भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी इन दिनों निश्चित रूप से संकट के दौर से गुजर रही है। पार्टी को इस समय जहां भारतीय जनता पार्टी जैसे मजबूत संगठन व सत्ता के सामने जोरदार विपक्ष की भूमिका अदा करने की चुनौती है वहीं पार्टी के भीतर से ही कुछ वरिष्ठ नेता पार्टी नेतृत्व व कामकाज को लेकर सवाल उठा रहे हैं। चार दशकों से भी अधिक समय तक पूरे देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के नेतागण दरअसल अपने जीवन का अधिकांश समय सत्ता में गुजार चुके हैं इसलिए उन्हें न तो लंबे समय तक विपक्ष में रहने की आदत है न ही विपक्ष की राजनीति करने का अधिक अनुभव।
इसलिए वर्तमान ‘संकटकालीन’ समय में यदि किसी नेता का राज्य सभा का कार्यकाल समाप्त हो जाए तो स्वाभाविक रूप से वह पुन: कम से कम राज्य सभा की सदस्यता का ख़्वाहिशमंद तो होगा ही। और यदि राज्य सभा की सदस्यता के उसके सपने भी बिखरने लगें फिर ‘इधर उधर झाँकना’ या नेतृत्व अथवा नेतृत्व की कार्य क्षमता व कार्य शैली पर सवाल उठाना भी स्वभाविक है।
नेहरू-गांधी परिवार पर सीधे तौर पर उंगली उठाने का साहस पार्टी के भीतर तो प्राय: कम ही नेताओं द्वारा किया जाता रहा है जबकि कांग्रेस विरोधी दलों के लोग कांग्रेस में परिवारवाद की बात कहकर नेहरू-गांधी परिवार पर ऊँगली उठाने का शगल हमेशा ही अंजाम देते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के भीतर नेहरू-गांधी परिवार की लगभग सर्व स्वीकार्यता तथा विरोधियों द्वारा नेहरू-गांधी परिवार के विरुद्ध चलायी जाने वाली झूठी-सच्ची मुहिम,इन दोनों के ही अलग अलग कारण हैं। कांग्रेस का प्रत्येक नेता व कार्यकर्ता इस बात से बखूबी वाकिफ है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक यदि किसी परिवार के लोगों को व उनके नेतृत्व को लोकप्रियता के आधार पर स्वीकार किया जाता रहा है तो वह केवल नेहरू-गांधी परिवार ही है।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि कांग्रेस आज तक कई बार विभाजित हुई, पार्टी के कई दिग्गज नेता संकट के समय पार्टी छोड़ कर इधर उधर गए,यहां तक कि कई नेताओं ने ‘अपनी अपनी कांग्रेस’ भी बना डाली परन्तु उसके बावजूद कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व नेहरू-गांधी परिवार में ही रहा। शरद पवार जैसे जमीनी दिग्गज नेता ने पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी जरूर बनाई परन्तु वह भी अपनी पार्टी को क्षेत्रीय पार्टी तक ही सीमित रख सके।
इसीलिए कांग्रेस के अधिकांश बड़े छोटे नेताओं से लेकर पार्टी कार्यकतार्ओं तक शिद्दत से यह महसूस करते हैं कि कांग्रेस को नेतृत्व प्रदान करने तथा पार्टी को एकजुट रखने से लेकर जनता के मध्य लोकप्रियता व स्वीकार्यता तक के लिए केवल नेहरू-गांधी परिवार ही सबसे योग्य एवं उपयुक्त घराना है। अपनी उपरोक्त बातों के समर्थन में यहां एक घटना का उल्लेख करना चाहूंगा। केंद्र सरकार में इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री रहे स्वर्गीय ए बी ए गनी खान चौधरी एक बार सऊदी अरब के दौरे पर गए थे। वहां से वापसी में वे इराक स्थित करबला भी गए। करबला में उन्होंने हजरत इमाम हुसैन के रौजे पर दोनों हाथ उठाकर जोर जोर से यह दुआ मांगी कि ‘ए मौला हिंदुस्तान में मोहतरमा इंदिरा गांधी को हमेशा इक़्तेदार (पावर) में रखना ‘।
