Congress Condition Not Good, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: कांग्रेस के भीतर क्या कुछ गड़बड़ चल रहा है? यह सवाल आज कल बड़ा चर्चाओं में है। राहुल गांधी का अचानक बीमार पड़ना, दिल्ली चुनाव को लेकर भ्रम की स्थिति बनना और सबसे अहम संगठन में किए जाने वाले बदलाव को लेकर सहमति न बनने की खबरें बाहर आना। नए मुख्यालय के नियम कानूनों को लेकर नेताओं और कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव पैदा होना। यह सब बातें ऐसे समय पर हो रही हैं जब कांग्रेस चौतरफा संकटों से घिरी हुई है।

अपने दिखा रहे आंख, नेता-कार्यकर्ता हार से निराश

अपने आंख दिखा रहे हैं तो नेता और कार्यकर्ता लगातार हार से निराश हैं। ऊपर से दिल्ली का चुनाव पहाड़ बन गया है। खाता खुलने की गारंटी कांग्रेसी ही खुद आत्मविश्वास से नहीं दे पा रहें हैं। अगर वाकई खाता नहीं खुला तो फिर स्थिति और खराब होगी। इस हालात के लिए कोई और नहीं मौजूदा आलाकमान ही जिम्मेदार है। क्योंकि हरियाणा और महाराष्ट्र की हार से सबक लेने के बजाए दिल्ली को भी भगवान भरोसे छोड़ दिया।

दिल्ली को स्थाई अध्यक्ष नहीं दे पाई पार्टी

कांग्रेस पार्टी दिल्ली को एक स्थाई अध्यक्ष नहीं दे पाई। इससे स्थिति और बिगड़ गई। तमाम झटके लगने के बाद भी पार्टी में बदलाव और सुधार होता दिख नहीं रहा है। उल्टा बचे कूचे नेता पार्टी को ताकत देने से ज्यादा भाई-बहन में अपनी सेटिंग बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। खबरें हैं कि कई नेता अपनी आस्था बदल बहन के करीब होना चाहते हैं। इन नेताओं को लगता है कि राहुल गांधी के रहते कुछ होगा नहीं। ऐसे नेता कभी भी भाई-बहन के पीछे तनाव भी पैदा कर सकते हैं। पार्टी में कभी भी कुछ भी हो सकता है।

हालांकि भाई-बहन में भले ही सब कुछ ठीक ठाक चल रहा हो, लेकिन नेता अपने हिसाब से अनुमान लगा प्रियंका गांधी की गुड बुक में आने की कोशिश में जुटने लगे हैं। यही कांग्रेस के लिए बड़ा चिंता का विषय है। दअरसल, इन हालातों के लिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ही ज्यादा जिम्मेदार नजर आती हैं। लोकसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने सक्रियता बढ़ा मैसेज देने की कोशिश की, लेकिन उसके बाद फिर पुरानी स्थिति में लौट गई। सोनिया अपने बच्चों को लेकर भी सही समय पर सही फैसला नहीं कर पाई, जिससे कांग्रेस के अंदरूनी हालात चिंताजनक बने।

सोनिया दखल दें तो शायद स्थिति बदल जाए

सोनिया अब भी दखल दें कुछ कड़े फैसले करती हैं तो शायद स्थिति बदले, क्योंकि दूसरे नंबर के सर्वोच्च नेता उनके बेटे राहुल गांधी लगातार हो रही हार से खीज चुके हैं। उनके बारे में जो बातें बाहर आती हैं वह भी चिंता बढ़ाने वाली हैं। राहुल किसी की कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं। गैर राजनीतिक लोग जिन्हें राहुल से मिलने का मौका मिलता है वह इधर-उधर जो बताते हैं वह भी निराशा पैदा करता है। अगर वाकई यह खबरें सही हैं कि राहुल दार्शनिक बातें कर अपने को शिव का साधक बता काम की बात सुनते ही नहीं हैं तो यह चिंता का विषय है।

राहुल गांधी को केवल लोकसभा चुनाव से मतलब

राहुल लगातार राज्यों में हो रही हार से भी बिल्कुल चिंतित नहीं है। उनका मानना है कि उन्हें लोकसभा चुनाव से मतलब है बाकी चुनाव में क्या हो रहा है उन्हें कोई लेना देना नहीं है। ऐसा भी सुनने में आता है कि राहुल अपने मुद्दों को बिल्कुल नहीं बदलना चाहते हैं। चाहे पिछड़ों की राजनीति हो या हिंदुत्व के खिलाफ बोलना हो। यही कांग्रेस के कमजोर होने की सबसे बड़ी वजह बनता जा रहा है। राज्यों में हार से ही कांग्रेस खत्म होने के कगार पर है।

राहुल की हां में हां मिलाने वाले पार्टी नेता

राहुल के करीबी नेता सुझाव देने के झंझट में इसलिए नहीं पड़ते हैं कि क्योंकि वह अपना टाटा बाट नहीं खोना चाहते हैं। इन नेताओं को पता है कि उनकी हैसियत तभी तक बनी है जब तक वह राहुल की हां में हां मिलाते हैं। अपनी कुर्सी बचाने के चक्कर में पार्टी डूब रही है उससे उन्हें कोई लेना देना नहीं है।इसी के चलते पार्टी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं दिख रहा है। बेलगाम में हुई कार्यसमिति में संगठन में बदलाव की बात हुई थी। लेकिन उसको लेकर भी खबरें ठीक नहीं है।सुनने में आया है कि प्रियंका गांधी को फिर से उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाने की बात हुई तो वह नाराज हो गर्इं। उन्होंने यूपी की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया। लंबे समय से प्रियंका बिना प्रभार के हैं।

संगठन में नया कुछ होने की उम्मीद कम

राहुल अपने करीबी के सी वेणुगोपाल को अभी संगठन महासचिव पद से नहीं हटाना चाहते हैं। वेणुगोपाल भी हटने के मूड में भी नहीं है। इसके चलते संगठन में नया कुछ होगा लगता नहीं है।नेता और कार्यकर्ता पहले ही निराश थे।नए मुख्यालय के कायदे कानून ने उनकी निराशा और बढ़ा दी।आम कार्यकर्ता तो दूर ठीक ठाक नेता को भी वहां की व्यवस्था संभाल रहे मनीष चतरथ से या उनके कार्यालय से अनुमति लेनी होगी।भले ही आप प्रदेश के कितने भी बड़े नेता हों।ये मामले अभी चल ही रहे थे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बदलाव वाले बयान ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी।उन्होंने नेतृत्व में बदलाव की बात कर सनसनी फैला दी।

कर्नाटक की अस्थिरता पर बीजेपी की पैनी नजर

ढाई ढाई साल वाला फामूर्ला राहुल ने कर्नाटक में लागू कर डी शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया तो फिर ऐसी परंपरा शुरू होगी जो पार्टी हित में नहीं होगी। कर्नाटक की अस्थिरता पर बीजेपी की पैनी नजर है।बीजेपी मौके का तुरंत फायदा उठाती है।केंद्र में बने कांग्रेस के इन हालातों से राज्य के नेता भविष्य की राजनीति देख पाला बदलने में देरी नहीं करेंगे। हो सकता है पड़ोसी राज्य हरियाणा और राजस्थान में भी कुछ कांग्रेसियों का आने वाले दिनों में पार्टी से मोह भंग हो जाए।सोनिया गांधी ने समय रहते अगर दखल नहीं दिया तो पार्टी को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

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