Charkhi Dadri News : काले पानी के नाम से मशहूर है बाढड़ा का पुराना थाना, आज पहचान को महरुम

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The old police station of Badhra is famous by the name of black water, today it is devoid of identity.
बाढड़ा किले की मौजूदा हालात बयां करती तस्वीरें।

(Charkhi Dadri News) बाढड़ा। देश में भले ही लोकतांत्रिक प्रणाली ने अपने पैर पसार लिए हैं लेकिन इतिहास में आज भी ऐसे अनेक स्तंभ शेष बचे हुए हैं जो सौ वर्षाे पूर्व घटित अनेक घटनाओं के मूक गवाह बन कर रजवाड़ों के अत्याचार को यादगार बनाए हुए हैं। इसका प्रमुख उदाहरण बाढड़ा का वह पुराना थाना है जिसको जींद रियासत में काले पानी के नाम से जाना जाता था जिसमें जींद रियासत के हुकूम के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को अकाल काल की बलि चढ़ा दिया जाता था। आज भले ही रजवाड़ों की सियासत खत्म हो गई लेकिन इस पुराने थाने के भवन की दिवारें आज भी इतिहास के अनेक राज समेटे हुए हैं।

भारतवर्ष में दिल्ली व मुंबई जैसे बड़े व्यापारिक केन्द्रों को छोड़ कर ग्रामीण आंचल से अंग्रेजीराज की सत्ता का दुर्ग ढहते ही बड़े-बड़े शहरों में आजादी की लौ जलने लगी लेकिन दुरवर्ती व पिछड़े क्षेत्रों में राज परिवारों को सत्ता की चाबी दे दी गई। इन राजाओं की तानाशाही का आलम यह था कि वे मनमर्जी के लगान वसूल करते तथा मना करने पर किसान मजदूर व गरीब जनता से मनमाना व्यवहार कर उनको प्रताडि़त किया करते थे।

जींद रियासत के अंतिम राजा ने दक्षिणी हरियाणा में लगान वसूली व रियासत के कामकाज को सही ढंग से चलाने के लिए चरखी दादरी को अस्थाई जिले के रूप में प्रयोग किया। उस समय लगान न देने वाले को सबसे बड़ा दोषी माना जाता था तथा किसी भी तरह से लगान वसूल करना राज घराने जुड़े लोग अपना हक समझते थे। उसी दौरान इन रेतीली मिट्टी बाहुल्य क्षेत्रों के गांवों में चोरी व छिनाझपटी की घटनाओं को रोकने के लिए पंजाब क्षेत्र के महेन्द्रगढ़ जिले के बाढड़ा गांव के सबसे ऊपरी रेतीले टिले पर एक बड़े किले का निर्माण करवाया गया जिसमें सैनिकों की पूरी बटालियन तैयार रहती थी लेकिन चंद दिनों बाद ही इसको अस्थाई जेलखाने में तब्दील कर दिया।

जींद रियासत से जुड़े वर्तमान के लगभग आठ जिलों के सजायफ्ता कैदियों को इस किले में लाकर घोर यातनाएं दी जाती थी तथा बुजुर्ग आज भी उन दिनों को याद कर कांप जाते हैं जब मात्र दस दिन में कैदी के शव को ही बाहर निकाल कर उसका दाह संस्कार किया जाता था। बताया जाता है कि हिसार, भिवानी, चरखी दादरी, कोसली, जींद, सोनीपत सहित लगभग पच्चास फिसदी हरियाणा के किसी भी प्रकार के दोषी को जब सजा देकर इस किले में भेजा जाता था तो वह कालेपानी के नाम से मशहूर इस ऐतिहासिक किले के नाम से ही कांप जाता था।

इस किले में बनी छोटी-छोटी कोठियां आज भी घोर यातनाओं की गवाह हैं। बुजर्गो ने बताया कि इस किले में आने वाले कैदी को नाममात्र के खाने में नमक खिलाया जाता था तथा पानी के लिए भी उसको घंटों इंतजार करना पड़ता था। कई कैदियों को छोटी कोठियों में बंद कर दिया जाता जहां वे आराम से बैठ नहीं पाते और सुर्यदेव के दर्शन के सपने लेकर चंद दिनों में या तो वे दम तोड़ जाते या फिर विकलांगता के शिकार बन जाते रहे हैं। रेतीले टिल्ले पर बने इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में ग्रामीणों की सदैव यह मान्यता रही कि यहां पर कभी भी उनका अहित नहीं हुआ भले ही अन्य स्थानों से लाने वाले सैकड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा हो।

