- विपरीत परिस्थितियों में बीस बीघा जमीं की जोत से बुलन्दियो तक पहुंचाया परिवार को
महज दो वर्ष की आयु में चौधरी महेंद्र सिंह अहलावत जी के सिर से पिता रामचरण अहलावत का साया उठ गया था। उनका पालन पोषण बेहद विकट परिस्थितियों में हुआ। कुछ समय पश्चात चौधरी महेंद्र सिंह जी की माता श्रीमती जमना अहलावत जी एक रोग के चलते नेत्रहीन हो गई। जैसे तैसे उनकी बुआ ने उनका पालन पोषण कर बड़ा किया था। परिवार की जिम्मेदारी जल्दी ही कंधों पर आने की वजह से भले वह अच्छी शिक्षा हासिल नहीं कर सके। बचपन में ही उनके हाथों में खेत का हल संभालने की नौबत आई और वह दिन रात जुटे रहे। कड़ी मेहनत का परिणाम था कि उन्होंने विरासत में मिली महज 20 बीघे जमीन को 125 बीघे तक पहुंचाया और अपनी दो बेटियों और तीन बेटों को सुशिक्षित बनाया।
इन्हीं में उनके पुत्र जितेंद्र सर। जितेंद्र सर आप सब जानते हैं कि एक संस्थान में शिक्षक से जेनिसिस के सफर तक कैसे पहुंचे और कितने ही बच्चों को उस मंजिल तक पहुंचाया,जहां तक पहुंचने का सपना हर बच्चे और उनके परिवार का होता है। सही अर्थों में यह सब संभव हुआ चौधरी महेंद्र सिंह जी की बदौलत,जिन्होंने अपने बच्चों को यह सबक सिखाया कि अपने सपनों के साथ दूसरों के सपनों को पूरा करने के लिए जीवन जीना अधिक महत्व रखता है। खेतों में हल चलाने वाले आम किसान से ट्रैक्टर और मर्सडीज तक के मालिक बने चौधरी महेंद्र सिंह के जीवन काल में यही विशेषता रही कि उनमें छोटे बड़े,अमीर गरीब और जाति सामुदाय का भेदभाव का अंश नहीं मिलता। यही कारण था कि उनकी अंतिम यात्रा में हिंदु-मुस्लिम,धार्मिक,सामाजिक,शैक्षणिक सहित अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि, गणमान्य लोग एवं राजनेता शामिल हुए।