Congress Politics: आंगन टेढ़ा बताने से नहीं चलेगा काम, राहुल को हलकारों से मुक्ति पानी होगी

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Congress Politics: आंगन टेढ़ा बताने से नहीं चलेगा काम, राहुल को हलकारों से मुक्ति पानी होगी
Congress Politics: आंगन टेढ़ा बताने से नहीं चलेगा काम, राहुल को हलकारों से मुक्ति पानी होगी

Congress Defeat In Assembly Elections, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: एक कहावत है नाच न जाने आंगन टेढ़ा। मतलब खुद से कुछ नहीं हो रहा है तो दूसरे के सिर दोष डाल दो। कांग्रेस पार्टी बीते एक दशक से यही कर रही है। राहुल गांधी बिना फोज के महाराज की जय हो, जय हो करने वाले हलकारों के साथ चुनाव की लड़ाई में निकलते हैं और करारी मात खाकर वापस आ जाते हैं।

पीछे देखते ही नहीं है कि फौज है भी या नहीं। मतलब बिना मजबूत संगठन के हलकारों को ही फौज मान लड़ने जाते हैं और बिना संघर्ष के हथियार डाल आते हैं। फिर महाराज की जय हो, जय हो कहने वाले अपनी नौकरी बचाने के लिए राहुल को बताते हैं सर ईवीएम की वजह से हार गए हैं। चुनाव आयोग जा रहे हैं, कोर्ट में जाने की तैयारी है आदि आदि।इसलिए आप बिल्कुल चिंता न करें। सब ठीक हो जाएगा। आप की पार्टी में हार के बाद भी जय जय कार हो रही है।

कांग्रेस में पहले भी ऐसा होता रहा है, जिससे पार्टी को नुकसान ही हुआ। उत्तर प्रदेश और गुजरात की हार के बाद तब की अध्यक्ष सोनिया गांधी को इसी तरह समझाया जाता कि सब ठीक है। बताया जाता हमारा दो से तीन प्रतिशत वोट बढ़ा है। यूपी में 200 सीटों में जमानत बच गई है। पिछली बार से 250 सीटों पर जमानत जब्त हुई थी। गुजरात में भी मत प्रतिशत बढ़ा है आदि। इसके बाद सोनिया गांधी अपने नेताओं से कहती चिन्ता की कोई बात नहीं है। हमने अच्छा चुनाव लड़ा है।

सोनिया के बाद राहुल- प्रियंका ने कमान संभालते ही अपनी मां सोनिया गांधी की परंपरा को जारी रख ऐसे फैसले किए कि कांग्रेस हाशिए पर पहुंच गई। यूपी में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घट कर निर्दलीयों से भी कम 3% प्रतिशत रह गया।गुजरात ,मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भी यही हाल हो गया। गुजरात में आम आदमी पार्टी आगे निकल गई। लेकिन इतना सब होने के बाद भी कांग्रेस सुधरने को राजी नहीं है।लोकसभा में 99 सीट जीतने के बाद तो सब कुछ भूल गए। पावर में आने की तरह व्यवहार करने लगे।

फिर हरियाणा में जो हुआ किसी से छिपा नहीं है। अतिआत्मविश्वास और आपसी लड़ाई कांग्रेस को ले डूबी। हार के बाद दबी जुबान में ईवीएम का राग गाया गया, क्योंकि राहुल गांधी और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को वोटिंग से पहले ही पता चल गया था कि हरियाणा हाथ से गया। इतना सब जानने के बाद भी चुनाव आयोग, ईवीएम न जाने किस किस को जिम्मेदार ठहरा दिया गया। राहुल ने हार पर मंथन करने और खामियों का पता लगाने के बजाए फिर अपने जयकारा लगाने वालों के साथ महाराष्ट्र की लड़ाई के लिए निकल पड़े।

महाराष्ट्र में यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे भी राहुल गांधी की तरह ही मिलती जुलती राजनीति करते हैं। उन्होंने भी राहुल के के सी वेणुगोपाल की तरह अपने यहां संजय राउत जैसे खास सलाहकार रखे हुए हैं। राउत और वेणुगोपाल में अंतर केवल बोलने को लेकर है। राउत बिना बोले चुप नहीं रहते और वेणुगोपाल चुप रह अपने बॉस राहुल के मोबाइल पर भेजे मैसेजों को केवल अमल में लाने का काम करते हैं। इसके साथ राहुल के करीब फोटो में ज्यादा दिखने में विश्वास करते हैं।

संगठन से वेणुगोपाल का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता। इसके उल्ट संजय राउत मीडिया में सुर्खियों में रहते ही संगठन चलाते हैं। उद्धव ठाकरे की जय जयकार वाली राजनीति करते हैं। संजय राउत अपने से ज्यादा होशियार किसी को नहीं मानते हैं। 2019 में उद्धव को बीजेपी से अलग करने में उनकी भी भूमिका थी। जैसे कि राहुल गांधी सच्चाई से अनजान रह यह मान कर राजनीति करते हैं कि उनके फेस पर अपने आप वोट मिल जाएगा। इसी तरह उद्धव ठाकरे ने भी गलतफहमी पाली हुई है कि महाराष्ट्र में उनके चेहरे पर वोट अपने आप मिल जाएगा। संगठन की जरूरत ही नहीं है।

