Charkhi Dadri News : 50 साल से एक भी विधायक को नहीं मिला मंत्रीपद, सीएम के नजदीकी रहने का भी कम ही लाभ मिला,

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Not a single MLA has got a ministerial post in last 50 years, there is little benefit of being close to the CM
मुख्य क्रांतिकारी चौक।
  • बाढड़ा को झंडी वाली कार मिलने पर लगा ग्रहण कब होगा खत्म!

(Charkhi Dadri News) बाढड़ा। प्रदेश में संपन्न हुए 15 वीं विधानसभा चुनाव शंातिप्रिय ढंग से संपन्न होने पर आमजन ने राहत की सांस ली है वहीं जिले के गठन के बाद पहली बार जिले की दोनों सीटें एक ही पार्टी को मिली हैं जिससे सरकार में भागीदारी तो बढी है। मौजूदा बाढड़ा विधानसभा सीट पर अब तक सत्तारुढ पार्टी के अनेक जनप्रतिनिधि तो चुनकर सरकार में पहुंचे लेकिन उनको झंडी वाली कार नसीब नहीं हो पाई है और आमजन अब भाजपा के संभावित मंत्रीमंडल गठन की तरफ टकटकी लगाकर देख रहे हैं। मौजूदा समय में पूर्व जेल अधिक्षक सुनील सतपाल सांगवान के अनुभव व साफ सुथरी कार्यशैली व बाढड़ा के विधायक उमेद पातुवास के किसान बाहुल्य सीट जीतने पर किसकी किस्मत चमकेगी इस पर संशय बना हुआ है।

बाढड़ा विधानसभा क्षेत्र 1968 के बाद आज तक मात्र मेजर अमीरसिंह के बाद किसी को मंत्रीमंडल में शामिल होने का भाग्य नहीं लग पाया है। प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे बाढड़ा विधानसभा क्षेत्र की जनता को परिवर्तन का सूचक माना जाता है। प्रदेश के गठन के बाद 1967 से वर्ष 2024 तक के राजनैतिक इतिहास पर नजर डाली जाए तो यहां की भूमि कांग्रेस के लिए बंजर ही साबित हुई है और यहां पर देवीलाल, बंसीलाल समर्थकों को ही ज्यादा जीत मिली है। इस सीट पर पेराशूट प्रत्याशी ज्यादा भाग्यशाली रहा है वहीं कोई भी विधायक दूसरी बार जीत दर्ज नहीं कर पाया है। भले ही मौजूदा समय में यहां पर जजपा प्रत्याशी नैना चौटाला विधायक है लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में 28 हजार मत ज्यादा होने से कांग्रेस की टिकट के लिए लगभग सत्तर चेहरों की कतार लगी हुई थी लेकिन कांग्रेस द्वारा लोहारु के पूर्व विधायक को यहां पर प्रत्याशी के रुप में उतारने के बाद एक निर्दलीय के अंकगणित ने भाजपा के खाते में सीट को भेज दिया है जो कांग्रेस को बड़े झटके के रुप में माना जाता है।

कृषि व सैनिक बाहुल्य बाढड़ा विधानसभा क्षेत्र की जनता यहां की रेतीली मिट्टी की तरह भावनात्मक तौर पर बहुत कमजोर है। प्रदेश के गठन के बाद से अब तक यहां पर बिजली संचालित ट्यूबवैल सिंचाई व पिछले कुछ समय से नहरी पानी ने किसान को गरीबी की दलदल से बाहर कर समृद्धि के रास्ते पर बढाने का काम किया है। किसान के बेटे कृषि के अलावा सेना में ज्यादा भर्ती हैं वहीं यहां के मतदाता मुखरता व क्रांतिकारी विचारधारा के कारण कई सरकारों से सीधा टकराव ले चुके हैं। पिछले 57 साल के इतिहास पर नजर डालें तो यहां का मतदाता कांग्रेस के खिलाफ व देवीलाल, बंसीलाल समर्थित क्षेत्रीय दलों के पक्ष में ज्यादा मतदान करता रहा है।

यहां पर कई बार पेराशुट प्रत्याशी भी कामयाब रहा है। 1967 में झोझूकलां निवासी मेजर मीरसिंह निर्दलीय तौर पर प्रथम विधायक चुने गए तो 1968 में वह विशाल हरियााणा पार्टी से चुने गए लेकिन उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी धर्मपत्नि लज्जारानी फिर भारी बहुमत से चुनी गई हैं। इस सीट पर सबसे अधिक पूर्वमंत्री अतर सिंह मांढी, रणसिंह मान व चंद्रावती का आमने सामने मुकाबला होता रहा है लेकिन पहली बार तीनों का परिवार अब कांग्रेस में शामिल होकर टिकट की लाईन में है। वर्ष 1967 से लेकर 2019 तक की बात करें तो बाढड़ा हलके से 13-13 विधायक चुने गए हैं।

