Charkhi Dadri News : अष्टांग योग का उद्देश्य सही कार्यों, ध्यान, अनुशासन और व्यायाम से व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा को उसकी बाहरी दुनियां की ऊर्जा के साथ जोडऩा है: स्वामी सच्चिदानंद

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The purpose of Ashtanga Yoga is to connect the inner energy of the individual with the energy of the outer world through right actions, meditation, discipline and exercise Swami Satchidananda
बच्चों को योग करवाते स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती।

(Charkhi Dadri News) चरखी दादरी। अष्टांग योग का उद्देश्य सही कार्यों, ध्यान, अनुशासन और व्यायाम की मदद से व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा को उसकी बाहरी दुनियां की ऊर्जा के साथ जोडऩा है। यह बात आर्यवीर दल के जिला संचालक स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती ने व्यायाम शिक्षक नारायण आर्य एवं योग सहायक योगेश सांगवान के प्रशिक्षण में बिलावल गांव में आर्यवीर दल के तत्वावधान में चल रहे व्यायाम प्रशिक्षण एवं चरित्र निर्माण संस्कार शिविर में अष्टांग योग के चौथे अंग प्राणायाम का अभ्यास कराते हुए कही।

अष्टांग योग का प्रथम अंग यम, नैतिक रूप से सही काम करने के लिए नैतिक नियमों या मूल्यों को संदर्भित करता है

इसके साथ ही उन्होंने अष्टांग योग के आठों अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि को विस्तारपूर्वक समझाया।उन्होंने कहा कि यह शरीर आत्मा का मन्दिर और परमात्मा का निवास- स्थल है, अत: इसे गन्दा मत करो। उन्होंने अष्टांग योग की व्याख्या करते हुए कहा कि अष्टांग योग का प्रथम अंग यम, नैतिक रूप से सही काम करने के लिए नैतिक नियमों या मूल्यों को संदर्भित करता है।

नियमों का पालन करने से व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है

इन नियमों का पालन करने से व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (पवित्रता/पवित्रता), अपरिग्रह (लोभ न रखना या धन के प्रति अत्यधिक इच्छा या लालच न रखना)। ये पांच यम हैं। नियम, अष्टांग योग का यह दूसरा घटक लोगों के मन और शरीर को शुद्ध करने के लिए विशिष्ट आदतों को संदर्भित करता है।

शौच (शरीर, मन और वाणी को शुद्ध करने की आदतें), संतोष (संतोष, धैर्य और दूसरों के प्रति सहिष्णुता या स्वीकृति), तपस (अपनी भावनाओं और कार्यों को नियंत्रित करने और सही दिशा में ले जाने के लिए दृढ़ता और आत्म-अनुशासन), स्वाध्याय (आत्म जागरूकता), ईश्वरप्रणिधान (अपरिवर्तनीय वास्तविकता या उस ईश्वर को जानना और उसका चिंतन करना जिस पर आप विश्वास करते हैं।

तीसरा अंग आसन, ध्यान के लिए सुखपूर्वक बैठने को जाने वाली मुद्राओं को कहते हैं। चौथे अंग प्राणायाम से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा अपनी सांस लेने की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखने से है। पांचवां अंग प्रत्याहार, बाह्य वातावरण पर आधारित संवेदी अनुभवों के प्रभावों को कम करने तथा स्वयं के मन का आत्मनिरीक्षण करने की प्रक्रिया है। एक बार जब कोई व्यक्ति प्रत्याहार के माध्यम से संवेदी अनुभव को नियंत्रित कर लेता है, तो वह आत्मनिरीक्षण करने और धारणा के माध्यम से अपने मन को केंद्रित रखने के लिए ध्यान केंद्रित कर सकता है।

अष्टांग योग का यह अंग व्यक्ति को अचेतन और अमूर्त विचारों को नियंत्रित करने और सचेत विचारों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है। छठे अंग धारणा, के माध्यम से मन को शांत करने के बाद, व्यक्ति आठवें अंग ध्यान के माध्यम से किसी विशेष विचार या वस्तु पर ध्यान केंद्रित कर उसके बारे में सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है और अंतिम समाधि वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति स्वयं को उस विचार या वस्तु की जागरूकता से मुक्त कर लेता है

जिस पर वह ध्यान कर रहा था। वह स्वेच्छा से विचारों और वस्तुओं से संबंधित इच्छाओं से विरक्ति के माध्यम से स्वयं को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त कर सकता है। इस अवसर पर शिविर संयोजक ग्राम सरपंच अनिल सांगवान, विद्यालय प्रधानाध्यापक प्रेम सिंह, विज्ञान अध्यापक प्रदीप कुमार, मनोज कुमार, नरेश कुमार, रविंद्र, मांगेराम, धर्मेंद्र एवं अध्यापिका दीपिका, रेखा, सुनीता एवं ऋषि, संजू, सुमित, रौनक, साहिल, शौर्य, स्नेहा, रेनू, भावना, दीपिका आदि की उपस्थिति रही।

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