भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370हटाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। हालांकि भाजपा का यह दावा है कि कश्मीर को भारत में विलय का जो काम रह गया था वह पीएम मोदी और अमित शाह ने पूरा किया है। गौरतलब है कि भाजपा का कहना है कि सरदार पटेल और पंडित नेहरू कश्मीर मुद्दे पर एकमत नहीं थे। हालांकि इन दोनों ने मिलकर 552 रियासतों का विलय भारत कराया था। इतिहासकारों की बात करें तो वह भाजपा के इस दावे से सहमत नहीं हैं। बता दें कि केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में आर्टिकल 370 पर पंडित नेहरू पर हमला बोला था। उन्होंने संसद में कहा कि अगर नेहरू ने तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को जम्मू कश्मीर के मुद्दे से निपटने की स्वतंत्रता दे दी होती और हस्तक्षेप नहीं किया होता तो ना 370 का बखेड़ा होता और ना पीओके होता। जम्मू से बीजेपी सांसद जुगल किशोर शर्मा ने कहा था कि नेहरू ने शेख अब्दुल्ला की वजह से आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35 ए लागू किया। सिंह ने कहा कि पटेल के अलावा बीआर अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी इसका विरोध कर रहे थे।
वहीं अशोका यूनिवर्सिटी हरियाणा के प्रोफेसर श्रीनाथ राघवन का मानना है कि इस बात के सबूत हैं कि पटेल ने आर्टिकल 370 का पूरी तरह समर्थन किया। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में राघवन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 सरदार पटेल का विचार था और इस मुद्दे पर उनके विचारों को दूसरों के मुकाबले ज्यादा अहमियत मिली। राघवन ने कहा, यह कहना मूर्खता है कि सिर्फ नेहरू ने इसे लागू किया क्योंकि यह सरकार का अकेला नीतिगत फैसला नहीं था। इसे संविधान सभा ने पास किया था। राघवन के मुताबिक, आर्टिकल का ड्राफ्ट तैयार करने को लेकर पहली बैठक 15 और 16 मई 1949 को पटेल के घर पर हुई, जिसमें नेहरू भी मौजूद थे। राघवन ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के पीएम शेख अब्दुल्ला से बातचीत करने वाले मंत्री एनजी आयंगर ने नेहरू की ओर से अब्दुल्ला को भेजे जाने वाले लेटर का ड्राफ्ट तैयार किया तो उन्होंने इसे पटेल के पास एक नोट के साथ भेजा था।
आयंगर ने पटेल को लिखा था, क्या आप जवाहरलालजी को सीधे बताएंगे कि इस पर आपकी रजामंदी है? वह यह चिट्ठी पर आपकी सहमति के बाद ही इसे शेख अब्दुल्ला को भेजेंगे। वहीं, जब नेहरू विदेश में थे, पटेल ने आयंगर से कहा था कि वह अब्दुल्ला से बातचीत जारी रखें। अब्दुल्ला ने कहा था कि कश्मीर में मूलभूत अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों के लिए भारतीय संविधान को स्वीकार करने का फैसला संविधान सभा पर छोड़ देना चाहिए। पटेल कश्मीर पर अब्दुल्ला की राय से सहमत नहीं थे, इसके बावजूद नेहरू के वापस लौटने पर उन्होंने प्रथम प्रधानमंत्री से कहा था कि वह कांग्रेस को इस रुख पर सहमत करने में कामयाब हुए हैं।