जो संगठन का जानकार थे एकनाथ शिंदे, वह अपनी अलग सेना बना बीजेपी के गठबंधन में चले गए और मुख्यमंत्री भी बन गये। चुनाव में साबित भी कर दिया असली शिवसेना वही है। ठाकरे को संगठन की एबीसीडी कुछ भी पता नहीं थी।जयकारा लगाने वालों के भरोसे राजनीति कर रहे थे। ठाकरे इस बात को भी नहीं समझ पाए कि उनका कोर वोटर हिंदू कांग्रेस के साथ जाने से छिटक गया। तीसरे नेता थे शरद पंवार। राजनीति का उन्हें बड़ा पंडित माना जाता है। लेकिन वह भी केवल इसलिए गच्चा खा गए कि उनके पास भी बेटी सुप्रिया ही रह गई थी।

पंवार भी यही मान राजनीति कर रहे थे कि उनके फेस पर वोट पड़ता है।इसलिए कोई भी नेता जमीनी स्तर पर कुछ भी पता नहीं लगा पाए। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की संविधान खतरे में है और जातीय आरक्षण की राजनीति ने तीनों दलों को निपटा दिया, क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी और संघ ने मिल हिंदुओं को एक जुट करना शुरू कर दिया था।संघ और भाजपा जानते थे कि कांग्रेस की हिंदुओं को बांटने की राजनीति का एक ही तोड़ है ध्रुवीकरण।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक हैं तो सेफ हैं और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी के बटोगे तो कटोगे नारे ने हिंदुओं को एक जुट कर विपक्ष को करारी पटखनी दे दी। परिणाम आने से पहले ही दिखने लगा था कि महाविकास आघाड़ी का मुकाबला महायुति से नहीं बल्कि आपस में लड़ रहे है। कांग्रेस में तो इतना अफरा तफरी का माहौल था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे को कुछ भी पता नहीं चलता था। पांच सितारा होटल में बैठ फैसले किए जाते फिर खरगे को पता चलता उनकी पीसी स्थगित कर दी गई है।कांग्रेस के नेताओं को हार का आभास हो चुका था। इसके बाद भी फिर आंगन टेढ़ा बताने पर लगे हुए हैं मतलब राग शुरू हो गया ईवीएम में गड़बड़ी से हरा दिया।

संसद के शीतकालीन सत्र में तो पूरी पार्टी ने ईवीएम पर ठीकरा फोड़ फिर संविधान का राग गाया। राहुल गांधी को लेकर तो बात समझ में आती है कि उन्हें सच नहीं जानने दिया जाता है। भले नेता हैं, लेकिन ज्यादा ही भले हैं। वह ऐसे माहौल में बढ़े हुए हैं जहां उन्हें सिर्फ यह बताया गया है कि आप को कुछ नहीं करना, आप अपने आप जीत जाएंगे। इसलिए वह जो भी करते हैं उन्हें लगता है सही कर रहे हैं। ताजा मामला संविधान का ही ले लो।

राहुल कहते हैं कि जातीय जनगणना कराएंगे।जिसकी संख्या ज्यादा होगी उसे उतना आरक्षण मिलेगा।राहुल ने यह गुणा भाग नहीं लगाया कि ऐसा कर फंस भी सकते हैं।पता चला कि एसटी से ज्यादा ओबीसी की संख्या हो गई तो क्या एसटी का आरक्षण खत्म कर देंगे।एक उदाहरण भर है।अगड़ी जातियों के बिना क्या राजनीति संभव है।राहुल को अपने मुद्दों पर जयकारा लगाने वालों अलग हट सोचना चाहिए कि वह गलत रास्ते पर हैं।उनकी बहन प्रियंका गांधी भी अभी तक उनके रास्ते पर ही चल रही हैं।

अति महत्वाकांक्षा उनकी बड़ी कमजोरी है।जो भी हो फिलहाल संसद में पहुंचने की पहली जिद उन्होंने पूरी कर ली है। गुरुवार को प्रियंका गांधी ने लोकसभा में संविधान किताब हाथ में ले शपथ ली।वह वायनाड से चुनाव जीत कर पहली बार लोकसभा में पहुंची है।उन्होंने भी अपने भाई राहुल की संविधान की राजनीति को आगे बढ़ाया है। प्रियंका के चुनावी राजनीति में आने से पार्टी को लाभ होगा इसका पता आने वाले दिनों में चलेगा।फिलहाल अभी तक वह भी असफल राजनीतिज्ञ साबित हुई हैं।

उत्तर प्रदेश,पंजाब,राजस्थान ऐसे कई राज्य हैं जहां उनके दखल से पार्टी को नुकसान ही हुआ।उत्तर प्रदेश में उनके सभी प्रयोग फेल हुए। प्रियंका भी उसी तरह की राजनीति कर रही है जैसे कि गांधी परिवार करता आया है।सच्चाई से दूर जयकारा लगाने वालों से घिरे रहना।अच्छा हो दोनों भाई बहन किसी ओर पर ठीकरा फोड़ने के बजाए संगठन का फिर से गठन करें।जयकारा लगाने वालों से जल्द मुक्ति पाएं वर्ना पार्टी ही मुक्त हो जाएगी।

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