Congress Caste Politics, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: बीता साल जाते जाते कांग्रेस को फिर से कमजोर स्थिति में ले आया। हालांकि कांग्रेस संविधान बचाओ और अंबेडकर को मुद्दा बना अभी भी जाति की राजनीति के भरोसे नए साल में आंदोलन कर अपने को फिर खड़ा करने की कोशिश करेगी। लेकिन सवाल यही है कि क्या सहयोगी साथ देंगे? क्या कांग्रेस का दांव चलेगा? कई सवाल हैं। क्योंकि कांग्रेस अपने सर्वोच्च नेताओं राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी की गलत नीतियों के चलते इंडिया गठबंधन में अलग थलग पड़ती जा रही है।
धीरे-धीरे अलग होते जा रहे सहयोगी
सहयोगी धीरे-धीरे अलग होते जा रहे हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल उन्हें इंडिया गठबंधन से ही बाहर करने की मांग कर दी है।दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला तय है। ऐसे में कांग्रेस कुछ कर पाएगी लगता नहीं है। बड़ा खतरा बिहार चुनाव के समय आ सकता है।बिहार में ठीक दस माह बाद अक्टूबर 25 में विधानसभा के चुनाव होने हैं।इस राज्य का चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे अहम होगा। क्योंकि सबसे पुराने सहयोगी राजद ने भी कांग्रेस को आंखे दिखा अभी से दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस की जिद्द के चलते हारी राजद
राजद पिछला विधानसभा का चुनाव कांग्रेस की जिद्द के चलते हारी थी। तब कांग्रेस ने 80 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था और गिनती की सीटें जीती थी।जानकारों का आंकलन था कि राजद अकेले लड़ती तो सरकार बन सकती थी।इसलिए राजद नेता लालू यादव इस बार कोई चूक करने के मूड में नहीं है।कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता यही है कि वह उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े प्रदेशों में अपना वोट बैंक खो चुकी है। पार्टी संगठन को मजबूती दे अपना वोट बैंक वापस लाने की कोशिश कांग्रेस दस साल से भी ज्यादा समय से कर ही नहीं रही है।
फेस की राजनीति कर पिट रही कांग्रेस
कांग्रेस संगठन से ज्यादा फेस की राजनीति कर पिट रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है गांधी फेस उन्हें अपने आप वोट दिलाएगा। लेकिन ऐसा अब हो नहीं रहा है। कांग्रेस इस बात को समझने को तैयार ही नहीं है कि गांधी फेस अब चल नहीं रहा है। कांग्रेसी अब राहुल के बाद उनकी बहन प्रियंका गांधी के फेस पर वापसी की उम्मीद कर रहे हैं। प्रियंका गांधी सांसद बनने के बाद अभी तक केवल अपनी मार्केटिंग पर फोकस किए हुए हैं। शीतकालीन सत्र में उन्होंने इसी बात पर फोकस ज्यादा रखा कि कैसे मीडिया की सुर्खियों में बना रहा जाए। अभी गंभीरता दिखी नहीं है। हो सकता आगे दिखाई दे, लेकिन वह तभी होगा जब संगठन को कसा जाएगा।
पिछले साल 2023 में 9 राज्यों में चुनाव हुए थे कांग्रेस केवल तेलंगाना और कर्नाटक में ही चुनाव जीत पाई जबकि राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अहम राज्य हार गई। दक्षिण के जिन दो राज्यों में जीत मिली कांग्रेसी प्रियंका गांधी को उसका श्रेय देने लगे।आम चुनाव से पूर्व कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन का गठन कर बीजेपी विरोधी दलों को साथ ले लोकसभा का चुनाव लड़ा।इसका असर हुआ भी।बीजेपी अपने दम पर बहुमत से नहीं ला पाई लेकिन उसकी अगुवाई में बने राजग गठबंधन ने बहुमत पा कर इंडिया गठबंधन को हरा दिया।
99 सीट को उपलब्धि मान जश्न में डूब गई कांग्रेस
कांग्रेस ने इस बात का आंकलन ही नहीं किया कि हिंदी और दक्षिण में वह हारी क्यों। कांग्रेस 99 सीट को उपलब्धि मान जश्न में डूब गई। कांग्रेस मान बैठी कि जाति और संविधान की राजनीति हिट हो गई।इन्हीं मुद्दों पर हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनावी मैदान में उतरी।फिर वही हुआ जो तय था। बीजेपी ने अपनी लोकसभा चुनाव की गलतियों को सुधारते हुए संघ को साथ ले पूरी तैयारी से चुनाव लड़े और जीते। बीजेपी ने अपने पुराने हिंदुत्व के मुद्दे को धार दे कांग्रेस की जाति की राजनीति को हरा दिया।
2022 की स्थिति में लौटी पार्टी
मतलब 2024 के मध्य में कांग्रेस की जो उम्मीदें बनी थी साल के जाते जाते धराशाही हो गई।दो राज्यों की करारी हार ने कांग्रेसियों का मनोबल तोड़ कर रख दिया। पार्टी लगभग एक तरह से 2022 की स्थिति में लौट आई। तब कांग्रेस की उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे कई राज्यों में करारी हार हुई थी।गांधी परिवार के नेतृत्व पर पार्टी के भीतर सवाल उठने लगे थे।कमोवेश कांग्रेस की स्थिति वही है लेकिन कांग्रेसी अभी मौन हैं।हैरानी की बात यह है कि भाई बहन ने जितनी ताकत वायनाड के उप चुनाव में लगाई उसकी आधी भी दूसरे राज्यों को देते तो करारी हार से बच जाते।लेकिन प्रियंका गांधी लोकसभा में अपनी एंट्री भारी जीत से करना चाहती थी सो भाई राहुल भी वायनाड में लगे रहे।
प्रियंका ने भारी जीत हासिल की, पर पार्टी रसातल में गई
प्रियंका ने भारी जीत तो हासिल कर ली लेकिन पार्टी रसातल में चली गई। भाई बहन जो राजनीति करते दिख रहे हैं लगता नहीं है कि आने वाले साल भी कुछ होगा। दिल्ली में दो माह बाद होने वाले चुनाव में पार्टी मुकाबले में अभी तक दिख नहीं रही बिहार चुनाव आने तक क्या स्थिति होती देखना होगा।क्योंकि कांग्रेस रीजनल पार्टियों की जाति और अंबेडकर के मुद्दे को आगे बढ़ा नई राजनीति की तैयारी में।कांग्रेस की पिछड़ों की राजनीति से बीजेपी को इतना नुकसान नहीं है जितना रीजनल पार्टियों को होगा।
ममता बनर्जी को ‘इंडिया’ का नेता बनाने की मांग
यूपी ओर बिहार में सपा और राजद पिछड़ों की राजनीति के भरोसे ही राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के ये सहयोगी दल नए साल में क्या कदम उठाते हैं। इन दलों ने जाते हुए साल यूं भी टीएमसी नेत्री और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन का नेता बनाने की मांग कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।शरद पंवार की एनसीपी और केजरीवाल की आप भी कांग्रेस का साथ छोड़ने की बात कर चुके हैं।वह भी ममता बनर्जी के पक्ष में हैं।ऐसे में कांग्रेस के लिए आने वाला नया साल भी चुनौतियों से कम नहीं होगा।राहुल गांधी संगठन में बड़े बदलाव कर संगठन को ताकत देते हैं तो फिर कुछ हालात बदल सकते हैं।मौजूदा टीम तो बुरी तरह पीट चुकी है।कभी भी पिटी हुई टीम के खिलाफ आवाज उठ सकती है।
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