बीजिंग। अमेरिका चीन के बीच तल्खी जग जाहिर है। पहले व्यापार समझौते को लेकर दोनों के बीच खींचतान जारी है। अब अमेरिका को चीन ने खरी-खरी सुना दी है। ताइवान को लेकर चीन ने अमेरिका को आडे हाथों लिया। चीन ने कहा है कि चीन उन अमेरिकी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाएगा जिनके साथ ताइवान ने सुरक्षा उपकरणों और हथियारों का सौदा किया है। चीन ने कहा कि वह किसी भी कीमत पर अपने देश की एकता और अखंडता को नुकसान नहीं पहुंचने देगा। अमेरिकी कंपनियों ने ताइवान के साथ 2.2 अरब डांलर के हथियारों का सौदा किया है जिसमें मिसाइल और टैंक भी शामिल हैं।
शुक्रवार को बुडपोस्ट की यात्रा के दौरान चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी ने वांशिगटन को धमकी देते हुए कहा कि अमेरिका को ताइवान के मुद्दे पर आग से नहीं खेलना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि कोई भी विदेशी ताकत चीन को नहीं तोड़ सकती और न ही उसकी अखंडता को नुकसान पहुंचा सकती है। इस मुद्दे पर किसी भी विदेशी सेना को बीच में नहीं आना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका को आग से नहीं खेलना चाहिए। अमेरिकी विदेश विभाग पेटागन ने सोमवार को कहा कि अमेरिकी राज्य विभाग ने ताइवान की उस अर्जी को मान लिया है जिसमें ताइवान ने हथियारों के सौदे को मंजुर करने की बात कही थी। इस सौदे में 108 जनरल डायनेमिक्स कॉर्प एम 1 ए 2 टी अब्राम टैंक और 250 स्टिंगर मिसाइल शामिल हैं।
वांशिगटन ने इस रक्षा सौदे के ऊपर कहा है कि अमेरिकी के इस कदम से क्षेत्र के बुनियादी सैन्य संतुलन में बदलाव नहीं होगा। चीन लगातार इस सौदे को रद्द करने की मांग कर रहा है। अमेरिका और चीन पिछले एक साल से ज्यादा समय से व्यारपारिक युद्द में उलझे पड़े हैं। अमेरिकी के इस कदम से दोनों देशों के बीच नया विवाद शुरू हो गया है।
ताइवान के राष्ट्रपति अमेरिका होते हुए 4 कैरेबियाई देशों की यात्रा में जाएंगे। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने अंतराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया है। अंतराष्ट्रीय संबंध बनाने के लिए जो मापदंड है उसका भी उल्लंघन हुआ है।
प्रवक्ता गेंग शुआंग ने अमेरिका पर आरोप लगाया है कि अमेरिका एक चाइना नीति के खिलाफ गया है। अमेरिका आधिकारिक तौर पर चीन को मानता है ना कि ताइवान या ताइपे को। उन्होंने आगे कहा कि चीन अपने राष्ट्रीय हितों के लिए और रक्षा के लिए अमेरिका की उन कंपनियों पर पाबंदी लगाएंगा जो ताइवान को रक्षा उपकरण सौपेंगे।
चीन की इस प्रक्रिया पर अभी तक अमेरिकी स्टेट विभाग का जवाब नहीं आया है। अमेरिकी कंपनियों ने भी जवाब नहीं दिया है। अभी तक यह भी साफ नहीं हुआ है कि ये सौदा अपने अंजाम तक कैसे पहुंचेगा। 1989 में चीन में हुए नरसंहार के बाद अमेरिका ने अपनी कंपनियों को चीन के साथ रक्षा सौदे के व्यवहार बनाने से रोक दिया था।
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