कांग्रेस ने 1947 में युवा इकाई बनाई, जो 1960 में भारतीय युवा कांग्रेस के रूप में युवाओं का सबसे चहेता और शक्तिशाली संगठन बना। उसने देश को कई बड़े समर्पित नेता-कार्यकर्ता दिये। 1971 में बने भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने कांग्रेस की विचारधारा किशोरावस्था में ही भावी पीड़ी में भरी और समर्पित कार्यकर्ता-नेता तैयार किये। इस समय ये सभी संगठन वरिष्ठ नेताओं से उपेक्षित हैं। जिससे पार्टी न जमीनी तौर पर मजबूत हो पा रही है और न ही वफादार कार्यकर्ता-नेता तैयार कर पा रही है। जब राहुल गांधी और प्रियंका दोनों चुनाव में खप रहे थे, तब उनके अन्य नेता घरों में तमाशाई बने बैठे थे। जिन वामपंथियों ने कांग्रेस को पश्चिम बंगाल सहित देश में खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, आज वह उसी के साथ पींगे लड़ा रही है। युवा कांग्रेस से निकली ममता बनर्जी अकेले ही विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्र और दर्जन भर राज्य सरकारों के साथ ही कारपोरेट और मीडिया प्रपोगंडा से लड़ रही थीं। उन्होंने विपक्षी दलों से साथ मांगा मगर कांग्रेस ने हाथ आगे बढ़ाने के बजाय उसके वोट काटने के लिए वामपंथियों को हाथ दे दिया। कांग्रेस ने न तो समान विचारधारा वाले साथियों का चयन किया और न ही अपने जमीनी संगठनों को मजबूत बनाया। यही कारण है कि इस चुनाव में वह सबसे बड़ी लूजर साबित हुई है। ममता जहां आयरन लेडी बनकर उभरी हैं, वहीं भाजपा भी गेनर है। भाजपा ने जहां कांग्रेस की जीत की राह रोक दी, वहीं बंगाल में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। वह दो राज्यों में सत्ता में भी आई है। कांग्रेस ने अगर अब भी राजनीतिक रणनीति नहीं सीखी, आत्ममंथन नहीं किया, तो तय है कि उसके हवाई नेता बची-खुची पार्टी को भी खत्म कर देंगे। किसी भी दल के लिए नेता के साथ समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज जरूरी होती है।
जयहिंद!