Congress National President, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली:कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी को पार्टी हित में अब अपनी नाराजगी को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि आज के दिन पार्टी जिस दौर से गुजर रही है उसमें मौजूदा टीम में बड़ा बदलाव करना ही होगा। राज्यों से लेकर केंद्रीय संगठन की हालत चिंताजनक हो चुकी है। दरअसल 2019 के आम चुनाव में हुई करारी हार के बाद राहुल गांधी अपनी जगह संगठन महासचिव बन चुके के सी वेणुगोपाल को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाहते थे।
गुस्से में बैठक से चले गए थे राहुल
24 अकबर रोड स्थित संगठन महासचिव के कमरे में राहुल ने अपनी मां सोनिया गांधी को अपना निर्णय सुना दिया था। इस निर्णय की खबर जैसे ही बगल के मीटिंग हाल में नए अध्यक्ष के लिए माथापच्ची कर रहे दिग्गज नेताओं के पास गई तो हड़कंप मच गया था। अधिकांश नेताओं का मत था कि यह फैसला पार्टी में हित में नहीं रहेगा और उत्तर भारत के नेता को कमान सौंपनी चाहिए। इसी बात पर राहुल नाराज हो गए और गुस्से में बैठक से चले गए।
सोनिया गांधी को खुद से कमान संभालनी पड़ी
सोनिया गांधी को इसके बाद खुद कमान संभालनी पड़ी। राहुल की यह नाराजगी पार्टी पर इतनी भारी पड़ी कि उन्होंने संगठन महासचिव वेणुगोपाल को राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी ज्यादा ताकतवर बना पार्टी का चौथे नंबर का नेता बना दिया।गांधी परिवार के बाद वेणुगोपाल ही बीते 6 साल से पार्टी चला रहे हैं।तमाम विरोध और नाराजगी के बाद भी राहुल गांधी वेणुगोपाल को कतई बदलना नहीं चाहते हैं।जबकि पार्टी इसकी भारी कीमत चुका चुकी है।
राहुल गांधी से कहने की नहीं किसी में हिम्मत
पूरी पार्टी में कोई इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है कि वह राहुल गांधी से कह सकें कि अपने निर्णय पर फिर से विचार करें।वेणुगोपाल अपनी कार्यप्रणाली और गैर हिंदी नेता होने के चलते पूरी तरह से असफल साबित हुए।दो लोकसभा और केरल समेत अधिकांश राज्यों में पार्टी हार के चलते सिमट कर रह गई। वेणुगोपाल गांधी परिवार के यस मेन बन कर काम करते हैं।सच उन तक नहीं पहुंचने देते।यही वजह रही कि मध्यप्रदेश,राजस्थान,हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे जो राज्य जीते जा सकते थे,लेकिन पार्टी हार गई।
दिल्ली जैसे राज्य में तीसरी बार शर्मनाक हार
दिल्ली जैसे राज्य में तीसरी बार शर्मनाक हार हुई। पार्टी एक सीट भी नहीं जीत पाई।सारे फैसले वेणुगोपाल की निगरानी में हुए।वेणुगोपाल ने अपने करीबी और अनुभवहीन नेताओं को पार्टी में ज्यादा आगे बढ़ाया।दिल्ली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।गांधी परिवार को सच जानने ही नहीं दिया।खुद आगे बढ़ कर कभी फैसले नहीं किए। चुनाव के समय ही सक्रिय हो गांधी परिवार के आगे समस्या रख देते। राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल 24 घंटे नेताओं और कार्यकतार्ओं से मिल रणनीति पर चर्चा करते फिर जरूरी हो सोनिया गांधी को जानकारी दे दखल करवाते।पटेल के निधन के बाद वेणुगोपाल और ताकतवर हो गए।
वेणुगोपाल की रणनीति अहमद पटेल के उल्ट