ज्यादातर पुरुष ही विधानसभा में पहुंचे हैं। भले ही अन्य क्षेत्रों में किसी महिला को विधानसभा में जाने का अवसर तक नहीं मिला है लेकिन बाढड़ा हलके से वर्ष 1972, 1982 और 2019 में महिला विधायक चुनी गई हैं। मौजूदा समय में यहां से भाजपा टिकट पर उतरे पूर्व सैनिक उमेद पातुवास ने पूर्व सीएम बंसीलाल के दामाद व दो बार के विधायक रहे सोमवीर सिंह को मात दी वहीं उनको पूर्व सीएम मनोहर लाल व सीएम नायब सिंह सैनी की गुडबुक में माना जाता है और उनके व साथ लगते दादरी क्षेत्र के विजेता पूर्व जेल अधिक्षक नवनर्विाचित्त विधायक सुनील सांगवान को मंत्री मंडल में शामिल करने के लिए पैरवी कर सकते हैं।

बिजली पानी, रोजगार का मुद्दा भाजपा विधायक के सामने बड़ी समस्या

विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण परिवेश से जुड़ा है और क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग धंधा नहीं होने से लोगों की आजीविका केवल कृषि पर ही निर्भर है। कांग्रेस शासनकाल में कृषि क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाग्रस्त फसलों का बकाया मुआवजा किसानों व सरकार के गले की फांस बना हुआ था वहीं भाजपा सरकार में नहरी पानी में वृद्धि के लिए करोड़ की राशी से टेल तक पानी पहुंचाने व बिजली घरों की क्षमता बढाने के कारण किसानों में अंदरखाते लोकप्रिय रही।

मौजदूा सरकार व नवनिर्वाचित्त सरकार के सामने सरकार की कई योजनाओं से किसानों व युवाओं को लाभ नहीं मिलने से बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बन गई है। क्षेत्र में कोई कृषि, दुग्ध या कोई बड़ा उत्पादन कारखाना संचालित हो जाए तो युवाओं को रोजगार का रास्ता नसीब हो जाए। वर्ष 2000 के बाद लगभग सभी दलों की सरकारें आई और चली गई लेकिन दक्षिणी हरियाणा में गिरते भूमिगत जलस्तर को ऊंचा उठाने के लिए भूमिगत वाटर रिचार्ज योजना फाईलों में दबकर रह गई है। क्षेत्र के किसान संगठनों द्वारा बार बार सरकार से लंबित मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन चलता रहा है।

अब तक चुने विधायक

1967-अमीरसिंह- निर्दलीय
1968-अमीरसिंह-विशाल हरियाणा पार्टी
1972-लज्जारानी- कांग्रेस
1977-रणसिंह मान- जनता पार्टी
1982-चंद्रावती-लोकदल
1987-रणसिंह मान- लोकदल
1991-अतरसिंह मांढी- हविपा
1996-नृपेन्द्र मांढी-हविपा
2000-रणबीर मंदौला- इनेलो
2005-धर्मबीर सिंह- कांग्रेस
2009-कर्नल रघबीर छिल्लर-इनेलो
2014-सुखविंद्र मांढी-भाजपा
2019-नैना देवी चौटाला-जजपा
2024-उमेद पातुवास-भाजपा

वोट प्रतिशत

1..1967 के चुनाव में विजेता अमीर सिंह को 37.13 प्रतिशत मत।
2..1968 के चुनाव में विजेता अमीर सिंह को 33.90 प्रतिशत मत।
3..1972 के चुनाव में विजेता लज्जा रानी को 47.48 प्रतिशत मत।
4..1977 के चुनाव में विजेता रणसिंह मान को 40.11 प्रतिशत मत।
5..1982 के चुनाव में विजेता चंद्रावती को 40.71 प्रतिशत मत।
6..1987 के चुनाव में विजेता रणसिंह मान को 49.71 प्रतिशत मत।
7..1991 के चुनाव में विजेता अतरसिंह को 47.62 प्रतिशत मत।
8..1996 के चुनाव में विजेता नृपेन्द्र मांढी को 52.98 प्रतिशत मत।
9..2000 के चुनाव में विजेता रणबीर सिंह मंदौला को 29.55 प्रतिशत मत।
10..2005 के चुनाव में विजेता धर्मबीर सिंह को 41.86 प्रतिशत मत।
11..2009 के चुनाव में विजेता कर्नल रघबीर सिंह छिल्लर को 32.62 प्रतिशत मत।
12..2014 के चुनाव में विजेता सुखविंद्र मांढी को 29.48 प्रतिशत मत।
13..2019 के चुनाव में विजेता नैना चौटाला को 40.09 प्रतिशत मत।
14..2024 के चुनाव में विजेता उमेद पातुवास को 41.09 प्रतिशत मत।

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