सरदार वल्ल्भभाई पटेल भी मानते थे किले का लोहा

प्रदेश के दक्षिणी छोर के लोगों पर जब जींद रियासत के जुल्म ज्यादा बढऩे लगे तो पंचगावां निवासी महाशय मंसाराम, महताब सिंह त्यागी, पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बनारसीदास गुप्त सहित दो दर्जन महापुरुषों का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली जाकर आजाद भारत के गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल से मिला तथा अपना दुखड़ा सुनाया। गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल को जब पता चला कि इन लोगों को आज भी आजादी का स्वाद नहीं मिल रहा तो उन्होंने उनमें स्वतंत्रता की चेतना जगाते हुए कहा कि जुल्म करन वाले से ज्यादा दोषी सहने वाला होता है इसीलिए मुठ्ठीभर लोगों को सत्ता से बेदखल कर स्वयं का राज स्थापित करो दिल्ली से तुमको पूरी सहायता मिलेगी।

उन्होंने कहा कि बाढड़ा जैसे क्रांतिकारी क्षेत्र के लोग भी अब तक आजादी नहीं ले पाए तो यह बड़ी शर्म की बात होगी। दिल्ली से मदद का आश्वासन मिलते ही जींद के नवाब के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करते इस प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों की अगुवाई में प्रदेश के पच्चीस हजार लोगों की भारी भीड़ ने चरखी दादरी के प्रशासनिक किले पर कब्जा कर महताब सिंह डालावास को अपना स्वयं का राजा चुन लिया। कई दिनों तक जींद रियासत के खिलाफ शासन कर उन्होंने रिकार्ड तो बनाया ही वहीं बाढडा के इस किले से कालेपानी के नाम से मशहूरी हटा कर यहां पर पुलिस थाने का कामकाज शुरु किया जिसको बाद में नए बने राज्य में मान्यता मिल तथा यह पुलिस स्टेशन 1998 तक प्रयोग हुआ तथा उसके बाद नए भवन में स्थानांतरित किया गया।

किले से थाने का कामकाज बदलते ही इसकी उपेक्षा का जो दौर शुरु हुआ वह आज भी बदस्तूर जारी है। लगभग चार एकड़ में बने इस किले की वर्तमान हालात बहुत ही दयनीय स्थिति में है लेकिन इतिहास के गौरव को समेटने वाले इस किले को अब भी यह आश है कि बदलते दौर में शायद प्रशासन की नजर इस पर पड़ जाए और इसका भी उत्थान हो जाए। देश के बदलते राजनैतिक माहौल का गवाह बने इस किले को अनेक बार स्मारक स्थल बनाने की मांग क्षेत्र के सामाजिक संगठन कर चुके हैं लेकिन सरकारी उदासीनता से अब तक यह मांग शायद ही प्रशासन तक पहुंच पाई हो।

पुराने थाने को ऐतिहासिक स्थल घोषित करने के पक्ष में उतरे सामाजिक संगठन

कभी लोगों के जीवन के फैसलें तय करने वाला बाढड़ा का पुराना किला आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। कालेपानी के नाम से मशहूर इस किले की अधिकतर दिवारें लगभग टूट चुकी हैं वही मुख्यद्वार की हालात और ज्यादा खस्ता है। इस किले में अनेक उतार चढ़ाव देख चुके पेड़ों पर भी अवैध कटाई करने वाले लोगों की पजरें टिक चुकी हैं जिससे अधिकतर पेड़ काट लिए गए हैं।

कस्बे के प्रमुख सामाजिक संगठन श्योराण खाप 25 के अध्यक्ष बिजेन्द्र सिंह बेरला, जिला पार्षद अनिल बाढड़ा, केन्द्रिय सहकारी बैंक भिवानी के चेयरमैन सुधीर चांदवास, पंचायत समिति चेयरमैन आनंद फौजी, पूर्व चेयरमैन भल्लेराम बाढड़ा, नगर परिषद के पूर्व चेयरमैन विजय पंचगावां, बाढड़ा के सरपंच राकेश श्योराण, सहनान कन्नी अध्यक्ष जगत सिंह बाढड़ा, राजेन्द्र सिंह हुई, एडवोकेट रतन सिंह डांडमा, व्यापार मंडल अध्यक्ष सुंदरपाल बाढड़ा, उपाध्यक्ष सेठ मनोज अग्रवाल, कन्या गुरुकुल कोषाध्यक्ष पूर्व सरपंच ओमप्रकाश पंचगावां, मा. बजरंग सिंटी श्योराण, ब्रहपाल बाढड़ा, धर्मसेना पूर्व सरपंच सुरेश धनासरी, महेन्द्र शर्मा बाढड़ा इत्यादि ने कहा कि बाढड़ा का पुराना किला एक ऐतिहासिक धरोहर है तथा प्रदेश सरकार को इसके जीर्ण-शीर्ण हालात पर गौर करते हुए इसे जीर्णोद्यार पर ध्यान देना चाहिए। सरकारीतंत्र अगर योजना के तहत कार्य करे तो इसको दोबारा पर्यटनस् थल का रुप दिया जा सकता है।