चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस को गहन आत्ममंथन करने की जरूरत
Chandigarh News (आज समाज) चंडीगढ़: आज आए हरियाणा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस के नेतृत्व पर एक बार फि सवाल खड़े कर दिए है। 10 में से 9 नगर निगमों पर भाजपा उम्मीदवारों से जीत दर्ज की। गत विधानसभा चुनाव में 37 सीट जीतने वाली कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। पूर्व सीएम हुड्डा व सैलजा अपना गढ़ भी नहीं बचा पाए दोनों जगहों पर भाजपा उम्मीदवारों ने कमल खिला दिया। निकाय चुनाव में मिली इस बार के बाद अब कांग्रेस को गहन आत्ममंथन की जरूरत है।
वहीं जीत से उत्साहित भाजपा ने विस चुनाव में खोया हुआ जनाधार वापस हासिल कर लिया है। भाजपा की इस जीत में भी ओबीसी व एससी वोटर्स का बड़ा योगदान है। एससी वोटर्स को भाजपा फिर से अपने पाले में लाने में कामयाब रही है। भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान ओबीसी और एससी वर्ग को विशेष रूप से टारगेट किया। इस रणनीति ने भाजपा को बढ़त दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
भाजपा की ओर से खुद सीएम नायब सैनी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली। उन्होंने प्रत्येक सीट पर जाकर भाजपा उम्मीदवारों के लिए वोट मांगे। वहीं केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल, कृष्णपाल गुर्जर, राव इंद्रजीत सहित प्रदेश सरकार के मंत्री, विधायक व स्थानीय नेताओं ने मोर्चा संभाले रखा। कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण प्रदेश के बड़े नेताओं का चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखना, आपसी गुटबाजी आदि कारण रहे।
जनता ने सत्ता पक्ष को दी प्राथमिकता
कांग्रेस का कमजोर चुनाव अभियान और स्थानीय नेताओं की निष्क्रियता भी हार का बड़ा कारण बनी। भाजपा के मजबूत प्रचार अभियान के मुकाबले कांग्रेस का संगठन कमजोर नजर आया। इस चुनाव में जनता ने सत्ता पक्ष यानी भाजपा को ही प्राथमिकता दी।
एक बड़ा कारण यह भी रहा कि अगर कांग्रेस का मेयर जीत भी जाता, तो उसे सरकार से विकास कार्यों के लिए समर्थन नहीं मिलता। जनता ने यह समझा कि केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार है, ऐसे में नगर निगम भी भाजपा का होगा, तो विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी। इसी वजह से भाजपा को भारी समर्थन मिला।
भाजपा की जीत के प्रमुख कारण
- प्रदेश में लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार बनी है। उससे पहले केंद्र में भी भाजपा की अगुआई वाली एनडीए सरकार बनी। ऐसे में भाजपा ने चुनाव प्रचार में इसको खूब भुनाया। भाजपा के नेताओं से लेकर मंत्रियों और मुख्यमंत्री नायब सैनी ने ट्रिपल इंजन का नारा दिया। प्रचार में लोगों को समझाया कि केंद्र और प्रदेश में भाजपा है। ऐसे में अगर शहर में भी भाजपा ही जीतेगी तो तालमेल आसान होगा। इससे विकास भी तेजी से होगा।
- प्रदेश में बूथ तक 5 लेवल का मैनेजमेंट किया
भाजपा ने निकाय चुनाव को भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह लड़ा। निकाय चुनाव के लिए भी बूथ लेवल पर 5 लेवल का मैनेजमेंट किया। मेयर और पार्षद चुनाव के लिए अलग टीम बनाई हुई थी। - भाजपा ने प्रचार के लिए सभी बड़े चेहरे फील्ड में उतारे। इनमें पार्टी प्रदेश अध्यक्ष मोहन बड़ौली के अलावा सभी सीनियर नेता हर चुनाव क्षेत्र में पहुंचे। सरकार भी प्रचार में उतरी। सभी विधायकों और मंत्रियों के साथ उट नायब सैनी ने भी प्रचार किया। लोकल नेताओं ने प्रचार के लिए संगठन और सरकार से जिस चेहरे की मांग की, उसे वहां भेजा गया।
- भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बगावत करने वालों को वापस नहीं लिया। सीएम नायब सैनी और पार्टी अध्यक्ष मोहन बड़ौली से लेकर मंत्रियों ने भी खुलकर इस पर बयान दिए। हिसार में भाजपा ने पूरी तैयारी के बावजूद पूर्व मेयर गौतम सरदाना और वरिष्ठ नेता तरुण जैन को पार्टी में नहीं लिया। अगर बागी पार्टी में वापस आते तो दूसरे नेता नाराज हो सकते थे। पार्टी के इस कड़े रवैये को देखते हुए न पार्टी में किसी ने बगावत की हिम्मत की और न ही बागियों के आने से कोई मनमुटाव हुआ।
कांग्रेस की हार की वजह
- कांग्रेस को निकाय चुनाव में भी संगठन की कमी खली। प्रदेश में 11 साल से पार्टी का संगठन नहीं है। बिना संगठन ग्राउंड पर वर्कर एकजुट नहीं है।
- प्रदेश में 5 फरवरी को निकाय चुनाव की घोषणा हुई। ऐसे वक्त में पार्टी को सीनियर नेताओं को एकजुट करने, हाईकमान से तालमेल के लिए प्रभारी की जरूरत थी। मगर हाईकमान ने 14 फरवरी को प्रभारी दीपक बाबरिया को हटा दिया। ऐसे में पहले ही गुटबाजी में फंसी पार्टी और बिखर गई।
- न ग्राउंड पर वर्करों को कोई हाईकमान का मैसेज देने वाला था, न प्रचार की रणनीति बनाने वाला और न ही नेताओं को एक साथ लाने के लिए तालमेल वाला बचा। कांग्रेस ने बीके हरिप्रसाद को नया प्रभारी लगाया, लेकिन वे निकाय चुनाव को लेकर 2 मार्च को वोटिंग के बाद हरियाणा पहुंचे।
- कांग्रेस आज तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक नहीं बन पाई। सेशन में भी कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद बिना नेता प्रतिपक्ष के शामिल होती है। इन तमाम कारणों से जनता में भी मैसेज गया कि कांग्रेस में अनिश्चितता का माहौल है, ऐसे में काम की उम्मीद नहीं कर सकते।
- चुनाव प्रचार में हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज चेहरे पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा, सिरसा सांसद कुमारी सैलजा, राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला प्रचार में कहीं नजर नहीं आए। नेताओं की प्रचार से दूरी से जनता में मैसेज गया कि कांग्रेस की खुद इस चुनाव में दिलचस्पी नहीं है, ऐसे में उन्हें जिताया तो आगे काम भी नहीं होंगे।
- निकाय चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़ते चले गए। हिसार से विधानसभा में कांग्रेस उम्मीदवार रहे रामनिवास राड़ा मेयर टिकट मांग रहे थे। राड़ा ने निर्दलीय नामांकन भरा, लेकिन कांग्रेस का कोई नेता मनाने नहीं गया। उलटा जब पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा हिसार गए तो उन्होंने चेतावनी दी कि अगर निर्दलीय लड़ा तो राड़ा को पार्टी से निकाल देंगे। राड़ा अगले दिन भाजपा में शामिल हो गए।
- करनाल में भी 2 बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ने वाले तिरलोचन सिंह और पूर्व विधायक नरेंद्र सांगवान भी पार्टी छोड़ गए। इसके बावजूद किसी ने उनकी सुध नहीं ली। जिस वजह से वे भाजपा में शामिल हो गए।
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