(Charkhi Dadari News) बाढड़ा। हमारे भारतवर्ष में त्योहार- पर्वों की तरह विशेष दिनों की भी कोई कमी नहीं है। पूरी दुनिया वर्ष भर किसी न किसी विशेष दिन के आयोजन में व्यस्त रहती है। इन्हीं खास दिनों में एक खास दिन 20 मार्च को गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है। वास्तव में यह दिवस गौरैया के संरक्षण से जुड़ा है। हमें गर्व के साथ कहना चाहिए कि विश्व भर में अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए विशेष सम्मान पाने वाले हमारे भारत वर्ष के महाराष्ट्र प्रदेश से गौरैया संरक्षण की पहल सबसे पहले की गई।

गौरैया मानव साथी परंतु मनुष्य बना रहा है दूरी: सतीश मांढी

यह बात पर्यावरण पक्षी प्रेमी विशेषकर गौरैया संरक्षक सतीश मांढी ने कही। उन्होंने कहा कि यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि घर-घर फुदकने और चहकने वाली नन्हीं-प्यारी गौरैया चिडिय़ा पूरी दुनिया में गिद्ध के बाद संकट ग्रस्त पक्षी की श्रेणी में देखी जा रही है। संभवत: 2008 से गौरैया संरक्षण मुहिम की शुरुआत के बाद आज पर्यंत सरकारों की तरफ से गौरैया को बचाने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है।

सतीश ने गौरैया के विलुप्तीकरण के लिए प्रमुख रूप से बदल रही आबो-हवा और खेतों में केमिकल का बढ़ता उपयोग ,और मानव का अपने तक सेल्फी हो जाना मुख्य कारण माना है। सतीश ने गौरैया के लिए खुद अपने घर परिवार में लगभग एक हजार घोंसले बनाए हैं जिसमें हजारों गौरैया पक्षियों की चहचहाहट आसपास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा देने का काम कर रही है। खेती बाड़ी करने वाला साधारण किसान होते हुए भी उन्होंने गौरैया को बचाने की मुहिम चलाई है और अपने घर के अलावा दूसरे लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं। वो स्वयं खऱाब डब्बे कार्टून आदि से गौरैया के घोंसले बनाकर लोगों को वितरित भी कर रहे हैं।

कैसे मिली सतीश को प्रेरणा

बाढड़ा: सतीश का कहना है कि जब वह खेत में कार्य कर रहा था तो उन्हें एक घायल गौरैया मिली जिसको उसने पानी पिलाया और एक घोंसला बनाकर उसको दाना पानी रख दिया। उस नन्ही सी गौरैया की जान बच गई और उसने वहां अपना परिवार भी बढ़ाया। उस चिडिय़ा ने अपने आपको मेरे घर को अपना घर मानकर सुरक्षित समझा। उसकी चहचहाहट से मुझे भी खुशी मिलने लगी और तब से मैंने गौरैया को बचाने के मिशन में लग गया।

सतीश मांढी का कहना है कि पक्षियों के संबंध में अमेरिका सहित अनेक विकसित देश में शासकीय स्तर पर ब्योरा रखा जाता है । हमारे भारत वर्ष में अभी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। पक्षियों के संरक्षण के लिए कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग ऑफ इंडिया के नाम से एक साइट जरूर बनाई गई है। जिस पर कोई भी पक्षी प्रेमी पक्षियों से संबंधित जानकारी और आंकड़ा डाल सकता है, किंतु इसका व्यापक प्रचार-प्रसार न होने से शून्यता है।

हमारे देश में कुछ संस्थाएं काम कर रही हैं जो गौरैया को माकूल वातावरण के साथ संरक्षित करने वालों को अवाड्र्स देती हैं, किंतु यहां भी जागरूकता की कमी ही दिखाई पड़ रही है। वास्तव में हम वर्ष में एक दिन गौरैया के लिए चिंता करते दिखाई पड़ते हैं। 20 मार्च गुजरने के साथ ही गौरैया भी हमारे मन-मस्तिष्क से गायब हो जाती है।

