खैर, पीड़िता ने जब भी आवाज उठाई तो दुरुस्त उठाई। एक संन्यासी से इस तरह के आचरण की अपेक्षा समाज नहीं करता। संत समाज को भी इस पर गौर करना होगा कि संत समाज में इस तरह की गिरावट की वजह क्या है? विपक्ष का आरोप है कि सरकार के स्तर पर उन्नाव दुष्कर्म के आरोपी सुरेंद्र सिंह सेंगर की गिरफ्तारी में भी विलंब किया गया था। उस मामले में भी पीड़िता ने मुख्यमंत्री आवास पर आत्मदाह की कोशिश की थी और इस शाहजहांपुर मामले में भी पीड़िता को आत्मदाह की धमकी देने को मजबूर होना पड़ा, तब सरकार हरकत में आई। यह आरोप का एक पक्ष हो सकता है लेकिन योगी सरकार गिरफ्तारी के लिए फूलप्रूफ आधार तैयार करती है। सेंगर जेल से निकल नहीं पा रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि चिन्मयानंद के साथ भी ऐसा ही होगा।
मुमुक्षु आश्रम मतलब वह जगह जहां मुक्ति मिलती है। दिव्यधाम मतलब वह स्थान जो अलौकिक है। उसके जैसी पवित्र दूसरी कोई भी जगह नहीं है। चिन्मयानंद मतलब जिसका चित्त आनंदमय हो। पवित्र हो। सर्वथा विकार रहित हो। कुछ दिन पहले जब एक विधि छात्रा ने मुमुक्षु आश्रम के प्रमुख और कई शिक्षण संस्थानों के प्रबंधक स्वामी चिन्मयानंद पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था तभी इन तीनों नामों ने अहमियत खो दी थी। उनके औचित्य पर सवाल उठने लगा था। जिस जगह व्यभिचार हो। वासना हो वह जगह न तो दिव्यधाम हो सकती है और न ही मुमुक्षु आश्रम। संन्यासी को कंचन-कामिनी से परहेज के गुर बताए जाते हैं लेकिन यहां दोनों ही की उपस्थिति है जो उचित नहीं कही जा सकती।
धर्मग्रंथों में चार पदार्थों की बात कही गई है। ‘धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।’ इन चारों पदार्थों में धर्म का स्थान पहला है। अर्थ दूसरे पायदान पर आता है। काम की जगह तीसरी और मोक्ष अंतिम पदार्थ है। प्रथम तीन पदार्थों की प्राप्ति के बाद ही चौथे पदार्थ को पाने की परंपरा रही है। इसी तरह जीवन में गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम की व्यवस्था है। व्यक्ति चौथेपन में वन को जाता है। ‘चौथेपन नृप कानन जाहीं।’ इसके पीछे सोच यह है कि व्यक्ति गृहस्थ से होकर वानप्रस्थ और संन्यास के मार्ग पर प्रवृत्त होता है तो उसकी सांसारिक इच्छाएं विलुप्त हो चुकी होती हैं जबकि बचपन से ही संन्यास ग्रहण करने वालों के भटकने की संभावनाएं बनी रहती हैं। धन से धर्म होता है और धर्म से सुख होता है। ‘धनाद् धर्म: तत: सुखं।’ गोंडा के कृष्णपाल सिंह बचपन में ही साधु बन गए थे। उनके गुनाहों का देवता होने का राज भी यही है। प्रसिद्धि के पहाड़ पर चढ़ना आसान है लेकिन उस ऊंचाई पर खुद को बनाए रखना उतना ही कठिन है। जरा सा पैर डगमगाए तो सीधे जमीन पर ही गिरना है। चिन्मयानंद भी प्रसिद्धि के पहाड़ से सीधे अपकीर्ति की जमीन पर गिरे हैं। अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो चिन्मयानंद को निर्दोष मान रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि ‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करहिं सो तस फल चाखा।’ विधि छात्रा से दुष्कर्म के आरोप में स्वामी चिन्मयानंद जेल चले गए। जेल तो वे आठ साल पहले ही चले गए होते। उनकी पूर्व शिष्या चिदार्पिता ने भी उनके खिलाफ कुछ इसी तरह की शिकायत की थी लेकिन तब चिन्मयानंद अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय पहुंच गए थे और उन्हें वहां से राहत भी मिल गई थी लेकिन अपनी इस गलती से उन्होंने कुछ भी सबक नहीं सीखा और वैसा ही एक और धत्कर्म कर बैठे। जब उनके खिलाफ वीडियो वायरल हुआ। तब से लेकर गिरफ्तारी के दिन तक वे गिरफ्तारी से बचने के लिए खेल पर खेल करते रहे। इलाज के बहाने उन्होंने हरिद्वार भागने की कोशिश भी की थी लेकिन ऐन वक्त पर पहुंच एसआईटी