Chandigarh News: वर्तमान का यदि सामान्य रूप देखना हो तो एक शब्द प्रयोग करिए आज। यह वर्तमान का सबसे बड़ा रूप है। यूं तो वर्तमान बहुत बारीक है। पकड़ में नहीं आएगा, क्योंकि जब तक उसे समझ पाएं, वह भूत हो जाता है और जब तक उस पर कुछ कर पाएं, भविष्य वर्तमान बन जाता है।
इसलिए थोड़ा आज को समझें। आज- जिसे अंग्रेज़ी में टुडे कहते हैं, वर्तमान का फैला हुआ आसान रूप है। हम साधारण मनुष्यों के लिए वर्तमान का सही स्वरूप आज है। इस आज में हमारे पास 24 घंटे भी हो सकते हैं और 12 भी। अपनी-अपनी सुविधा से तय कर लें और उन्हें अपना वर्तमान मान लें।
जि़ंदगी थोड़ी आसान हो जाएगी। आज को और अच्छे तरीक़े से समझना हो तो श्रीराम के वनवास में चलना होगा। मान लो हमारे पास आज में 24 घंटे हैं तो रामजी के पास 14 वर्ष थे। पूरे 14 बरस की अवधि को उन्होंने आज जैसा माना था और उस आज को इतने अच्छे-से जिया कि फिर राजा बने, रामराज्य स्थापित हो गया। तो करो का अर्थ यह हुआ कि जो भी करना हो, आज को समझकर आज में ही कर लो। अपने टुडे को बहुत परफ़ेक्ट रखो। इसे सीधे-सीधे यूं कहें कि जो भी करना है, आज कर डालो। बस, यहां दो बातें याद रखिएगा- वह करने लायक़ हो और फलदायक हो।
ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर 24सी तुलसीसभागार मे अपने व्यक्त्व मे कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा वर्तमान में जैसे करो का महत्व है, वैसे ही सीखो भी महत्वपूर्ण है। हर घड़ी, हर क़दम पर, हर काम में कुछ न कुछ सीखना मिल रहा होता है। हमें इतना जाग्रत रहना चाहिए कि सीखने की वृत्ति ऐसी हो कि हर बात से कुछ सीख लेंगे। सीखयुक्त जीवन भयमुक्त होता है। चूंकि भविष्य मनुष्य को डराता है, तो भयमुक्त होने की तैयारी वर्तमान में ही करनी पड़ेगी। इसलिए सीखो कि भयमुक्त कैसे रहा जाए। वर्तमान की सबसे बड़ी सीख होनी चाहिए कि डरेंगे कभी नहीं। जो होगा, निपट लेंगे।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया वर्तमान में देह बिना भोगे रहेगी नहीं। कुछ न कुछ भोगना ही है उसे। दुनिया में भोगने के लिए एक सबसे बड़ा, प्यारा तत्व है प्रकृति से मिला रस। इसे पंचरस भी कहा जा सकता है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश : ये जो पंचतत्व हैं, इनके रस को वर्तमान में भोगना है और शरीर को इनसे जोडऩा है। इसका एक नाम या रूप स्वास्थ्य भी है। जो स्वस्थ है, समझकर चलिए उसने वर्तमान को अच्छे से जिया।
बीमारी का संबंध न तो हमारे अतीत से है, न ही भविष्य से। यह सबसे अधिक प्रभाव हमारे वर्तमान पर डालती है। इसलिए प्रकृति के पंचरस का पान करते रहें। इसका सबसे बड़ा स्वाद या कहें प्रभाव यह है कि आप बाहर से सक्रिय होते हैं और भीतर से शांत रहने लगते हैं। इतना अच्छा वर्तमान कौन नहीं चाहेगा। वर्तमान से जुडऩे, उसको ठीक से भोगने के लिए एक बहुत अच्छा प्रयोग है सांस का।
अपनी हर आती-जाती सांस के प्रति जितने होश पूर्ण होंगे, वर्तमान को उतने अच्छे-से भोग सकेंगे। इसलिए जब भी समय मिले, कमर सीधी, आंखें बंद कर अपनी सांस को भीतर जाते, बाहर आते हुए देखिएगा। कोई कठिन काम नहीं है यह। बड़ा आसान है, और पाएंगे वर्तमान आपकी मु_ी में है। चूंकि हमें वर्तमान में जीना है, तो भूत यानी अतीत को भी समझना होगा। तो चलिए, थोड़ा इसे भी समझ लेते हैं…।