बचाव हेतु क्या उपाय कर सकते हैं, हम यदि अपने परिवारों तथा समाज में गौरैया को बनाए रखना चाहते हैं तो शहरों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में इनके घोसलों के लिए सुरक्षित स्थान बनाना होगा। उन्हें जीवित रखने के लिए प्राकृतिक वातावरण देना होगा। हम घरों के आस-पास अथवा अपने घरों के बगीचों में स्थान सुरक्षित कर गौरैया को घोसला बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। बगीचों में चिडिय़ों के चुनने के लिए पर्याप्त अनाज के दानों की उपलब्धता हमें अपने कर्तव्य में शामिल करना होगा। घर-आंगन में गौरैया को खुला वातावरण देकर हम गौरैया के अंडों और चूजों को हिंसक पक्षी एवं जानवरों से बचा सकेंगे।

पक्षियों, विशेष कर गौरैया के प्रति दोस्ताना रवैया अपनाकर हम उनका भरोसा जीत सकते हैं। उन्हें चुगने के लिए चावल , बाजरा तथा अन्य मोटे अनाज उपलब्ध कराते हुए अपने करीब रख सकते हैं। शिक्षा के पाठ्यक्रम में ही शामिल हमने यदि अभी से गौरैया को बचाने संकल्प नहीं लिया तो वह दिन दूर नहीं जब गिद्ध की भांति हम इन्हें भी खो देंगे। हमारी आने वाली पीढ़ी नन्हीं चिडिय़ा नीचे आ, नीचे आकर गीत सुना। बड़ी धूप है आसमान में, थोड़ा सा तो ले सुस्ता। पेड़ तले ठंडी छाया है, छाया में आ दाना खा, को न गुनगुनाते हुए उन्हें केवल गूगल में ही सर्च कर देख पाएगी।

एक बात हमें अपने मस्तिष्क में बैठा लेनी चाहिए कि सिर्फ सरकार के भरोसे हम इंसानी मित्र गौरैया को नहीं बचा पाएंगे। इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी वर्तमान पीढ़ी को यह बताएं कि गौरैया अथवा अन्य विलुप्त होते पक्षी हमारे जीवन तथा पर्यावरण में क्या अहमियत रखते हैं ? हमें प्रकृति प्रेमी बनकर ऐसा अभियान चलाना होगा जो मानव जीवन में पशु – पक्षियों के योगदान को सार्थक बताते हुए संगठनों को अंजाम दे सके । जहां तक मैं समझता हूं प्रारंभिक शिक्षा के दौर में पूर्व की भांति गौरैया को पाठ्यक्रम में स्थान देना अच्छी पहल हो सकती है। अंग्रेजी शिक्षा के दौर में गौरैया पाठ्यक्रम से बाहर कर दी गई है , जो उचित नहीं है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार गौरैया का पास होना शुभ

सतीश मांढी ने बताया कि गौरैया ज्योतिषीय और वास्तुशास्त्र में गौरैया का मनुष्य जीवन पर गहरा प्रभाव वर्णित है । गौरैया जिस घर में घोंसला बनाती है , वहां से सभी तरह के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं । घर की उत्तर दिशा और ईशान कोण में यदि गौरैया अपना घोंसला बनाती है तो यह अत्यंत शुभ होता है । इसे किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए । हिंदू धर्म – ग्रंथों में गौरैया पक्षी साहस और सावधानी का प्रतीक मानी जाती है।

गौरैया हमें सिखाती है कि कैसे सुबह जल्दी उठकर अपनी जरूरतों के लिए संघर्ष किया जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस मेंं भी राजा दशरथ के घर गौरैया के घोसले का वर्णन मिलता है। इतना ही नहीं पक्षी विज्ञान के जनक गौतम ऋषि के अनुसार महाभारत काल में कुंती के महल में गौरैया के घोंसले का इतिहास है।

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