Chandigarh News: अपने दायित्व का निर्वाह करे युवा:मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

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Chandigarh News: अपनी सांसो को व्यस्थित करने के लिए इन्सान को आराम की आवश्यकता पडती है तथा तेज सांसें लेनी पडती हैं ऐसी किर्याओं द्वारा इन्सान को वायु का महत्व समझना एंव उसका उपयोग सीखना आवश्यक है जिससे उसका जीवन संतुलित निर्वाह हो सके । आक्सीजन के अभाव से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता की अल्प मात्रा से शरीर को अनेक प्रकार की बिमारियों द्वारा ग्रसित करके जीवन को असंतुलित कर देती है ।

बीमार शरीर तथा असंतुलित जीवन इन्सान की सभी प्रकार की सफलताओं तथा बुलंदियों में अवरोधक का कार्य करता है । बिमारियों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने के लिए नित्य प्राणायाम करके सफलता प्राप्त करी जा सकती है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर-24 तुलसी सभागार में कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा इस धरती पर जो कुछ है वह सब मानवता के लिए है लेकिन जिस तरह से मनुष्य इस कु दरत का दोहण कर रहा है और आवश्यकता से अधिक करता जा रहा है तो इसके खतरनाक परिणाम भी लगातार सामने आ रहे है। क्योकि कुदरत ही पृथ्वी का आधार है।

अगर आधार ही नष्ट करने में लग गया इंसान तो इंसानियत का अस्तित्व भी खतरे मे पड़ जाएगा। इसलिए हमे अपनी आने वाली पीडियो को इसको संजोना होगा नही तो इतनी देर हो जाएगी कि पछताने के सिवाय हाथ में कुछ बचेगा ही नही। प्राण अर्थात जीवन व याम अर्थात वायु प्राणायाम अर्थात जीवन प्रदान करने वाली वायु का उपयोग करना जिससे शरीर में आक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रबल होकर बिमारियों का सर्वनाश कर देती है । प्राणायाम करने का उचित समय प्रभात की अमृत बेला को दिया जाता है क्योंकि प्रभात में वायु प्रदुषण रहित होती है तथा वातावरण शांत व स्वच्छ होता है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया वायु का महत्व ज्ञात होने पर भी इन्सान वायु प्रदुषण की रोकथाम में सक्रिय भूमिका ना अपना कर स्वयं वायु प्रदुषण की वृद्धि करने में सहयोग करते हैं । सरकारें भी वाहन प्रदुषण के नाम पर वाहनों तथा कारखानों से मोटी रकम का जुर्माना वसूल करती अवश्य है परन्तु प्रदुषण रोकने का कार्य नहीं करती । समाज द्वारा धर्म व त्योहारों के नाम पर तथा शादी विवाह के मौकों पर भयंकर से भयंकर प्रदुषण करने वाले पटाखों का प्रयोग करना समाज का प्रदुषण के प्रति अपने कर्तव्य से विमुखता का प्रमाण है ।