Congress defeat Reasons in Haryana : हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को हार का हो गया था आभास

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Congress defeat Reasons in Haryana : हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को हार का हो गया था आभास
Congress defeat Reasons in Haryana : हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को हार का हो गया था आभास
  • जाट राजनीति और शैलजा की नाराजगी भारी पड़ी

Congress defeat Reasons in Haryana | नई दिल्ली। हरियाणा चुनाव परिणामों को लेकर कांग्रेस अब कितने भी सवाल उठाए, लेकिन उसे चुनाव प्रचार के अंतिम सप्ताह में अहसास हो गया था कि बाजी पलट गई है। इसलिए राहुल गांधी मतदान के दिन अपनी बहन प्रियंका के साथ विदेश चले गए थे।

अजित मेंदोला
अजित मेंदोला

मतगणना के दिन वापस लौटे, प्रियंका अपनी बेटी के पास विदेश में ही रुक गई। गांधी परिवार मतगणना से पूर्व ही निराश हो चुका था। राहुल के करीबी जयराम रमेश और बाकी नेता और प्रवक्ता चुनाव में धांधली का आरोप लगा एक तरह से अपनी पार्टी की कमजोरियों को छिपाने में जुट गए हैं।

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने प्रचार के अंतिम दौर में ताकत जरूर झोंकी लेकिन तब तक दलित वोटर छिटक चुका था। राहुल गांधी ने दलित वोटरों को साधने को लेकर पार्टी की वरिष्ठ नेता सैलजा से दस जनपथ में तंवर को शामिल कराने से पूर्व लंबी चर्चा की। फिर पूर्व सांसद अशोक तंवर को कांग्रेस में वापस लाने की योजना बनी।

पार्टी के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने रिश्तेदारी के बलबूते पर अशोक तंवर को उनकी पत्नी अवंतिका तंवर के माध्यम से राजी करवाया और राहुल गांधी की महेंद्र गढ़ की रैली में उन्हें शामिल करवा दलितों को भ्रमित करने का दांव चला।
हुड््डा ने मंच पर तंवर की पीठ थपथपाई लेकिन तब तक हो चुकी थी देर

घोर विरोधी रहे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मंच पर तंवर की पीठ थपथपा संदेश देने की कोशिश की कि अब सब ठीक है। इसके बाद अजय माकन ने भी पार्टी मुख्यालय में तंवर का गुणगान कर दलित वोटरों को संदेश देने की कोशिश की। हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने तंवर को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलवा मिठाई खिलवाई।

फिर वो फोटो वायरल किए। तंवर को इतना सम्मान कांग्रेस में रहते हुए नहीं मिला जितना उनकी वापसी के समय पार्टी ने दिया। लेकिन तब तक बाजी हाथ से निकल चुकी थी।

फिर भी पार्टी उम्मीद कर रही थी दलित वोट कुछ ना कुछ तो मिलेगा। लेकिन पार्टी को यह आभास नहीं हुआ कि जाट राजनीति भारी पड़ गई है। दलितों के साथ दूसरी जातियों ने भी कांग्रेस से चुप चाप दूरी बना ली। अगड़ी जाति राहुल की आरक्षण की राजनीति से पहले ही नाराज थी।

दरअसल तंवर को जिस तरह से पार्टी में शामिल करवाया गया उससे संकेत मिल गए थे कुछ तो गड़बड़ हो गया है। क्योंकि कांग्रेस में शामिल होने से एक घंटा पूर्व तंवर बीजेपी के लिए वोट मांग रहे थे। उनके करीबियों की माने तो सब कुछ इतने आनन-फानन में हुआ कि किसी की समझ में कुछ नहीं आया कि ये क्या हो गया। शायद तंवर अपने रिश्तेदारों के इतने दबाव में आ गए कि उनको कांग्रेस में शामिल होना पड़ गया।

समर्थकों ने सोशल मीडिया पर हुड्डा के पक्ष में माहौल बनाया

कांग्रेस के तथाकथित समर्थक पत्रकारों ने सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसा माहौल बना दिया था हुड्डा वापस आ रहे हैं। कांग्रेस के बजाए हुड्डा की वापसी की ज्यादा चर्चा कर रहे थे। चैनलों में चर्चा में बैठे कुछ पत्रकार तो मतगणना के दिन कांग्रेस की हार को पचा नहीं पा रहे थे। कांग्रेस के प्रवक्ताओं की तरह बचाव कर रहे थे वोटिंग पूरी होने दें रिजल्ट पलटेगा।

एक चैनल ने तो देर तक कांग्रेस को 72 सीटें देने में अडिग दिखा। पार्टी की हार की एक वजह हुड्डा के सासंद बेटे दीपेंद्र हुड्डा भी बने। हुड्डा समर्थक पत्रकारों ने उन्हें भी सीएम उम्मीदवार बना पार्टी में गुटबाजी को हवा दे दी। एक तरह से मध्यप्रदेश वाली स्थिति बना दी गई।