वेणुगोपाल की रणनीति अहमद पटेल के उल्ट रही। हिन्दी नहीं समझ पाने के चलते वे बहुत कम ही नेताओं और कार्यकतार्ओं से मिलते।इसके चलते पार्टी लगातार कमजोर होती चली गई और राहुल गांधी निशाने पर आते गए।यही वजह रही कि पार्टी में असंतुष्ट नेताओं का गुट बना।बड़े बड़े नेता सुनवाई नहीं होने के चलते पार्टी छोड़ कर चले गए।राहुल ही नाराज नेताओं के निशाने पर रहे क्योंकि वह भी नेताओं और कार्यकतार्ओं से मिलने में परहेज करते हैं।जबकि राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी और उनकी मां सोनिया नेताओं को महत्व देते थे।
राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ की सबसे बड़ी गलती
राहुल गांधी ने सबसे बड़ी गलती अध्यक्ष पद छोड़ कर की।गैर गांधी अध्यक्ष बनने का कोई संदेश नहीं गया, क्योंकि सारे फैसले वह खुद ही करते और पार्टी का फेस भी खुद ही हैं। मल्लिकार्जुन खरगे नाम के अध्यक्ष बने हुए हैं। राहुल के अध्यक्ष पद छोड़ने से पार्टी को नुकसान ही हुआ। 2019 मई में राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ा और फिर तीन साल से ज्यादा समय लगाने के बाद स्थाई अध्यक्ष तय हो पाया।
अध्यक्ष के चुनाव के चलते पार्टी की हुई फजीहत
अध्यक्ष के चुनाव के चलते पार्टी की खासी फजीहत भी हुई। पार्टी में कोई सुधार भी नहीं हुआ।दक्षिण भारत का संगठन में बर्चस्व होने से पार्टी उत्तर भारत में खत्म हो गई।अभी भी राहुल गांधी के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां हैं। मौजूदा टीम उन पर पार पा लेगी लगता नहीं है।चुनाव वाले राज्यों को ही लें। अक्टूबर में बिहार का चुनाव होना है।अपने दम पर पार्टी की वहां कोई हैसियत नहीं है,लेकिन आपसी गुटबाजी के चलते नेता अभी से सहयोगी राजद पर अधिक सीटों का दबाव बनाने लगे हैं।
केरल में केवल कांग्रेस की थोड़ी बहुत उम्मीदें
राहुल गांधी के खास कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की राजद नेताओं से नहीं बनती है। ये तो बिहार के हाल है। केरल में पहले से ही वेणुगोपाल, रमेश चेन्निथला गुट थे। अब शशि थरूर भी उसमें कूद गए हैं। केरल ही एक मात्र राज्य है जहां पर थोड़ी बहुत कांग्रेस की उम्मीदें हैं,लेकिन पिछली बार पार्टी चुनाव हार गई थी। असम में संगठन कमजोर है।नेता दूसरी पार्टियों में चले गए हैं।बाकी राज्यों में चर्चा करनी बेकार है।राहुल गांधी पर लगातार दबाव बढ़ रहा है कि संगठन का कुछ करें।
चाहें तो बहुत कुछ कर सकते हैं राहुल
राहुल चाहें तो बहुत कुछ कर सकते हैं। पहले तो अपना गुस्सा त्याग संगठन महासचिव वेणुगोपाल को अपना राजनीतिक सचिव बना संगठन महासचिव पद किसी हिंदी भाषी नेता को दे सकते हैं।पार्टी में चुनाव प्रबंधन कमेटी बनाने की बात हो रही है।इस कमेटी का अध्यक्ष भी अहम पद होगा।इस पर उनकी बहन प्रियंका की नजर लगी है।राहुल को तय करना है कि वह दो अहम पदों पर नए चेहरों को मौका दे अपनी नाराजगी समाप्त करते हैं।यूं भी पार्टी गुजरात में 8 और 9 अप्रैल को 11 साल बाद एआईसीसी की बैठक करने जा रही है।इस बैठक में कई अहम प्रस्ताव पार्टी लाएगी।इन्हीं में राजनीतिक सलाहकार और चुनाव प्रबंधन कमेटी जैसे नए पदों को भी शामिल किया जा सकता।
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