Chandigarh News: मार्ग लंबा हो या छोटा सही ज्ञान जरूरी :

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Chandigarh News: चंडीगढ, गंतव्य की प्राप्ति से पूर्व उसका निर्धारण आवश्यक है। मार्ग लंबा हो या छोटा, उसका सही ज्ञान और समुचित गतिशीलता गन्ता को गन्तव्य से मिला देती है। गतिशीलता का महत्व है परंतु वह गंतव्य पर आधारित है। यदि हमारा गंतव्य/लक्ष्य महत्वपूर्ण है तो गतिशीलता भी महत्वपूर्ण है। लक्ष्य निर्धारण हो जाने के बाद भी आलस्य और प्रमाद व्यक्ति को गतिशील और क्रियाशील नहीं बनने देता। समीचीन पुरुषार्थ हो तो गंतव्य निकट होता चला जाता है।

मनुष्य के पग-पग पर समस्याओं का जाल बिछा हुआ है। उसे समेटने के लिए उसके पास दिमाग है। वह समाधान खोजे और अपना पथ स्वयं प्रशस्त करे। समस्याओं के सामने घुटने टिकाने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता। इसीलिये एलिन की ने एक बार कहा था भविष्य के बारे में बताने का बेहतरीन तरीका है उसे खुद गढऩा। है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-24सी अणुव्रत भवन तुलसीसभागार मे रविवारी सभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा मनुष्य अपनी समस्या का समाधान दूसरों से चाहता है। दूसरे लोग सहयोगी बन सकते हैं, उपाय सुझा सकते है, पर समाधान नहीं कर सकते। समस्याओं का उत्स व्यक्ति स्वयं होता है। समाधान भी स्वयं से मिलता है। मार्ग में अवरोध भी आ सकते हैं। उन्हें उत्साह और साहस के साथ पार करना होता है। कहीं अपमान मिलता है, कहीं निराशा का कुहासा सामने आता है, कहीं असफलता सहचरी के रूप में दिखाई देती है, इन स्थितियों का सम्यक् विश्लेषण इनसे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

उसके अभाव में तत्कालिक आवेश और असुविचारित साहसिक निर्णय व्यक्ति को बहुत पीछे भी ढकेल सकता है। जैसा कि जोएल ओस्टीन ने कहा है-अपनी परिस्थिति का वर्णन करने के लिए अपने शब्दों का इस्तेमाल न करें। उसकी बजाय अपनी परिस्थितियां को बदलने के लिए अपने शब्दों का इस्तेमाल करें।

मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया अधिकांश मनुष्यों के दुर्भाग्य का मूल कारण यही होता है कि उन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं होता। वे अपने भाग्य को ही कोसने में अपना बहुमूल्य समय नष्ट कर देते हैं। जो व्यक्ति अपने को निर्बल और कमजोर समझता है उस व्यक्ति को कभी विजय नहीं मिल सकती। अपने को छोटा समझने वाला व्यक्ति इस संसार में सदा कमजोर समझा जाता है। उस व्यक्ति को कभी वह उत्तम पदार्थ नहीं मिल पाते जो सदैव यह कहकर अपने भाग्य को कोसता है कि वह पदार्थ मेरे भाग्य में नहीं था।

उत्तम पदार्थ उस व्यक्ति को प्राप्त होते हैं जो उन्हें अपनी शक्ति से प्राप्त कर सकता है। हर व्यक्ति में शक्ति का जागरण और उस शक्ति का रचनात्मक दिशा में उपयोग सुखी परिवार अभियान का हमारा मूल उद्देश्य है। जीवन बहुत सुंदर है लेकिन मस्तिष्क की अपेक्षाओं ने उसे कब्जा लिया है। आपकी महत्वाकांक्षाओं के लिए आप ही जिम्मेदार हैं। आप अपनी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाते चले जाते हैं और दु:खी रहते हैं।

इसका मतलब यह नहीं कि आपकी महत्वाकांक्षा नहीं होना चाहिए लेकिन आप अपनी महत्वाकांक्षाओं के दास नहीं होने चाहिए। जब आप महत्वकांक्षाओं के अधीन होकर जीवन को भूल जाते हैं तब सारी गड़बड़ होती है। अपने महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण रखें तो सबकुछ अच्छा है लेकिन जब आप महत्वाकांक्षाओं से संचालित होने लगते हैं तो मुश्किल पैदा होती है। इसलिए अगर जीवन में प्रसन्नता पाना है तो अपना ध्यान उन चीजों पर लगाइए जो आपके पास है बजाय कि उन चीजों के बारे में सोचने के जो आपके पास नहीं हैं। धैर्य के साथ जीवन को जिएं। गति को थोड़ा कम कर दें और फिर देखें जीवन प्रसन्नता से भर जाएगा।