ने उनका खेल बिगाड़ दिया है। बकौल एसआईटी, स्वामी चिन्मयानंद ने अपना अपराध स्वीकार भी लिया है और उसके लिए शर्मिंदगी भी जाहिर की है। उन्होंने तो कह दिया है कि मैं अपने कृत्य के लिए शर्मिदां हूं लेकिन साधु-समाज किससे कहे कि वह अपने साधु के आचरण से शर्मिदां है। आसाराम बापू और गुरमीत सिंह राम रहीम जैसे संतों के आचरण से साधु-समाज पहले से ही खुद को अपमानित महसूस कर रहा था लेकिन स्वामी चिन्मयानंद के जेल जाने के बाद संत समाज अंदर से खुद को अपमानित और शर्मिदां महसूस कर रहा है। स्वामी चिन्मयानंद ने तो आसाराम बापू को भी बचाने की कोशिश की थी। जब शाहजहांपुर की बेटी ने आसाराम बापू पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था तो उन्हें पॉस्को एक्ट से बचाने के लिए चिन्मयानंद ने अपने स्कूल से पीड़िता का सर्टिफिकेट जारी कराया था लेकिन पीड़िता के पिता ने वैध स्कूली सर्टिफिकेट पेश कर आसाराम बापू की मुश्किलें बढ़ा दी थीं।
इसके बाद भी चिन्मयानंद नहीं माने और उन्होंने अपने स्कूल की प्रधानाध्यापिका को बतौर गवाह जोधपुर की कोर्ट में पेश करवाया। अब हालात बदले हैं। वे खुद दुष्कर्म के आरोप में जेल चले गए हैं तो लोग यह कहने में भी गुरेज नहीं कर रहे हैं कि किसी दुष्कर्मी का साथ देने वाला भी दुष्कर्मी ही होता है। कर्म की निर्जरा नहीं होती। कर्मगति को टाला भी नहीं जा सकता। ‘करम गति टारे ते नाहीं टरी।’ कर्म व्यक्ति का पीछा करता है। सत्कर्म नाम, यश और सुख प्रदान करता है। इसके विपरीत दुष्कर्म दुख ही देता है। एसआईटी प्रमुख का कहना है कि चिन्मयानंद को पीड़ित विधि छात्रा ने 200 बार और अपने साथी को 4200 बार फोन किया है। यह बताता है कि चिन्मयानंद मैने कंट्रोल में जुटे थे। संभवत: 5 करोड़ में मामले की डील भी हो गई थी लेकिन उनके अपनों ने ही और कम में डील करा देने का आश्वासन देकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी। यहीं से बात बिगड़ गई। चिन्मयानंद ने पीड़िता और उसके साथी द्वारा की जा रही पांच करोड़ की ब्लैकमेलिंग का वीडियो जारी किया तो पीड़िता ने भी उनके नहले पर दहला रख दिया; नग्न मसाज कराता उनका वीडियो तो जारी किया। अपने और उनसे जुड़े 43 और वीडियो की पेनड्राइव भी एसआईटी के हवाले कर दी। नानुकर कर रहे चिन्मयानंद ने इसके बाद बीमारी का खेल खेला। तब पीड़िता ने आत्मदाह की धमकी दी। चिदार्पिता तो फिर भी मान गई थी लेकिन इसने लड़की ने तो उन्हें जेल भिजवाकर ही दम लिया। हालांकि बोलेरो में बैठाकर चिन्मयानंद को कोर्ट ले जाने से भी वह आहत है। उसका कहना है कि उसके साल चिन्मयानंद ने वर्षों तक दुष्कर्म किया है लेकिन पुलिस 376 सी का मुकदमा दर्ज कर चिन्मयानंद को राहत दे रही है। पीड़िता के इस साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए। शाहजहांपुर की बेटियों ने दो प्रसिद्ध संतों आसाराम और चिन्मयानंद को जेल भिजवाया है। विधि पीड़िता के मामले में पुलिस को यह भी देखना होगा कि एक हाथ से ताली नहीं बचती और यह संबंध तो वर्षों चला है। युवती ने मसाज भी किया है और उसका वीडियो भी बनाया है। पुलिस और एसआईटी को यह भी देखना होगा कि यह मामला ब्लैकमेलिंग या हनी ट्रैप का तो नहीं है और अगर इसकी पुष्टि भी होती है तो भी चिन्मयानंद के अपराध कम नहीं हो जाते। उन्होंने संत समाज के प्रति समाज की भावनाओं को आहत किया है। इस नाते वे बड़ी सजा के अधिकारी हैं। संभव है, उनके खिलाफ और भी कुछ शिकायतें आएं। कुछ और भी राज खुले। सत्प्रवृत्ति संबर्धन के लिहाज से भी जरूरी है कि इस मामले में नीर—क्षीर विवेक किया जाए और चिन्मयानंद को वह सजा दी जाए, जिसके वे अधिकारी हैं।
—एल-3/480,विनीत खंड,गोमतीनगर, लखनऊ।
सियाराम पांडेय ‘शांत’
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