उनके साथ खड़े उनके एक सहयोगी ने बाद में उनसे पूछा कि आपने इमाम हुसैन के रौजे पर अपने लिए कोई दुआ नहीं मांगी सिर्फ इंदिरा गांधी के इक़्तेदार के लिए ही दुआ की ? इस पर चौधरी साहब ने जवाब दिया कि जब तक इंदिरा जी सत्ता में हैं हम लोग भी सत्ता में हैं वरना हम लोगों का अकेले वजूद ही क्या है ? आज कांग्रेस चाहे जितनी कमजोर स्थिति में क्यों न हो परन्तु आज भी जितनी भीड़ देश के किसी भी कोने में सोनिया-राहुल-व प्रियंका गाँधी को देखने व सुनने को उमड़ती है उतना आकर्षण किसी अन्य नेता का नहीं है।
लोकप्रियता की यही स्थिति पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गाँधी व राजीव गांधी की भी थी। नेहरू-गांधी परिवार की इस लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यही था कि वे पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधकर चलने की कोशिश करते थे तथा भारतीय संविधान के अनुरूप देश को विश्व के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में स्थापित करना चाहते थे। नेहरू-गांधी परिवार की यही धर्मनिरपेक्ष सोच व उनकी राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता कांग्रेस विरोधियों विशेषकर संघ परिवार व भारतीय जनता पार्टी को हमेशा खटकती रहती है। इसीलिये कभी इस परिवार पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगा कर यहाँ तक कि कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी प्रचारित कर तो कभी देश में परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा देने वाला दल बताकर, कभी भगवान राम विरोधी कहकर तो कभी पंडित नेहरू के चरित्र व उनके खानदान के बारे में भ्रमित करने वाला झूठा प्रोपेगंडा कर इस परिवार को हमेशा बदनाम करने की एक सुनियोजित मुहिम चलाई गयी। कभी नेहरू को नेताजी सुभाष चंद्र का विरोधी प्रचारित किया गया तो कभी सरदार पटेल का विरोधी दुष्प्रचारित किया गया। अभी एक भाजपाई नेता ने तो यह तक कह दिया कि चंद्र शेखर आजाद को भी पंडित नेहरू ने ही मरवाया था।
दूसरी ओर खांटी हिंदुत्व की राजनीति कर तथा अयोध्या जैसे विषयों भावनात्मक मुद्दे उठाकर कॉंग्रेस के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी माहौल बनाया गया। यह सब इसी मकसद से किया गया ताकि नेहरू-गांधी परिवार के संरक्षण से कांग्रेस को अलग कर भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत ‘ के सपनों को साकार किया जा सके। उधर गत कुछ वर्षों से तो नेताओं की खरीद फरोख़्त का एक ऐसा दौर शुरू हो चुका है जिससे यह पता ही नहीं चलता कि किसी भी राज्य की निर्वाचित सरकार चलेगी या गिरेगी। सिद्धांत विहीन नेता केवल पैसों या सत्ता की लालच में धर्मनिरपेक्ष राजनीति करते करते अचानक हिंदुत्ववादी राजनीति का चेहरा बन जाते हैं। अपराधी व भ्रष्ट नेता दल बदल कर गोया ‘गंगा स्नान’ कर लेते हैं। इस अति प्रदूषित व सिद्धांतविहीन राजनीति के दौर में भी एक ओर तो राहुल व प्रियंका गांधी अपनी पूरी क्षमता से सत्ता पर जबरदस्त प्रहार कर रहे हैं तो दूसरी ओर पार्टी के ही कुछ नेता सत्ता हासिल करने की जल्दबाजी में कुछ ऐसे काम कर रहे हैं जो पार्टी को और भी कमजोर करने वाले हैं।
(लेखक स्तंभकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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