मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्
हमारे देश में तीज त्योहार तथा बहुत से पर्व, धार्मिक अनुष्ठान आदि पंचांग एचं ज्योतिषीय गणना के अनुसार मनाए जाते हैं। परंतु कई बार हम लकीर के फकीर बनकर देश काल एवं परिस्थिति अनुसार उसे व्यावाहारिक नहीं बनाते तथा हजारों वर्षोंं की मान्यताओं से चिपके रहते हैं। कुछ ऐसी ही धारणा एवं मान्यताएं 20 जुलाई से 14 नवंबर के मध्य चलने वाले चतुर्मास या चौमासा अर्थात चार मास की अवधि का है जिसमें कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, गृहप्रवेश, व्यवसाय आरंभ करना आदि वर्जित माने जाते हैं।
देवताओं का यह शयनकाल देवशयनी 20 जुलाई, 2021 से 14 नवंबर, देव प्रबोधिनी एकादशी तक 4 मास चलेगा जिसके अंतर्गत शुभ कार्य वर्जित कहे गए हैं परंतु आधुनिक युग में ऐसा संभव नहीं है। इस मध्य ज्योतिष के अनुसार हर प्रकार के पर्व आएंगे और मनाए जाएंगे। मंगल कार्य सतयुग या अन्य युगों में चौमासा के समय वर्जित होंगे परंतु क्या कलयुग में चार महीने काम रोके जा सकते हैं? अत: धार्मिक कृत्य देश, काल, समय एवं पात्र के अनुसार परिवर्तित करके सुगम बनाए जाने की आवश्यकता है,ऐसा मेरा व्यक्तिगत मत है क्योंकि पौराणिक काल में धार्मिक कार्यों को करने के अलावा कोई विशेष कार्य नहीं होता था परंतु आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। कोराना काल ने वैसे ही दो साल से विवाह आदि पर ग्रहण लगा रखा है।
चौमासा एक धार्मिक आस्था, विश्वास एवं परंपरा का द्योतक है। वास्तव में इन दिनों बाढ़ आने, पानी दूषित होना, रास्ते बंद होने, बीमारियां फैलने, जंगल में जहरीले कीड़े मकौड़े पैदा होने,वायरस फेैलने आदि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। बदलते मौसम में शरीर में रोगों का मुकाबला करने अर्थात प्रतिशोधक क्षमता क्षीण् ळो जाती है। इन कारणों से पुरातन काल में, यात्रा करना या मंगल आयोजन करना जन हिताय में बंद कर दिया गया ािा ठीक वैसे ही जैसे आधुनिक समय में समाज के लिए, कोरोना काल में कुछ नियम बनाए गए हैं। यदि आपने रामायण धारावाहिक ध्यान से देखा हो तो उसमें भगवान राम चिंता व्यक्त करते हैं- चौमासा भी बीत चुका है, अब हमें लंका की ओर प्रस्थान कर देना चाहिए। चतुर्मास की अवधारणा आदिकाल से चली आ रही है। उन दिनों सड़क मार्ग, रास्तों में ठहरने आदि की व्यवस्थाए नहीं थी। विवाह तथा अन्य शुभ कार्य खुले आकाश के नीचे ही होते थे। कोविड कालखंड -2020 से 2023 तक की एक अलग व्यवस्था को छोड़ कर, आज आप वर्षा ऋतु में कहीं भी जा सकते हैं, विवाह आदि बंद हालों में कर सकते हैं। पंचांग के अनुसार जुलाई से लेकर नवंबर तक कई त्योहार आएंगे और मनाए जाएंगे, विवाहों के भी बहुत मुुहूर्त हैं। हमारे पौराणिक ग्रन्थों में चतुर्मास के विषय में क्या कहा गया है, यह जानना भी आवश्यक है।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे पद्मा एकादशी भी कहते हैं। देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है। इस वर्ष देवशनी एकादशी 20 जुलाई 2021 के दिन मनाई जानी है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ भी माना गया है।देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा के नाम से भी जाना जाता है। हरिशयनी एकादशी, देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, पद्मनाभा एकादशी सभी उपवासों में देवशयनी एकादशी व्रत श्रेष्ठतम कहा गया है। इस व्रत को करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होतीहैं, तथा सभी पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना करने का महतव होता है क्योंकि इसी रात्रि से भगवान का शयन काल आरंभ हो जाता है जिसे चातुर्मास या चौमासा का प्रारंभ भी कहते हैं। इस दिन से गृहस्थ लोगों के लिए चातुर्मास नियम प्रारंभ हो जाते हैं।
देवशयनी एकादशी नाम से ही स्पष्ट है कि इस दिन श्रीहरि शयन करने चले जाते हैं। इस अवधि में श्रीहरि पाताल के राजा बलि के यहां चार मास निवास करते हैं। चातुर्मास असल में संन्यासियों द्वारा समाज को मार्गदर्शन करने का समय है। आम आदमी इन चार महीनों में अगर केवल सत्य ही बोले तो भी उसे अपने अंदर आध्यात्मिक प्रकाश नजर आएगा। इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, नवीन गृहप्रवेश आदि नहीं किया जाता है। ऐसा क्यों? तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। वास्तव में यह वे दिन होते हैं जब चारों तरफ नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ने लगता है और शुभ शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं ऐसे में जरूरी होता है कि देव पूजन द्वारा शुभ शक्तियों को जाग्रत रखा जाए। देवप्रबोधिनी एकादशी से देवता के उठने के साथ ही शुभ शक्तियां प्रभावी हो जाती हैं और नकारात्मक शक्तियां क्षीण होने लगती हैं।
चातुर्मास कब से शुरू होगा?
पंचांग के अनुसार 20 जुलाई, मंगलवार को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास शुरू होगा। इस एकादशी से भगवान विष्णु विश्राम की अवस्था में आ जाते हैं। 14 नवंबर 2021 को देवोत्थान एकादशी पर विष्णु भगवान शयन काल आरंभ होता है। मान्यता है कि चातुर्मास में शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।