Chandigarh News (आज समाज) चंडीगढ़: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में इस बार बाजी पलटने के लिए पूरा जोर लगा रही कांग्रेस के सामने मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी की होड़ में गुटबाजी से पार पाना आसान नहीं हो रहा है। सांसदों को विधानसभा चुनाव में नहीं उतारने के पार्टी के रुख के बावजूद वरिष्ठ नेता व लोकसभा सदस्य कुमारी सैलजा द्वारा चुनाव लड़ने को लेकर दिए जा रहे बयान सिरदर्दी का कारण बने हुए हैं। चुनावी रणनीतिकारों के जरिये पार्टी हाईकमान ने साफ संदेश दे दिया है कि सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारने की कोई गुंजाइश नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व के इस रुख के बाद सैलजा के साथ ही राज्यसभा सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला और लोकसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा के विधानसभा में ताल ठोकने का रास्ता लगभग बंद हो गया है। हालांकि इन नेताओं के साथ उनके समर्थकों को साधे रखने के लिए हाईकमान ने मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करने की रणनीति पर चलने का फैसला किया है। हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया का यह बयान कि चुनाव बाद ही मुख्यमंत्री तय होगा और जरूरी नहीं कि विधायकों में से ही मुख्यमंत्री चुना जाए, वास्तव में सैलजा और सुरजेवाला जैसे नेताओं के तेवर नरम करने के लिए दिया गया है। लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतकर एक दशक बाद विपक्ष का आधिकारिक दर्जा हासिल करने वाली कांग्रेस संसद में अपने संख्या बल को कम नहीं होने देना चाहती।
रायबरेली सीट रखने के लिए नेता विपक्ष राहुल गांधी ने वायनाड लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और अभी वहां उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है। जबकि चार दिन पहले महाराष्ट्र की नांदेड़ लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद वसंतराव चव्हान का निधन हो गया और लोकसभा में पार्टी की संख्या अभी 97 पर आ गई है। ऐसे में सैलजा या दीपेंद्र हुड्डा को चुनाव लड़ाए जाने की गुंजाइश नहीं है। कांग्रेस को राजस्थान से राज्यसभा की एक सीट गंवानी पड़ी है और कांग्रेस की उच्च सदन में संख्या केवल 26 रह गई है। राज्यसभा में विपक्ष का आधिकारिक दर्जा बनाए रखने के लिए पार्टी को कम से कम 24 सदस्यों की संख्या बनाए रखनी है। ऐसे में राजस्थान से चुनकर आए सुरजेवाला को भी मैदान में उतारे जाने की गुंजाइश नहीं है।
दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की हरियाणा कांग्रेस पर पकड़ मजबूत है और चुनावी रणनीति की कमान उनके ही हाथों में है। ऐसे में सैलजा तथा सुरजेवाला को लगता है कि दोनों में से कोई चुनाव नहीं लड़ेगा तो हुड्डा की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर ब्रेक लगाना मुश्किल होगा। सैलजा ने गुरुवार को हर हाल में चुनाव लड़ने की बात कही थी। सैलजा को इस मुद्दे पर सुरजेवाला का अंदरूनी समर्थन हासिल है। इसी होड़ व गुटबाजी की आशंका को पर गुरुवार रात कांग्रेस नेतृत्व ने संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और प्रभारी बाबरिया के जरिये एक बार फिर यह संदेश दिया कि सांसदों को चुनाव में उतारने का विकल्प नहीं है।
हरियाणा की सत्ता से 10 वर्षों से बाहर कांग्रेस की 2019 के विस चुनाव में कांटे की टक्कर में हार की बड़ी वजह गुटबाजी थी और इसीलिए हाईकमान इस बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। इसी गुटबाजी का नतीजा था कि दो वर्ष पहले अजय माकन क्रास वोटिंग की वजह से राज्यसभा चुनाव हार गए थे।
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