Congress bundar majority found in association with RSS!: कांग्रेस को आरएसएस के सहयोग से मिला बंपर बहुमत!

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अंबाला। भारत में 1984 का लोकसभा चुनाव अब तक सबसे बड़ा दिलचस्प चुनाव रहा है। इस चुनाव में कांग्रेस को कुल 523 सीटों में से 415 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन, कांग्रेस को ये जीत अकेले अपने दम पर नहीं मिली थी। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का सहयोग भी था। यह दावा किया था राशीद किदवई ने। उन्होंने अपनी किताब ’24 अकबर रोड: ए शॉर्ट हिस्ट्री आॅफ द पीपुल बिहाइंट द फॉल एंड द राइज आॅफ द कांग्रेस’ में भारत की राजनीति की ऐसे राजों को उजागर किया गया, जो शायद ही इसके पहले किसी किताब में किया गया हो। इस किताब में ‘द बिग ट्री एंड द सैपलिंग’ नाम से तीसरा चैप्टर है। इसमें किदवई इसकी शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से करते हैं.
उन्होंने लिखा कि इंदिरा गांधी की हत्या की खबर पाकर जैसे ही राजीव गांधी दिल्ली पहुंचे, पीसी एलेक्जेंडर (इंदिरा के प्रमुख सचिव) और अन्य करीबियों ने उन्हें बताया कि कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी चाहती है कि वे प्रधानमंत्री बने।
एलेक्जेंडर ने कहा कि राजीव को सोनिया से अलग रखने के निर्देश भी हैं। सोनिया ने राजीव से कहा कि वो ऐसा न करें, लेकिन राजीव गांधी को लगा कि ऐसा करना उनका कर्तव्य है।
किदवई ने किताब में दावा किया कि 25 दिनों के चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी ने कार, हेलिकॉप्टर और एयरोप्लेन से करीब 50 हजार किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा की।
अपनी मां की हत्या से सहानुभूति की लहर के बीच राजीव गांधी जहां तक संभव हो सके हिंदुत्व ब्रांड की राजनीति को खंगालना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहेब देवरास के साथ मीटिंग करने का फैसला लिया।
किदवई के मुताबिक राजीव गांधी और बालासाहेब देवरस के बीच एक सिक्रेट मीटिंग हुई। जिसके नतीजे के रूप में आरएसएस कैडर ने राजनीतिक परिदृश्य में बीजेपी की मौजूदगी के बावजूद 1984 के चुनाव में कांग्रेस को समर्थन दिया।
हालांकि, बीजेपी ने आरएसएस और कांग्रेस के पीएम उम्मीदवार राजीव गांधी के बीच हुए किसी भी तरह के गठबंधन की बात को खारिज कर दिया था।
तीसरे चैप्टर के आखिर में किदवई लिखते हैं, ‘सहानुभूति की लहर राजीव के पक्ष में गई… 523 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 415 सीटों पर जीत हासिल हुई। इंदिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू भी ये आंकड़ा पाने में नाकाम रहे थे।

पूर्व कांग्रेस नेता ने किया था दावा
किताब के प्रकाशन के बाद कांग्रेस के पूर्व नेता बनवारीलाल पुरोहित (जो तब नागपुर से लोकसभा सांसद थे) का दावा किया कि आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहेब देवरास और राजीव गांधी के बीच मीटिंग कराने में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। साल 2007 में इसका खुलासा करते हुए पुरोहित ने कहा था कि चूंकि मैं नागपुर का हूं। इसलिए राजीव ने पूछा कि क्या मैं तत्कालीन आरएसएस चीफ बालासाहेब देवरास को जानता हूं? मैंने कहा- हां बिल्कुल। मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. राजीव ने मेरी राय जाननी चाही कि अगर आरएसएस को राम जन्मभूमि के शिलान्यास की इजाजत दे दी जाती है, तो क्या वह कांग्रेस को समर्थन देगा?’ किताब में किदवई ने दावा किया कि चुनावों के दौरान गैर-बीजेपी पार्टी को समर्थन देने को लेकर आरएसएस का कोई विरोध नहीं था।