अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए, विकसित देशों की अनिच्छा दिखती है। भारतीय प्रतिनिधि ने कहा, मुझे यह कहते खेद है कि ये दस्तावेज केवल दृष्टि भ्रम हैं। इसके अलावा ये कुछ नहीं है। उन्होंने कहा, जिस तरह की हमारे समक्ष चुनौतियां हैं, सम्मेलन में हुए समझौते से इनका हल निकलना नामुमकिन है। इस कारण हम इस दस्तावेज को पारित किए जाने के खिलाफ हैं।
इन देशों ने भी किया विरोध
स्विट्जरलैंड, मालदीव, कनाडा और आस्ट्रेलिया सहित अन्य राष्ट्रों ने भी समझौते का विरोध किया और राशि (300 अरब डॉलर) को छोटा बताया। उन्होंने इस निर्णय को 2025 में अगली जलवायु वार्ता तक के लिए स्थगित कर दिया गया। अधिक धन का वादा इस बात की मान्यता है कि गरीब राष्ट्र जलवायु परिवर्तन से असंगत बोझ उठाते हैं, लेकिन ऐतिहासिक रूप से जलवायु संकट में उनका योगदान सबसे कम रहा है।
असमानता को लेकर नाराज थे देश
कम विकसित देशों और छोटे द्वीप देशों के गठबंधन के प्रतिनिधियों ने यह भी कहा, उन्हें इस मसौदे पर परामर्श में शामिल नहीं किया गया और वे इस असमानता को लेकर नाराज थे। इसकी वजह यह क्योंकि उन्हें जलवायु संकट से सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है, जबकि उनकी मांगों की अनदेखी की जा रही है। मामले में विकासशील देशों का का कहना है कि उन्हें अगले साल यानि 2025 से हर साल कम से कम 1.3 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत है, जो 2009 में वादा किए गए 100 बिलियन डॉलर से कहीं ज्यादा अधिक है।
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