मध्यप्रदेश को लेकर भी राहुल गांधी पूरी तरह से कमलनाथ पर निर्भर हो जीत का खुल कर दावा करते थे। राहुल गांधी और उनके करीबी के सी वेणुगोपाल और जयराम रमेश यही फीड बैक देते नंबर एक पर मध्यप्रदेश जीत रहे हैं और नंबर दो पर छत्तीसगढ़। राजस्थान में तो 30 से 40 सीट आ रही हैं।

जीतना मुश्किल है। राहुल वही सच मान बैठ और उन्होंने राजस्थान पहले ही हारा हुआ मान लिया था। जबकि आलाकमान ठीक ढंग से राजस्थान की आपसी लड़ाई को सख्ती से निपटा तो राजस्थान तो जीतते, शायद आज कांग्रेस की राजनीति कुछ ओर होती।

लेकिन राहुल गांधी और उनकी टीम खामियों को दूर कर संगठन को मजबूत करने के बजाए अपने को बचाने में लगे रहते है। इन्हीं कर्ताधर्ताओं ने लोकसभा में 99 सीट जीत कर इस बात का विश्लेषण ही नहीं करने दिया कि आखिर बीजेपी से सीधी लड़ाई में उन्हें सफलता क्यों नहीं मिल रही है।

कांग्रेस के कर्ताधर्ताओं ने संगठन बनाने और हिन्दी बेल्ट में हार की खामियां ढूंढने के बजाए राहुल गांधी से बड़ी जीत की तरह व्यवहार कराने लगे। राहुल को भी लगा अब बीजेपी नहीं जीतेगी। कांग्रेस को बिना संगठन और कार्यकर्ताओं के अपने आप वोट मिलेंगे। सो वो ज्यादा ताकत से प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर हो गए। हरियाणा को ही लें।

भाजपा ने लोकसभा में हारी सीटों पर मंथन किया

पांच सीट जो हारी उनका मंथन ही नहीं किया। मंथन करते तो पता चलता बीजेपी की गलतियों और उनकी गलत रणनीति की वजह से कांग्रेस जीती थी। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव की गलतियों में सुधार करते हुए पहले संघ को भरोसे में लिया। फिर वोटरों को चुपचाप अपने तरीके से साधा। बीजेपी ने बूथ तक कार्यकर्ताओं को रिचार्ज किया। कांग्रेस की गलतियों को ठीक ढंग से भुनाया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे राजस्थान में राजेश पायलट का जिक्र कर सचिन पायलट की जातियों के वोटरों को अपनी तरफ मोड़ा उसी तरह सैलजा की नाराजगी का फायदा उठा दलित वोटरों को ठीक ठाक संदेश दे दिया। कांग्रेस जीत सुनिश्चित मान वोटिंग के दिन की इंतजारी करने लगी।

हरियाणा में कांग्रेस के कार्यकर्ता नेता को समर्पित हैं, पार्टी को नहीं

कोई बूथ प्रबंधन नहीं, वोटर घर से निकल रहा है या नहीं कोई देखने वाला नहीं था। ये समस्या राजस्थान में भी थी। हरियाणा में गुटबाजी के चलते दूसरे गुट के कार्यकर्ता हराने में लग गए। जबकि बीजेपी में संघ पूरी गतिविधियों पर नजर रख कार्यकर्ताओं को साधे हुए थे।

बीजेपी समर्थक एक-एक वोटर को घर से बाहर निकाल बूथ तक पहुंचाए। लोकसभा वाली गलती बीजेपी ने नहीं की। कांग्रेस में ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं थी। क्योंकि कांग्रेस में न संगठन है और ना ही समर्पित कार्यकर्ता। जो कार्यकर्ता हैं वो कांग्रेस से नहीं बल्कि नेता से जुड़े होते हैं।

हरियाणा कांग्रेस की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। अशोक तंवर कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए पूरे पांच साल तक अपनी टीम नहीं बना पाए थे। यहां तक की टिकट बंटवारे में भी उनको नहीं पूछा गया। आलाकमान ने उनकी सुनी ही नहीं। थक हार तंवर ने कांग्रेस छोड़ दी।

इसके बाद वरिष्ठ नेता सैलजा को अध्यक्ष तो बना दिया लेकिन वह भी चार साल तक कुछ कर ही नहीं पाई। आलाकमान ने लोकसभा चुनाव करीब आने पर सैलजा को बदल पहली बड़ी गलती की। उसके बाद मध्यप्रदेश की तरह हुड्डा पर सब कुछ छोड़ दिया। एक तरह पूरा चुनाव हुड्डा परिवार पर केंद्रित हो गया।

गांधी परिवार की मजबूरी यह है कि उन्हें जो जैसा समझाता है वह वैसे ही करते हैं। आर्थिक मजबूरी की वजह से करते हैं या कोई ओर बात है कहना मुश्किल है। हरियाणा की हार कांग्रेस को फिर वहीं ले आई जहां 6 महीने पहले थी। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की पार्टी आंख दिखाने लगी है तो यूपी में सपा अलग होने की बात करने लगी है। राहुल गांधी के लिए मुश्किलों का पहाड़ फिर खड़ा हो गया है।

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