Aaj Samaj (आज समाज), CJI DY Chandrachud, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाद (सेम सेक्स मैरिज) को मान्यता देने वाली 20 याचिकाओं पर बुधवार को भी सुनवाई हुई। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की संवैधानिक पीठ मामले की सुनवाई कर रही है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने एडॉप्शन नियमों पर बहस की
राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग ने एडॉप्शन नियमों पर बहस करते हुए अदालत के सामने बच्चों का मुद्दा रखा। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा, जन्म लेना और बायोलॉजिकल पेरेंट्स द्वारा परवरिश एक बच्चे का अधिकार है। सभी बच्चों का जन्म महिला-पुरुष कपल के द्वारा ही हुआ है। यह एक बच्चे का सबसे बड़ा अधिकार है, इसलिए अभी हमारे कानून में बच्चा गोद लेने का अधिकार उन्हीं कपल्स को है, जो महिला और पुरुष हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस पर कहा, कानून कहता है कि कई वजहों से बच्चा गोद लिया जा सकता है। आप तब भी बच्चा गोद ले सकते हैं, जब आप बायोलॉजिकल बर्थ के योग्य हों। बायोलॉजिकल बच्चे होना कोई बाध्यता नहीं है।
अगर किसी बच्चे की मां गुजर जाती है तो पिता मां और बाप दोनों की जिम्मेदारी निभाता है। मेरा सवाल है कि अगर लोग लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, तो क्या उस व्यक्ति से गोद लेने का अधिकार छीन लिया जाए? एश्वर्य भाटी ने कहा, बच्चे को मां और बाप दोनों की जरूरत होती है। इस मामले में महिला-पुरुष कपल और सेम सेक्स कपल को अलग-अलग तरीके से ट्रीट करना सही है। बच्चे का जन्म एक आदर्श स्थिति है और गोद लेने की व्यवस्था उन महिला-पुरुष कपल के लिए है, जिनके पास यह आॅप्शन नहीं है।
सीजेआई ने कहा, एक लिव इन कपल भले एक जोड़े के रूप में बच्चा गोद नहीं ले सकता है लेकिन गोद लेने का व्यक्तिगत अधिकार वैवाहिक स्थिति से प्रभावित नहीं होता है। अगर कोई कपल बच्चा गोद लेना चाहता है तो कानून कहता है कि आप अपोजिट जेंडर वाले कपल हैं तभी बच्चा गोद ले सकते हैं, लेकिन सिंगल पर्सन भी बच्चा गोद ले सकता है। इस अधिकार पर इस बात का प्रभाव नहीं पड़ता है कि वह व्यक्ति हेट्रो सेक्शुअल है या फिर सेम-सेक्स पर्सन है। सेंटर8 एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी का स्टेटमेंट यही कहता है।
राजस्थान समलैंगिक विवाह के विरोध में
सेम सेक्स मैरिज मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें दी। उन्होंने बताया कि सभी राज्यों को पत्र लिखे गए थे और उनमें से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मणिपुर, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, असम और सिक्किम से जवाब मिले हैं। राजस्थान इसके विरोध में है, वहीं अन्य राज्यों का कहना है कि इस पर बहस की जरूरत है।
मंगलवार को मामले में 8वें दिन सुनवाई
मंगलवार को मामले में 8वें दिन सुनवाई के दौरान जस्टिस रवींद्र ने कहा था कि भारत का संविधान लकीर के फकीर विचार के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि संविधान ने जाति व्यवस्था तोड़ी, छुआछूत जैसी चीजों को खत्म किया। दुनिया के किसी भी संविधान ने ऐसा नहीं किया। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि तो क्या यह कहना सही नहीं है कि संविधान के तहत शादी करने का अधिकार नहीं है। यह कहना बहुत दूर की बात होगी कि शादी करने का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं है।
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