देशव्यापी लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है। तमाम सेक्टर मंदी की मार झेल रहे हैं। कंस्ट्रक्शन सेक्टर भी इससे अछूता नही है। यह सेक्टर हमेशा से उपेक्षित रहा है। चुनावी चंदे को छोड़कर राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं ने इस सेक्टर पर कभी खासा ध्यान नहीं दिया।
हालिया आंकड़े बताते हैं कि यह सेक्टर वित्त वर्ष 2019-20 की आखिरी तिमाही में 2.2 प्रतिशत की दर से घटा है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज से भी इसे कोई खासी सहायता नही मिली। हालांकि कुछ देने की या कहें देने से ज्यादा दिखाने कि कोशिश जरूर की गई। भारत में कंस्ट्रक्शन सेक्टर लगभग 5.1 करोड़ लोगों को रोजगार देता है, और देश की जीडीपी में इस क्षेत्र का लगभग 9 प्रतिशत योगदान है। इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 4.5 करोड़ से अधिक नौकरियों का सृजन करता है। एक समस्या यह भी है कि भारत में, कुल परियोजना-लागत पर सेवा-लागत का प्रतिशत 12-15% जितना कम है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 40% से अधिक है।
प्रवासी मजदूर और कामगार श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर निर्भर है। ऐसे हालातों में जब मजदूर अपने गृह क्षेत्रों की ओर वापस जा रहे हैं, तब समस्या दो तरफा है। मजदूरों के सामने जीवनी की समस्या और व्यापारों के सामने अपने अस्तित्व को जीवित रखने की समस्या। मई की शुरूआत में जब देशव्यापी लॉकडाउन प्रभावी रूप से लगा हुआ था, केपीएमजी ने एक दस्तावेज निकाला जिसमें कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर कोविड-19 के प्रभाव का विश्लेषण किया गया। दस्तावेज में कहा गया कि भारत में कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर कोविड-19 के कारण प्रति दिन 30,000 करोड़ रुपये का घाटा होने का अनुमान है, महामारी के कारण निर्माण से संबंधित परियोजनाओं में निवेश भी 13 से 30 प्रतिशत तक कम होने की संभावना है, जो सकल मूल्य वर्धित(जीवीए) और रोजगार को प्रभावित कर सकता है।
साथ ही कंस्ट्रक्शन-संबंधी जीवीए और रोजगार क्रमश: 15 से 34 प्रतिशत और 11 से 25 प्रतिशत के बीच घटने की उम्मीद जताई गई। विश्लेषण में उल्लेख किया गया कि कुशल श्रमिकों के लिए श्रम लागत में 20-25 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए यह 10-15 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान लगाया गया।
एक और विश्लेषण हाल ही में किया गया, यह विश्लेषण जून के पहले सप्ताह में रेटिंग एजेंसी क्रिसिल द्वारा किया गया, जिसमें कहा गया कि भारतीय कंस्ट्रक्शन उद्योग में निवेश इस वित्त वर्ष के दौरान 12-16 प्रतिशत घटकर 8.6 लाख करोड़ के मुकाबले लगभग 7.3 लाख करोड़ रुपये होने की संभावना है, क्योंकि महामारी ने अर्थव्यवस्था और तरलता परिदृश्य को बुरी तरह प्रभावित किया है। क्रिसिल ने दस्तावेज में कहा कि लॉकडाउन के कारण, ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उलट पलायन हुआ है, जबकि कई शहरों में कामगार राहत शिविरों और श्रमिक कॉलोनियों में फंसे हैं। कॉन्ट्रैक्टर्स या डेवलपर्स को श्रीमिकों को आराम क्षेत्र से आगे बढ़ने और परियोजना स्थानों पर काम पर लौटने के लिए अब गांवों में (सरकार द्वारा सूचना के अनुरूप) उनके लिए एक प्रोत्साहन योजना बनानी होगी।
क्रिसिल के मुताबिक स्वास्थ्य, लोक कल्याण और सामाजिक दायित्वों के लिए धन की आवश्यकता के कारण केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा कंस्ट्रक्शन सेक्टर के निवेश में गिरावट की उम्मीद है। क्रिसिल ने बताया कि यह ऐसे समय पर हो रहा है जब पहले से ही इंफ्रास्ट्रक्चर पर वित्तीय वर्ष 2019-20 के संशोधित अनुमान के मुकाबले वित्तीय वर्ष 2020-21 के केंद्र द्वारा बजटीय आवंटन में 7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। जबकि सकल बजटीय समर्थन वित्त वर्ष 2021 में पिछले वित्त वर्ष के 35 प्रतिशत के मुकाबले कुल बजटीय आवंटन का 41 प्रतिशत है। क्रिसिल ने कहा कि निजी व्यय का हिस्सा वित्त वर्ष 2010 के 26 प्रतिशत से गिरकर वित्त वर्ष 2020 में 17 प्रतिशत हो गया है, क्योंकि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल हवाई अड्डों और सड़कों को छोड़कर अधिकांश इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों में विफल रहे हैं। शायद इसकी वजह यही है कि इस मॉडल में अधिकांश जोखिम निजी संस्थाओं को सहन पड़ता हैं। समस्या यहां खत्म नहीं होती क्रिसिल के अनुसार, निर्माण गतिविधियों को स्थगित करने की वजह से, इस क्षेत्र के खिलाड़ियों को वित्तीय 2021 के राजस्व में 13-17 प्रतिशत की गिरावट दर्ज करने की उम्मीद है। इससे भी बुरा यह है कि उनके ईबीआईटीडीए मार्जिन का अनुमान 4-6 प्रतिशत है, जो पिछले वित्त वर्ष में 7-9 प्रतिशत था। समस्याएं पहले से थीं श्रमिकों के पलायन ने उसे और बढ़ा दिया, अतिरिक्त सहायता भी नहीं मिली। ऐसे में कंस्ट्रक्शन सेक्टर को रोजगार का हब बनाना और 2022 तक इसमें 1.6 करोड़ नौकरियां जोड़ने का महत्वकांक्षी लक्ष्य अभी काफी दूर लगता है। ऐसी स्थिति में निर्माण गतिविधियां पूर्णत: तीसरी तिमाही से पहले शुरू होने की संभावना नहीं है।
अक्षत मित्तल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)