(Charkhi Dadri News) बाढड़ा। गौरैया चिडिय़ा एवं पक्षी संरक्षण अभियान के तहत सर्वहित साधना न्यास के तत्वावधान एवं स्वामी सच्चिदानंद के नेतृत्व में आज आर्यसमाज वेद मंदिर पांडवान एवं परमार्थ साधना स्थली झोझू कलां में घोंसले लगाए एवं वितरित किए।
इस अवसर पर सर्वहित साधना न्यास के अध्यक्ष स्वामी सच्चिदानंद ने बताया कि हम जिस गौरैया के साथ बड़े हुए अब वह हमारी आंखों से ओझल हो चुकी है। ऐसे में सर्वहित साधना न्यास ने ठाना है कि हमें अपने घरों के बरामदे, मुंडेर पर गौरेया की वापसी करानी है। गौरैया की चहचहाहट से हमारे घरों में सुबह की शुरुआत हो, इसके लिए न्यास ने सबसे पहले ऐसी सुरक्षित जगह जहां गौरैया बिना किसी डर के घोंसले में रह सके ऐसे घोंसले तैयार करवाए हैं और लगातार करवा रहा है।
मानवों ने खुद को प्रकृति से इतना दूर करना शुरू किया कि गौरैया के लिए अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया
उन्होंने कहा कि हमारे घर-आंगन, खिडक़ी-दरवाजों पर फुदकने वाली गौरैया एक सामाजिक पक्षी है। घरों में गूंजने वाली इस पक्षी की चहचहाहट हमारा प्रकृति के साथ भी नाता जोड़ती है। यह नन्हा पक्षी मानव आबादी के साथ रहने के लिए खुद को अनुकूलित करता रहा है। लेकिन, मानवों ने खुद को प्रकृति से इतना दूर करना शुरू किया कि गौरैया के लिए अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया।
हमारे अप्राकृतिक होने के साथ गौरैया का सामाजिक रहना मुमकिन नहीं रहा। हमारे घरों के आस-पास जो अनार, नींबू, कनेर जैसे पेड़ होते थे, गौरैया उन्हीं पर अपना घोंसला बनाती थी। अब हम ज्यादा से ज्यादा सीमेंट के घर बनाने के चक्कर में पेड़ों के लिए जगह छोड़ते ही नहीं तो फिर यह छोटा पक्षी हमारा पड़ोसी कैसे बन सकता है? कभी हमारे आंगन में भीड़ जुटाकर शोरगुल करने वाली यह नन्ही चिडिय़ा आज दुनिया में कई जगहों पर दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में आ गई है।
इसकी आबादी कम होने का मतलब हमारी आबोहवा का हमारे लिए खतरनाक होना भी है। पर्यावरण को बचाने की शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी, गौरैया को फिर से अपनी पड़ोसी बना कर। हम अपने घरों में वैसी जगह और आसपास वैसे पेड़ रहने दें जहां यह पक्षी अपना घोंसला बना सके। गौरेया का बढ़ता घोंसला हमारी सेहतमंद आबोहवा का प्रमाणपत्र होगा। इस अवसर पर सत्यपाल आर्य, अनुराग गुप्ता, संजीव, जतिन आदि का सहयोग रहा।