एजेंसी, प्रयागराज। चिन्मयानंद केस में पीड़ित लड़की को राहत नहीं मिली। उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चिन्मयानंद यौन उत्पीड़न मामले में अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की अर्जी दाखिल की थी जिसमें राहत देने से कोर्ट ने इनकार कर दिया। हाईकोर्ट द्वारा इस मामले का स्वत: संज्ञान लिए जाने के बाद न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। कोर्ट ने पीड़ित छात्रा की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि पीठ इस मामले में केवल जांच की निगरानी करने के लिए नामित की गई है और गिरफ्तारी के मामले में रोक लगाने का कोई आदेश पारित करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पीड़िता कोई राहत चाहती है तो पुन: वह उचित पीठ के समक्ष नई याचिका दायर कर सकती है। अदालत ने कहा कि यह इस मामले की सुनवाई के समय पीड़ित छात्रा भी अदालत में मौजूद थी।
अदालत ने चिन्मयानंद मामले में एसआईटी की प्रगति रिपोर्ट पर संतोष जताया और आगे की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 22 अक्तूबर, 2019 की तारीख तय की। इस अदालत के समक्ष पीड़ित छात्रा ने दूसरी प्रार्थना यह की थी कि मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराया गया बयान ठीक नहीं था और उसे नया बयान दर्ज कराने की अनुमति दी जाए। लेकिन अदालत ने उसकी यह प्रार्थना भी स्वीकार नहीं की। अदालत का कहना था कि नए बयान के लिए आवेदन में संबंधित मजिस्ट्रेट के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया है और न ही पीड़ित छात्रा का नया बयान दर्ज कराने के लिए कोई प्रावधान दशार्या गया है। केवल यह आरोप लगाया गया है कि उसके बयान के प्रत्येक पेज पर उसके हस्ताक्षर नहीं लिए गए और केवल अंतिम पेज पर हस्ताक्षर लिए गये और उसका बयान दर्ज किए जाते समय एक महिला मौजूद थी। इस पर अदालत ने कहा कि उस महिला द्वारा किसी तरह का हस्तक्षेप किए जाने संबंधी आरोप न होने से ऐसा लगता है कि चैंबर में महिला की मौजूदगी केवल इसलिए थी ताकि पीड़ित छात्रा अपना बयान दर्ज कराने के दौरान सहज और सुरक्षित महसूस कर सके। इससे पूर्व एसआईटी ने अदालत के समक्ष एक सीलबंद लिफाफे में जांच की प्रगति रिपोर्ट और केस डायरी पेश की। इस प्रगति रिपोर्ट का सारांश देखने के बाद अदालत ने पाया कि एसआईटी की जांच सही ढंग से चल रही है और पीड़ित छात्रा ने अपने आवेदन में एसआईटी द्वारा जांच में किसी तरह की अनियमितता का आरोप नहीं लगाया है। उल्लेखनीय है कि इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2 सितंबर, 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस मामले की जांच की निगरानी का निर्देश दिया था और साथ ही पीड़िता छात्रा के परिजनों की सुरक्षा को देखने को कहा था।